अभी हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा का बेहद शानदार प्रदर्शन रहा। पांच राज्यों में से तीन में भाजपा की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनी और दो अन्य राज्यों में उसके मत प्रतिशत में भी वृद्धि हुई। भाजपा की इस सफलता से विपक्षी दल भी सकते में आ गये। विपक्षी दल यह सोचने के लिए विवश हैं कि आखिर यह सब कैसे हो रहा है, क्योंकि पहले भाजपा के बारे में एक बात बेहद कामन रूप से कही जाती थी कि वह किसी राज्य में चुनाव जीत जाती है तो फिर उसकी सरकार दुबारा नहीं आ पाती है किंतु भाजपा अब उस स्थिति से बाहर निकल चुकी है, अब उसकी सरकार केन्द्र एवं राज्यों में न सिर्फ बन रही है बल्कि बार-बार रिपीट भी हो रही है। यह सब कैसे संभव हुआ, इसकी गहराई में यदि जायें और ठीक से विश्लेषण करें तो देखने में आता है कि भाजपा अब कांग्रेस का दांव उसी पर आजमाने लगी है, जिससे लगातार वह चुनावी सफलता की ओर अग्रसर होती जा रही है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भाजपा अब कांग्रेस को उसी के दांव से मार रही है।
दरअसल, बीजेपी के अतीत में जाया जाये तो सभी बातें स्पष्ट हो जायेंगी। सर्वविदित है कि जनसंघ की स्थापना 1951 में प्रखर राष्ट्रवादी डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी। उस समय जनसंघ के कार्यकर्ताओं में काफी जुनून हुआ करता था। यह जुनून राष्ट्र एवं समाज की उन्नति और विचारधारा को लेकर था। उस समय अमूमन होता यह था कि कार्यकर्ता बेहद उत्साह, लगन एवं जुनून के साथ कार्य किया करते थे किंतु चुनावों में उम्मीदों के मुताबिक परिणाम प्रायः नहीं आया करते थे। इससे अकसर कार्यकर्ता हतोत्साहित भी हो जाते थे, उन्हें यह समझ में नहीं आता था कि आखिर चूक कहां हो रही है? कमोबेश ऐसा दौर 1965 तक देखने को मिला। इस स्थिति से उबरने और चुनावी सफलता के लिए मंथन का दौर चला। 1965 से लेकर आपातकाल शुरू होने तक जनसंघ ने अपनी त्रुटियों की पहचान कर उसे दूर करने का कार्य प्रारंभ किया जिसके परिणामस्वरूप मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में अप्रत्याशित सफलता मिली। उस कार्यकाल में हमारी सरकारों ने जो कार्य किये उसकी चर्चा एवं व्याख्या आज भी होती है। प्रायः हर चुनावों में अपने उस गौरवमयी अतीत की चर्चा होती रहती है।
यहां यह बताना उपयुक्त होगा कि उस समय कांग्रेस की जीत का प्रमुख एवं कूटनीतिक सूत्र यह हुआ करता था कि चुनाव की घोषणा के बाद 15-20 दिन तक कांग्रेसी अपने आपसी झगड़ों को जनता के समक्ष लाकर विपक्षी दलों को गुमराह करते थे, इससे जनसंघ एवं विपक्षी दलों को लगता था कि कांग्रेसी आपस में लड़ रहे हैं, ऐसे में उन्हें क्या सफलता मिलेगी? ऐसे समय में कांग्रेसी जनसंघ एवं विपक्षी दलों के बीच किसी न किसी बहाने घुसपैठ करके विपक्षी दलों की चुनावी रणनीति की थाह ले लिया करते थे और जब चुनाव के चार-पांच दिन बचते थे तो कांग्रेसी अपने सभी गिले-शिकवे भुलाकर विपक्ष की चुनावी रणनीति का तोड़ निकाल कर अपने चुनावी मिशन में लग जाते थे। कांग्रेस की कूटनीति एवं रणनीति को जब तक जनसंघ एवं विपक्ष के लोग समझ पाते तब तक कांग्रेसी अपना काम बना चुके होते थे। हालांकि, जिस समय जनसंघ एवं विपक्षी दलों को लगता था कि कांग्रेसी आपस में लड़ रहे हैं, उस समय भी वे किसी न किसी रूप में अपना प्रचार कर रहे होते थे।
