अजय सिंह चौहान || आजकल भारत के मुकुट कहे जाने वाले कश्मीर को लेकर मात्र भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर के राजनीतिज्ञों और आम आदमी के बीच एक बहस छीड़ी हुई है। सोशल साइट्स पर भी इसको लेकर कोई इसके इतिहास की बात करता है तो कोई इसके पौराणिक महत्व की। कोई इसके वर्तमान हालातों पर चर्चा करता है तो कोई इसके भविष्य को लेकर अपने-अपने विचार प्रकट करते रहते देखे और सुने जा सकते हैं।
ऐसे में हमने भी कश्मीर से जुड़े कुछ पौराणिक इतिहास के तथ्यों और सनातन धर्म तथा वैदिक युग से संबंधित इसके धार्मिक महत्व को समझने की कोशिश की और विभिन्न प्रकार के तथ्यों को एकत्र करने का प्रयास किया तो हमें इसमें बहुत ही चैकाने वाले तथ्य और प्रमाण मिले।
इन प्रमाणों के आधार पर हम निसंकोच यह कह सकते हैं कि आज जिसे कुछ लोग मात्र जमीन का एक टुकड़ा समझते हैं वह स्थान, सनातन संस्कृति और भारत के इतिहास में कितना अनमोल रत्न हुआ करता था। हालांकि, आज भी यह कश्मीर हमारे देश के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है लेकिन चन्द लोग उसके महत्व को समझ ही नहीं पा रहे हैं।
कई शोधकर्ताओं ने इस बात को माना है कि युगों पहले जब शेष पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व ही नहीं था उस समय भी भारतीय उप महाद्वीप में मानव सभ्यता एक विकसित जीवन जी रही थी और कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के वंशजों का राज फैला हुआ था। इसीलिए कश्मीर के पौराणिक मत और सनातन धर्म से संबंधित इसके पौराणिक और धार्मिक महत्व के अनुसार भी यही माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर यानी आज जिसे हम कैस्पियन सागर कहते हैं उसका नामकरण हुआ था और आज के कश्मीर को भी उन्हीं कश्यप ऋषि के नाम से जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि ऋषि कश्यप ही कश्मीर के सबसे पहले राजा हुए थे।
ऋषि कश्यप का उल्लेख ऋग्वेद में भी हुआ है। इसलिए ऋषि कश्यप प्राचीन वैदिक ऋषियों में प्रमुख ऋषि माने गये हैं। अन्य संहिताओं में भी यह नाम कई बार पढ़ने को मिलता है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एवं रहस्यात्मक चरित्र वाला ऋषि बतलाया गया है।
कई प्रकार के पौराणिक साक्ष्यों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू नामक पत्नी के गर्भ से नाग वंश की उत्पत्ति हुई, उन नागों की संख्या 8 थी। उन 8 नागों के नाम अनंत नाग यानी शेष नाग, वासुकि नाग, तक्षक नाग, कर्कोटक नाग, पद्म नाग, महापद्म नाग, शंख नाग और कुलिक नाग थे। इसी तरह कश्मीर में आज भी उन नागों के नाम पर स्थानों के नाम हैं- जिनमें अनंतनाग, कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि।
कश्मीर का रामायण और महाभारतकालीन रहस्यमई इतिहास | History of Kashmir in Hindi
मान्यता है कि इन्हीं 8 नागों से नागवंश की स्थापना हुई थी। विभिन्न पुराणों में कश्मीर को नागों का देश भी कहा गया है। जबकि आज कश्मीर में जो अनंतनाग नामक जिला है उस स्थान को नागवंशियों की राजधानी माना गया था।
इसके अलावा हमारे कुछ पौराणिक ग्रंथ यह भी बताते हैं कि इस संपूर्ण क्षेत्र को इन सबसे पहले जम्बूद्वीप के नाम से जाना जाता था और यहां उस समय के लोकप्रिय राजा अग्निघ्र का राज था।
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि त्रेतायुग में भगवान राम के जन्म से भी हजारों वर्ष पहले तक कश्मीर मात्र एक जनपद के रूप में हुआ करता था।
