प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री अमित शाह जी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा जी सहित भाजपा का शीर्ष नेतृत्व युवाओं को सरकार एवं संगठन में आगे बढ़ाने में लगा हुआ है। युवाओं को आगे बढ़ाना वैसे भी बहुत जरूरी है, क्योंकि पूरे विश्व में भारत सबसे युवा देश है यानी भारत में युवाओं की संख्या विश्व के अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा है, इसीलिए वर्तमान समय में भारत की छवि युवा देश के रूप में बनी है और ये युवा भारत की गौरवमयी लोकतांत्रिक विरासत एवं परंपराओं को आगे बढ़ाने में अनवरत लगे हुए हैं।
संगठन प्रक्रिया की इन्हीं योजनाओं के अंतर्गत दिल्ली प्रदेश में भी युवाओं को महत्वपूर्ण दायित्व देने की कवायद चल रही है। राजधानी दिल्ली में संगठन निर्माण की दृष्टि से प्रदेश की टीम की घोषणा हो चुकी है। इसके साथ ही जिलों एवं मोर्चों के प्रभारियों एवं सह प्रभारियों की भी घोषणा हो चुकी है। इस पूरे प्रकरण में निहायत महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘जोश’ यानी युवाओं के साथ ‘अनुभव’ यानी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का भी संतुलन जरूरी है। बिना अनुभवी कार्यकर्ताओं के पार्टी को सभी चुनाओं में सफलता मिल पाना मुश्किल है। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की उपस्थिति पार्टी के लिए ऊर्जा का काम करती है।
आम तौर पर माना जाता है कि युवा संगठन के कार्य में भाग-दौड़ अधिक कर लेते हैं। इस बात में कोई संदेश नहीं है किंतु इस संबंध में मेरा मानना है कि जब तक शारीरिक एवं मानसिक रूप से कोई भी पूर्ण रूप से स्वस्थ है, उसके बारे में यही मानना चाहिए कि वह भी युवाओं से किसी मामले में कम नहीं है।
आज के पर्यावरण-प्रदूषण के दौर में यह भी कहना ठीक नहीं होगा कि कोई भी युवा पूर्ण रूप से शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ है। तमाम युवाओं की स्थिति आजकल, पाश्चात्य जीवनशैली के प्रभाव के कारण तो यह है कि वे सुबह 10 बजे से पहले सोकर ही नहीं उठ पाते हैं। और तो और, आज के युवा मशीन की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
अब कल्पना कीजिए कि कोई युवा यदि सुबह 10 बजे सोकर उठेगा तो अमूमन वह 12 बजे के पहले घर से निकलने की स्थिति में नहीं होगा। रात में वह चाहे जितनी देर तक भी जाग ले किंतु रात का समय राष्ट्र, समाज एवं संगठन के हित में बहुत अधिक उपयोगी नहीं हो सकता है। कहने का आशय यह है कि जो काम दिन का होगा, उसे दिन में ही निपटाना होगा।
आज के तमाम युवाओं की जीवनशैली जिस तरह की बनी हुई है, वैसे में उन्हें पूर्ण रूप से स्वस्थ न तो कहा जा सकता है और न ही माना जा सकता है। इसके अतिरिक्त इसी उम्र में युवाओं को अपना कैरियर भी बनाना होता है और घर-गृहस्थी की भी चिंता होती है और दूसरी तरफ पार्टी के लिए काफी समय दे चुके अनुभवी लोगों को उम्र का हवाला देकर हाशिये पर डाल दिया जाता है जबकि तमाम अनुभवी कार्यकर्ता पूर्ण रूप से अभी स्वस्थ हैं किंतु उन्हें जबरदस्ती मार्गदर्शक एवं संरक्षक की भूमिका में डालकर पार्टी का ही नुकसान किया जा रहा है।
वरिष्ठ कार्यकर्ता टेक्नोलाजी में भले ही कमजोर पड़ते हैं किंतु आम जनता के बीच जाने, जनता-जनार्दन का मूड समझने, सबको साथ लेकर चलने की क्षमता एवं अन्य गुण समाज में उन्हें हमेशा प्रासंगिक बनाये रखते हैं। वैसे भी, जब तक कोई पूर्ण रूप से स्वस्थ है, उसे युवा मानकर ही काम लेना चाहिए।
एक वरिष्ठ कार्यकर्ता राष्ट्र, समाज एवं पार्टी के लिए कितना उपयोगी हो सकता है, उसे यदि समझना है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को उदाहरण के रूप में सामने रखना होगा। प्रधानमंत्री युवा भले ही नहीं हैं किंतु किसी भी युवा से काफी स्वस्थ एवं चुस्त-दुरुस्त हैं। एक लंबे समय से वे लगातार 18 घंटे या उससे अधिक कार्य कर रहे हैं। जबसे वे प्रधानमंत्री बने हैं, तबसे उन्होंने आज तक कोई छुट्टी नहीं ली है। प्रतिदिन वे रात्रि को एक बजे सोते हैं और सुबह 5 बजे उठ जाते हैं। ऐसी सधी एवं सक्रिय जीवनशैली का अनुशरण कितने युवा करते हैं?