हालांकि, इसी प्रकार के वातावरण में जून 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने आपात काल की घोषणा कर दी। विपक्षी दलों के बहुत से नेता गिरफ्तार कर लिये गये। आपात काल के बाद विपक्ष के सभी नेता जनता पार्टी के बैनर तले एक प्लेटफार्म पर आ गये। जनसंघ का भी जनता पार्टी में विलय हो गया। ऐसे में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह बैकफुट पर आ गई। बहरहाल, लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार मिली और मोरार जी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी किंतु अपनी ही कमियों एवं अंतर्विरोधों के कारण जनता पार्टी की सरकार का पतन हो गया। हालांकि, कुछ समय के लिए चै. चरण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस के समर्थन से जनता पार्टी की सरकार और चली किंतु अंततोगत्वा सरकार का पतन हो ही गया। ऐसा बाद में प्रतीत हुआ कि वह भी कांग्रेस की कूटनीति का एक हिस्सा था।
जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और अटल बिहारी वाजपेयी जी भाजपा के प्रथम अध्यक्ष बने। भाजपा की स्थापना के बाद कई वर्षों तक निरंतर संघर्ष के बावजूद पार्टी को कोई बड़ी जीत नहीं मिली। एक के बाद एक हार का सिलसिला चलता रहा। जनता में अपनी पैठ बनाने के लिए पार्टी नये-नये प्रयोग करती रही। इसी बीच कुछ अवसरवादी ताकतों ने अपने पैर फैलाने शुरू कर किया। ऐसी परिस्थितियों का लाभ उठाकर कांग्रेस से अलग हुए नेता श्री वी.पी. सिंह के नेतृत्व में चुनाव हुए और कांग्रेस को सत्ता से हटना पड़ा। जनता दल सरकार में अंदरूनी संघर्ष के बीच श्री वी.पी. सिंह ने तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री चै. देवी लाल को पद से हटा दिया और मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर दी। इसी बीच विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए चलाये जा रहे आंदोलन को तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी जी ने हवा दे दी और रामरथ यात्रा लेकर निकल पड़े किंतु बिहार में तत्कालीन लालू प्रसाद यादव की सरकार द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और भाजपा ने जनता दल की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे वी.पी. सिंह सरकार गिर गई किंतु कांग्रेस ने समर्थन देकर कुछ समय के लिए चंद्रशेखर जी के माध्यम से सरकार चलवाई। अंत में वही हुआ, जैसा कांग्रेस का इतिहास एवं चरित्र रहा है। अपनी आदतों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी ने चंद्रशेखर जी की भी सरकार गिरा दी। चंद्रशेखर जी की सरकार गिरने के बाद जो आम चुनाव हुए उसमें पी.वी. नरसिंहाराव जी की अगुवाई में कांग्रेस की मिली-जुली सरकार बन गई।
इधर राम मंदिर निर्माण के लिए चल रहे संघर्ष एवं आंदोलन में भाजपा भी तमाम उतार-चढ़ावों से आगे बढ़ते हुए 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में 13 दिनों की सरकार बनाने में कामयाब रही, उसके बाद तेरह महीने की सरकार बनी। अंततोगत्वा 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में स्थायी सरकार बनी जो वर्ष 2004 तक चली लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सरकार सत्ता से हाथ धो बैठी। संभवतः, उस समय भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अति उत्साहित था और परिस्थितियों का आंकलन नहीं कर पाया, ’इंडिया शाइनिंग’ एवं ‘फील गुड’ का नारा भाजपा को सत्ता में पहुंचाने में कामयाब नहीं हो सका। बहरहाल, इस समय तक भाजपा को यह अभास हो चुका था कि चुनावों के अंतिम दौर में जो घोषणाएं की जाती हैं, जिस प्रकार प्रचार-प्रसार किया जाता है, जो रणनीति एवं कूटनीति अपनाई जाती है, उसका बेहद महत्व होता है। विपक्षी दलों के बीच घुसपैठ करके उनकी रणनीति की जानकारी लेकर अपनी तैयारियों को कैसे अंजाम दिया जाये, इन बातों का चिंतन पार्टी में काफी व्यापक स्तर पर होने लगा था।