यदि हम वाल्मीकि रामायण की माने तो कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है। और अगर हम आधुनिक इतिहास की माने तो कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा ही कंबोज हुआ करता था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी शामिल हैं।
जानिए कौन थे शेष नाग और वासुकि नाग के पिता
कंबोज महाजनपद का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक हुआ करता था। जिसमें इसके उस समय के दो नगर राजपुर और नंदीपुर सबसे प्रमुख थे। प्राचिन काल के उस राजपुर को ही आजकल हम राजौरी के नाम से जानते हैं। इसमें पाकिस्तान का हजारा नामक जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही आता था।
वर्तमान में भी हमारे पास कश्मीर का प्रामाणिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक इतिहास जानने के दो मुख्य स्रोत मौजुद हैं। जिसमें से पहला 12 वीं शती में कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी एवं दूसरा मज्जिन सेनाचार्य का नीलमत पुराण। इन दोनों ही पुस्तकों में कश्मीर के वंशचरित एवं भूगोल का विस्तृत वर्णन मिलता है।
इसमें से कश्मीर के भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा राजनीति इतिहास से संबंधित सबसे पुरानी और सबसे प्रमुख पुस्तक जो उस समय के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी है जो 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा के काल यानी 1129 ईसवी तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं का प्रमाणिक दस्तावेज है।
राजतरंगिणी में भी यही बताया गया है कि आज की कश्मीर घाटी अत्यंत प्राचीन समय में चारों तरफ से विशाल पर्वत श्रखलाओं से घिरी हुई थी। और इसके मध्य में एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। कश्यप ऋषि ने उस झील से पानी निकाल दिया और इसे एक अत्यंत मनोरम प्राकृतिक स्थल के रूप में बदल दिया था। उसी के बाद से कश्मीर की घाटी अस्तित्व में आई है।
हालांकि अगर हम भूगर्भशास्त्रियों की माने तो उनके अनुसार आज जिसे हम खदियानयार और बारामूला के नाम से जानते हैं उन क्षेत्रों में पहाड़ों के धंसने से ही उस विशालकाय झील का पानी बहकर निकल गया और उसके बाद यह एक मैदानी क्षेत्र बना था। जिसके बाद से यहां धीरे-धीरे मानव सभ्यता का विकास होने लगा और यह क्षेत्र रहने लायक बन गया।
कश्मीर के अति प्राचीन इतिहास और इसके भौगोलिक क्षेत्र को लेकर हमारे सामने एक और बात सामने आती है। और वह ये कि इसके प्राचीनतम इतिहास के कुछ हिस्से और प्रामाणिक तथ्य जम्मू से भी जुड़े हुए हैं।
जहां एक ओर जम्मू और कश्मीर का उल्लेख महाभारत जैसे महान ग्रंथ में भी मिलता है। वहीं अखनूर के एक क्षेत्र से प्राप्त हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है।
यदि हम वाल्मीकि रामायण की माने तो कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है। और अगर हम आधुनिक इतिहास की माने तो कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा ही कंबोज हुआ करता था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी शामिल हैं।
कंबोज महाजनपद का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक हुआ करता था। जिसमें इसके उस समय के दो नगर राजपुर और नंदीपुर सबसे प्रमुख थे। प्राचीन काल के उस राजपुर को ही आजकल हम राजौरी के नाम से जानते हैं। इसमें पाकिस्तान का हजारा नामक जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही आता था।
कश्मीर का प्राचीन और पौराणिक इतिहास सर्वप्रथम यहां के मूल निवासी कश्मीरी पंडितों से जुड़ा हुआ है जिसमें इन कश्मीरी पंडितों की संस्कृति लगभग 6,000 साल से भी ज्यादा पुरानी मानी गई है इसीलिए वे ही कश्मीर के मूल निवासी माने जाते हैं।