देश का हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश आज भीषण तबाही की कगार पर है। आये दिन वहां भारी भूस्खलन हो रहा है। इस भूस्खलन से तमाम रास्ते बंद हैं। यदि इस तबाही की जड़ में जायें तो स्पष्ट रूप से देखने में आता है कि विकास की जो गाथा लिखी गई है, उसके अनुरूप पर्यावरण संरक्षण-संवर्धन पर ध्यान नहीं दिया गया। जाहिर सी बात है कि विकास के लिए यदि पहाड़ों को तोड़ा जायेगा तो उसके दुष्परिणाम झेलने को मिलेंगे ही।
यदि कोई पहाड़ तोड़ा जाता है तो इस बात का ध्यान विशेष रूप से रखने की आवश्यकता है कि उसके साथ भू-स्खलन न हो। जहां से पहाड़ टूटते हैं, वहां पत्थर की मजबूत दीवार बनाकर उसके संरक्षण की आवश्यकता है। टूटे हुए पहाड़ों के साथ कटे पहाड़ों को यदि
मजबूत नहीं किया जायेगा तो दिक्कत तो आयेगी ही। वैसे भी बेतहाशा पेड़ कटेंगे तो सूखा पड़ेगा ही, नदियों का पेटा यदि पाटा जायेगा तो बाढ़ का खतरा रहेगा ही।
कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण-संवर्धन की विशेष रूप से आवश्यकता है, अन्यथा विनाश की लीला यूं ही झेलने को विवश होना पड़ेगा।
– नितिन कुमार