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तमाम कार्यकर्ता निराश एवं निष्क्रिय होने लगे थे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि सत्ता में पहुंच पाना भाजपा के लिए अब आसान नहीं है। इसी बीच वर्ष 2012-13 में पुनः माननीय श्री राजनाथ सिंह जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया और उन्होंने सफलता पूर्वक कार्यकर्ताओं में जोश भर कर श्री नरेंद्र मोदी जी को अपनी पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनवाया। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मोदी जी ने इसके तदुपरान्त पार्टी का नेतृत्व संभाला, कार्यकर्ताओं में जोश भरा, कांग्रेस पार्टी के घोटालों को चुन-चुन कर उजागर करना शुरू कर दिया। चुनाव प्रचार की नई रणनीतियों का ईजाद किया। पार्टी की जो भी रणनीति बनती थी उसे बूथ स्तर तक ले जाया गया, हारने-जीतने वाली सीटों का आंकलन किया गया, इसके साथ ही कांग्रेस की समग्र मानसिकता को भांपकर कदम-कदम पर प्रचार अभियानों को गति दी गई। उसका सुखद परिणाम आया और 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनी। हालांकि, भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को भी साथ रखा।
यह सब लिखने का मेरा आशय यह है कि 2012-13 तक आते-आते भाजपा कांग्रेस के सभी चुनावी हथकंडों को जान एवं समझ चुकी थी। मोदी जी ने बूथ स्तर से लेकर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक कांग्रेस को उसी के दांव से चित्त किया, जिनका उपयोग चुनावों में वह किया करती थी। उदाहरण के तौर पर गैर भाजपाई दल, सेकुलर लाबी एवं पूरा विश्व भाजपा को सांप्रदायिकता के आधार पर लगातार घेरता रहता था किंतु मोदी जी ने डंके की चोट पर जब यह कहना शुरू किया कि धर्मनिरपेक्षता को यदि कहीं सबसे अधिक करारी चोट लगी है तो वह कश्मीर है। गौरतलब है कि कश्मीर सेकुलर दलों की दुखती रग है और इसी दुखती रग पर मोदी जी ने हाथ रख दिया और कांग्रेसी एवं पूरा विपक्ष धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर चारों खाने चित्त हो गया।
भारत की जिस गौरवमयी विरासत को प्रचारित करने से कांग्रेस घबराती थी और उसी के आधार पर कांग्रेस पार्टी वोट लेती थी, उसी को भाजपा ने हथियार बना लिया। देश की जनता को लगा कि जो दल एवं सरकार भारत की गौरवमयी विरासत को सहेजने, सजाने-संवारने में लगी है, उसके साथ रहना चाहिए। इस मुद्दे पर भी कांग्रेस पार्टी भाजपा के दांव में फंस कर रह गई। 2014 के पहले कांग्रेस पार्टी को लगता था कि गैर मुस्लिम मतदाता तो उसके साथ हैं ही, मुस्लिम मतदाताओं को यदि साथ रखा जाये तो उसे कोई चुनाव हरा नहीं सकता है किंतु भाजपा ने कांग्रेस के उसी दांव को उल्टा कर दिया, उसका परिणाम यह हुआ कि देश के बहुसंख्यक गैर मुस्लिमों को यह समझ में आ गया कि वास्तव में वे जिन्हें धर्मनिरपक्ष समझते हैं, वही सही अर्थों में सांप्रदायिक हैं। देश के किसी भी हिस्से में जब पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते थे तो यदा-कदा कांग्रेस अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अनसुना कर देती थी किंतु भाजपा ने ऐसे मुद्दों को न सिर्फ उभारना शुरू किया बल्कि इस तरह के नारा लगाने वालों को खुली चेतावनी देनी शुरू कर दी, तो भाजपा को जनता की यह स्टाईल बहुत पसंद आयी और वह देशवासियों के बीच लोकप्रिय होती चली गई।