हालांकि, यह सब लिखने के पीछे किसी भी युवा को इगनोर करने या कटाक्ष करने की मेरी भावना नहीं है किंतु जो सत्य है, वह तो लिखना ही होगा। आधुनिक टेक्नोलाजी के दौर में तकनीक के प्रयोग में युवा निश्चित रूप से बहुत आगे हैं किंतु जमीन पर जाकर, घर-घर जाकर, लोगों से मिलकर अपनी पार्टी की बात रखने की जो परंपरा है, उसमें बहुत ज्यादा गिरावट आई है। कहने का आशय यह है कि सोशल मीडिया के दौर में हम जितना लोगों के करीब हैं, उससे अधिक दूर भी हैं। इस तथ्य का ईमानदारी से विश्लेषण करने की आवश्यकता है। कहीं ऐसा न हो कि सोशल मीडिया के दौर में नीचे की जड़ ही खोखली हो जाये।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री आदेश गुप्ता जी के समय में एक निश्चित उम्र के मंडल अध्यक्ष एवं जिलाध्यक्ष बनाये गये थे, किंतु उसका परिणाम निगम चुनावों में बहुत अच्छा देखने को नहीं मिला। युवा भाग-दौड़ एवं परिश्रम में निश्चित रूप से भारी पड़ते हैं, किंतु अधिकांश युवा सबको साथ लेकर चलने की कला में माहिर नहीं होते, क्योंकि उनमें धैर्य, सहनशीलता एवं अनुभव की कमी होती है, जबकि ये सारी चीजें किसी व्यक्ति में वक्त के साथ ही आती हैं। दूसरी तरफ जिन्हें हम बेहद वरिष्ठ कार्यकर्ता मानकर मात्र मार्गदर्शक एवं संरक्षक लायक ही समझते हैं, उनमें अनुभव एवं ज्ञान की अपार संपदा होती है। उनके अंदर सबको साथ लेकर चलने की क्षमता भी होती है, साथ ही एक लंबे समय तक कार्य करने के कारण समाज में उनकी विश्वसनीयता भी होती है।
अधिकांश वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में ‘आया राम और गया राम’ की प्रवृत्ति न होने के कारण समाज में उनकी प्रतिष्ठा भी होती है। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को पार्टी चाहे जितना भी अलग-थलग, अनुपयोगी, अनदेखा, अनसुना कर दे या हाशिये पर ला दे, किंतु वे न तो पार्टी छोड़ते हैं और न ही पार्टी को कोई नुकसान पहुंचाते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि जिस पार्टी के लिए उन्होंने इतना परिश्रम किया है उसे किसी भी तरह हानि नहीं पहुंचायेंगे। ऐसी स्थिति में वे इतना ही करते हैं कि काम करने के बजाय चुपचाप घर बैठ जाते हैं।
यहां यह बताना भी उपयुक्त होगा कि भाजपा के पास आज भी ऐसे-ऐसे वरिष्ठ एवं संस्कारित व अनुभवी कार्यकर्ता हैं जो आज भी समाज या राजनीति में जहां कहीं भी खड़े हो जाते हैं उन्हें देख लोग ऊर्जा से भर जाते हैं और भाजपा की उपस्थिति दर्ज हो जाती है।
इस दृष्टि से यदि युवाओं की बात की जाये तो अधिकांश युवा अब लक्ष्य आधारित राजनीति करते हैं। उनका लक्ष्य यदि पूरा नही हो पाता है तो वे कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। अधिकांश युवा बहुत ही कम समय में यदि कामयाब नहीं हो पाते हैं तो अपना रास्ता बदलने की मानसिकता भी दिखला भी लेते हैं।
इन सभी परिस्थितियों के बीच आवश्यकता इस बात की है कि ‘जोश’ एवं ‘अनुभव’ का संतुलन किसी भी कीमत पर पार्टी में बना रहे। इसी फार्मूले की बदौलत पार्टी की प्रतिष्ठा हमेशा के लिए बरकरार रहेगी, अन्यथा संतुलन बिगड़ने की स्थिति में कुछ भी कहना मुश्किल हो सकता है तो इन परिस्थितियों के बीच हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि इसी रास्ते पर चलकर राजधानी दिल्ली में पार्टी को उसके शीर्ष पर पहुंचाने के लिए
काम करें।
– हिमानी जैन, मंत्री- भारतीय जनता पार्टी, दरियागंज मंडल, दिल्ली प्रदेश