अजय सिंह चौहान || ‘‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनमम्’’ अर्थात – एक सक्षम और स्वास्थ्य शरीर के बिना हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। ईश्वर को पाने के लिए भी स्वास्थ्य एवं सशक्त शरीर और मानसिक संतुलन की आवश्यकता है। ईश्वर शारीरिक और मानसिक दुर्बलों के लिए नहीं है। क्योंकि दुर्बल हमेशा दूसरों पर आश्रित होते हैं।
जैसे की पश्चिम के दानकर्ता। वे तमाम एनजीओ जो भारत की गरीबी को और शारीरिक और मानसिक दुर्बलता को सेलेब्रेट करते हैं. तभी तो उन्होंने भारत की गरीबी, राजनीति और हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे पर नज़र रखने के लिए ‘मानव अधिकार आयोग’ जैसी कंपनियां खोलकर हमारे यहाँ डेरा डाल रखा है और ‘मानव अधिकार आयोग’ के बहाने हमारी राजनीति और राजनेताओं को मुट्ठी में कर रखा है।
‘मानव अधिकार आयोग’ चाहता है कि भारत के मूल निवासी, यानी हिंदू, मूल न रहे और आक्रांताओं के साथ मिल कर इस पर आक्रमण करते रहें। फिर चाहे उसके लिए कितना भी धन खर्च क्यों न करना पड़े। यही कारण है कि आज के वे हिन्दू जो एक राजनीतिक पार्टी के बंधुआ मज़दूर होकर रह गए हैं, इसीलिए पार्टी हित से आगे स्वयं का हित, यानी हिन्दूत्वहित या सनातन के हीत का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता।
मनुष्य के लिए शारीरिक शक्ति अति आवश्यक है लेकिन चरित्र उससे भी अधिक महत्व रखता है, क्योंकि बिना चरित्र वाले मनुष्य को शक्ति एक हिंसक पशु बना देती है। फिर चाहे यह शक्ति व्यक्तिगत हो, राजनीतिक हो या सामाजिक।
हमारे प्राचीन इतिहास में भी विनाश के अनेक पृष्ठ इसी कारण जुड़े हैं क्योंकि उस समय और उन घटनाओं के पीछे के कारणों में भी उससे जुड़े व्यक्तियों में सुदृढ़ बुद्धि का आभाव हो गया था।
यह भी सच है कि समाज और राष्ट्र के पुनःर्निर्माण या पुनर्गठन के मार्ग में फूल नहीं बिछे होते हैं। क्योंकि जब समाज और राष्ट्र के पुनःर्निर्माण के लिए आगे बढ़ना होता है तो अनेकों प्रकार के कालनेमियों, धूर्तों और कुटिलों और शक्तिशाली लोगों से पाला पड़ता है। ऐसी स्थिति में केवल चतुराई से ही निपटा जा सकता है। क्योंकि बिना चतुराई के केवल शुद्ध हृदय से या भाईचारे के साथ चलने से तो हमारा शत्रु हमको ही अपना हथियार बना लेंगे। और इसके उदाहरण आज हमारे सामने हैं कि कैसे उन हिंदुओं ने जिन संगठनों और राजनीतिक पार्टियों के झंडे उठा रखे हैं, भगवान राम और भगवान शिव के उद्धार के नाम पर वे कार्यकर्ता और स्वयंसेवी खुद ही उन पार्टियों के हाथों की कठपुतली बन कर नाच रहे हैं और अपने ही हिंदू कार्यकर्ताओं का उपयोग हिंदुत्व के खिलाफ सीधे-सीधे कर रहे हैं और किसी को एहसास भी नहीं होने दे रहे हैं।
आज जब देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में इस बात की चर्चा हो रही है कि ज्ञानवापी मंदिर को बिना किसी सोच-विचार के हिंदूओं को सौंप दिया जाना चाहिए तो ऐसे में हिंदुओं ने जिन संगठनों और राजनीतिक पार्टियों के झंडे धर्म को बचाने के नाम पर उठा रखे हैं, वे हिंदू स्वयं कितने ठगे जा रहे हैं इस विषय पर हिंदू धर्म के सभी बड़े ठेकेदार सब चुप हैं।
किसी को सूझ नहीं रहा है कि जब स्वयं भगवान शिव ही प्रकट हो चुके हैं तो उनके दर्शन कैसे किये जायें। जबकि ये लोग अपने आपको सबसे बड़े शिवभक्त मानते हैं और बार-बार जिक्र करते हैं कि मुझे तो यहां भगवान शिव ने बुलाया है, माता गंगा ने बुलाया है। हिंदूओं के सबसे बड़े संगठन होने का दावा करने वाले संघ के कर्ताधर्ता का बयान है कि ‘ज्ञानवापी मंदिर मात्र एक मुद्दा है, इसे आस्था से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। क्योंकि आज के मुसलमान वैसे नहीं हैं।’
कानपुर में अचानक पत्थरबाजी होती है तब भी आज के मुसलमान वैसे नहीं हैं। क्योंकि एकबार फिर से भारत को विश्वगुरु बनने के लिए और पूरी दुनिया को शांति का पाठ सिखाने के लिए अब हिंदुओं की आवश्यकता नहीं है बल्कि उसी समुदाय की आवश्यकता है जो ताकत के दम पर दुनिया भर में शांतिप्रिय बना बैठा है।
हिंदुओं की ठेकेदार बन बैठी भाजपा के प्रमुख का बयान अगर आता है कि – ‘भाजपा का मतलब हिंदत्व और हिंदुत्व का मतलब भाजपा बिलकुल भी नहीं है’ तो उन हिन्दुओं को जो इस पार्टी के दम पर जय श्रीराम के नारे लगाते हैं वे आज भी समझ ही नहीं पाए हैं कि उनका धर्म तो कब का परिवर्तन हो चूका है, आत्मा भी धीरे-धीरे रंग बदल रही है, लेकिन सिर्फ डीएनए ही बाकी रह गया है, वो भी जल्द ही एक हो जायेगा।