कांग्रेस के नेताओं को लगता था कि यदि वे ‘जय श्रीराम’, ‘भारत माता की जय’ एवं ‘वंदे मातरम्’ का नारा सार्वजनिक रूप से लगायेंगे तो उसका नुकसान झेलना पड़ सकता है तो इस मुद्दे पर भी भाजपा ने कांग्रेस एवं विपक्षी दलों को चित्त कर दिया। दरअसल, ये नारे बहुसंख्यक भारतीयों के दिलो-दिमाग में बसे हुए हैं। वैश्विक स्तर पर अपने संबंधों का लाभ उठाकर कांग्रेस पार्टी भाजपा को बदनाम करती रहती थी किंतु मोदी जी ने बिना किसी वैश्विक दबाव में आये कांग्रेस को ही पूरे विश्व में बेनकाब करना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि पूरी दुनिया में जो भी भारतीय बसे हुए हैं, उनकी नजर में भी कांग्रेस गिरती गई। अभी हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रचार पर ध्यान केंद्रित किया जाये तो देखने में आता है कि वोट के लिए कांग्रेस ने जातिवार गणना का मुद्दा बेहद जोर-शोर से उठाया किंतु उसी मुद्दे को लेकर भाजपा ने कांग्रेस को जनता की नजरों में गिरा दिया।
सरकार में रहते हुए कांग्रेस की फितरत रहती थी कि वह पूरे चार साल तक खूब मनमानी करती थी। महंगाई चरम सीमा पर पहुंच जाती थी किंतु चुनावी वर्ष में वह मीडिया को मैनेज कर आंकड़ों की बाजीगरी के माध्यम से सब कुछ कंट्रोल कर लेती थी किंतु भाजपा ने जब कांग्रेस की इन छिपी हुई चालाकियों को जनता के समक्ष बताना शुरू कर दिया तो वह बेनकाब हो गई। चुनाव के आखिरी 15 दिनों में ‘साम, दाम, दंड, भेद’ की नीति अपनाकर चुनाव कैसे जीता जाये, भाजपा ने उसकी चाल को समझ कर कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया। अब तो भाजपा के बारे में यह कहा जाने लगा है कि लास्ट के 15 दिनों में भाजपा हारी हुई चुनावी बाजी को पलट देने में माहिर हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में इस बार कुछ ऐसा ही देखने को मिला किंतु इस पूरे प्रकरण में एक बात बिना किसी लाग-लपेट के कही जा सकती है कि भाजपा जो भी करती है, बहुत साफ मन और दिल से करती है। आम जनता के प्रति उसके मन में किसी तरह की कुटिलता नहीं होती है। किसी भी दल के बारे में जनता के मन में यदि इस प्रकार का विश्वास हो जाये तो उसे कौन हरा सकता है।
एक समय ऐसा था जब कहा जाता था कि देश में स्थिर सरकार कांग्रेस ही दे सकती है किंतु यह बात अब भाजपा के लिए कही जाती है। इन सबसे महत्वपूर्ण एक बात यह है कि मोदी जी अवसर कहा करते हैं कि ‘बूथ जीता तो देश जीता’ यानी यदि पूरे देश को जीतना है तो अपना बूथ जीतना ही होगा। इसी कारण भाजपा के अधिकांश बड़े नेता किसी न किसी रूप में अपने बूथ से संलग्न रहते हैं। भाजपा की ‘पन्ना प्रमुख’ योजना पार्टी को मजबूत बनाने में और अधिक चार चांद लगाने का काम कर रही है। इस प्रकार के तमाम उदाहरणों का यदि विश्लेषण किया जाये तो बिना किसी संकोच के इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि भाजपा कांग्रेस को उसी के दांव से मार रही है और बीजेपी की यह स्टाईल जनता को बेहद पसंद आ रही है।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर) (पूर्व ट्रस्टी श्रीराम-जन्मभूमि न्यास एवं पूर्व केन्द्रीय कार्यालय सचिव, भा.ज.पा.)