प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति की ताशीर आपसी प्रेम, सद्भाव, समन्वय, संवेदना, संयम जैसे अन्य अनेक गुणों से परिपूर्ण रही है। हमारे समाज में दिखावेपन के लिए कोई स्थान नहीं है। अपने से यदि कोई स्वयं को बड़ा एवं महान दिखाने की कोशिश करता है तो कुछ ही समय बाद उसे नकार दिया जाता है।
छोरगिरी, लुच्चागिरी, कमीनेपन जैसे शब्द समाज में शुरू से ही खारिज किये जा चुके हैं किन्तु कुछ लोग आज भी मार्केटिंग एवं पी.आर. कंपनियों का सहारा लेकर अपने आपको समाज में प्रतिष्ठित करने का काम कर रहे हैं। ऐसी प्रवृत्ति समाज के हर क्षेत्र में देखने को मिल रही है, ऐसे में जो लोग सादगी, सरलता एवं विनम्रता से समाज में काम करना चाहते हैं या कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि आखिर उन्होंने ही सादगी, सरलता एवं ठीक ढंग से चलने का संकल्प थोड़े ही ले रखा है। ऐसे लोगों को लगता है कि जब समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता है तो वे ही चिंता क्यों करें, किंतु सादगी, सरलता एवं विनम्रता के साथ जो लोग कार्यरत हैं, उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि कोई अपने आप को चाहे जितना भी चालाक एवं शातिर भले ही समझ ले किंतु जनता उसका बारीकी से विश्लेषण करती है और वक्त आने पर जवाब भी देती है।
यह बात बिल्कुल सही है कि पाखंड से कुछ लोग कुछ समय के लिए गुमराह या भ्रमित भले ही हो जाते हैं किंतु लोगों को ज्यों ही समझ में आ जाता है तो पाखंडियों की उलटी गिनती शुरू हो जाती है। हमारे समाज में एक पुरानी कहावत प्रचलित है कि कथनी-करनी में अंतर नहीं चलेगा यानी जो कुछ कहा जाये, उसे पूरा किया जाये। आज समाज में राजनीति, धर्म, अध्यात्म, व्यापार एवं अन्य क्षेत्रों की कई हस्तियां या तो जेल में हैं या हाशिये पर हैं। इस बात का यदि विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि उनकी ऐसी दशा उनकी कथनी-करनी में अंतर के कारण हुई है यानी कि उनका पर्दाफाश हो चुका है। ऐसे कई लोग हैं जो अन्य लोगों को जीवन में सफल होने के तौर-तरीके बताते थे किंतु वे स्वयं अपने जीवन में सर्वदृष्टि से नाकाम हैं। सफल गृहस्थ का गुण बताने वालों को भी आत्महत्या तक करनी पड़ी है।
जीवन भर ब्रह्मचारी रहने की बात करने वाले कई लोगों को भोग-विलास में लिप्त होते देखा एवं सुना गया है। तमाम लोग ऐसे हैं जो रात-दिन ईमानदारी की बात करते हैं किंतु भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। तमाम लायक औलादों को मां-बाप को घर से बेदखल करते हुए समाज देख रहा है। ऐसे भी लोग हैं जो समाज को सद्मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं किंतु स्वयं कुमार्ग पर चल पड़ते हैं। आखिर यह सब क्या है, इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि समाज में पाखंड नहीं चल सकता। पाखंडी कुछ समय के लिए भले ही कामयाब हो जायें किंतु समाज में उनकी असलियत आकर ही रहेगी।
– जगदम्बा सिंह