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Coronavirus : जानिए क्यों सूर्य ग्रहण की याद दिलाता है ‘कोरोना’ वायरस

admin 13 January 2022
Corona virus & Solar Eclipse
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दुनियाभर में मानव जीवन के लिए अभिशाप बन कर उभरे कोरोना वायरस (Coronavirus history in Hindi) के विषय में माना जाता है कि इसको लेकर करीब 40 साल पहले ही भविष्यवाणी हो चुकी थी कि संभवतः भविष्य में कोई ऐसा जैविक हथियार विकसित होने वाला है जिसके कारण मानव सभ्यता विनाश के कगार पर पहुंच जायेगी। जबकि एक अन्य भविष्यवाणी के अनुसार चीन के वैज्ञानिकों ने भी करीब एक साल पहले इस प्रकार के किसी वायरस जैसी महामारी की चेतावनी दे दी थी। इसके अलावा 2018 में दक्षिण कोरिया में बने एक नाटक ‘‘माई सीक्रेट टेरियस’’ में भी कोरोना वायरस जैसी महामारी को लेकर चेतावनी दी गई थी।

कोरोना का डर –
बहरहाल, जो भी हो, कोरोना वायरस (Coronavirus history in Hindi) के कारण आज आम जनमानस के मन में डर कुछ इस कदर बैठा हुआ है कि वे अब अपने पड़ौसियों से भी दूरी बनाकर रहने लगे हैं और किसी भी प्रकार के सुख या दुख में एक दूसरे का साथ देने को तैयार नहीं है। वे लोग भी जो कभी भी किसी से नहीं डरते थे अब अपने घरों में बैठकर इस महामारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं।

जो भी हो, फिलहाल तो कोरोना वायरस (Coronavirus history in Hindi) प्रकृति के साथ छेड़छाड का नतीजा ही कहा जा सकता है क्योंकि जिस तरह से यह महामारी वैश्विक रूप लेती जा रही है, उससे तो लगता है कि जैसे यह किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं है। इसके अलावा आशंका यह भी है कि ‘‘चायनीज़ वायरस’’ के नाम से प्रसिद्ध यह कोरोना चीन की ही देन हो सकती है। क्योंकि इसकी शुरूआत चीन से ही हुई है और अब चीन से निकलकर यह दुनिया के हर देश में मौत का तांडव दिखा रहा रहा है।

कोरोना का शाब्दिक अर्थ –
कोरोना क्या है यह तो आज सभी लोग जान चुके हैं। लेकिन, कोरोना वायरस (Coronavirus history in Hindi) को लेकर जितना भयंकर डर का माहौल बना हुआ है उससे भी अधिक अब लोगों के मन में यह जिज्ञासा हो रही है कि आखिर इस महामारी को ‘‘कोरोना वायरस’’ ही क्यों कहा जा रहा है। यानी इसको यह नाम क्यों और कैसे मिला? तो हम बता दें कि, जब भी किसी भी व्यक्ति या वस्तु का नामकरण होता है तो, या तो उसके खोजकर्ता के नाम पर उसको नाम दिया जाता है या फिर उसकी उत्पत्ति के स्थान से उसका नामकरण किया जाता है या फिर उसके आकार, बनावट या संरचना के आधार पर ही उसे नाम दिया जाता है। जबकि कोरोना वायरस के विषय में उसकी उत्पत्ति के स्थान और और खोजकर्ता के बारे में अभीतक स्पष्ट रूप से कुछ भी सामने नहीं आ पा रहा है इसलिए इसे इसकी आकृति और बनावट के आधार पर इसे कोरोना वायरस नाम दिया गया है, इसके ‘कोरोना’ नाम में भी कारण और तर्क छुपे हुए हैं।

कोरोना नाम ही क्यों पड़ा –
सरल भाषा में कहें तो जब सूर्य ग्रहण होता है उस समय चंद्रमा अपने पीछे सूर्य को पूरी तरह ढक देता है जिसके कारण सूर्य एक गोले के रूप में सीधे-सीधे दिखना तो बंद हो जाता है लेकिन वह अपनी किरणों के द्वारा चंद्रमा के आकार से बाहर की तरफ फैला कर एक नर्म रोशनी को दर्शाता है। उस समय लगता है जैसे सूर्य की वह नर्म रोशनी तेजी से ब्रह्मांड में कहीं विलुप्त हो जाती है और फिर कुछ देर के बाद धीरे-धीरे अपने नर्म रूप में वापस आती हुई दिखती है।

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सूर्य की उस नर्म और मध्यम रोशनी को ही ‘करोना’ कहा जाता है। यानी सूर्य ग्रहण के समय की चंद्रमा की उस छाया के चारों तरफ फैल रही सूर्य की मध्यम या नर्म कोरोना नामक उस रोशनी के नाम पर ही कोरोना वायरस को भी नाम दिया गया है, क्योंकि इस वायरस की बनावट उस खगोलीय घटना से उत्पन्न कोरोना जैसी ही है।

कोरोन से बना कोरोना –
कोरोना वायरस (Coronavirus history in Hindi) देखने में एक प्रकार से सिर पर पहने जाने वाले उस मुकुट के आकार का दिखता है जिसे लेटिन भाषा में क्राउन कहा जाता है। इसलिए यह नाम मूलतः लेटिन भाषा के ‘‘क्राउन’ से लिया गया माना जाता है। इसके अलावा कोरोना वायरस एक प्रकार की माला के आकार में भी दिखता है जिसे प्राचीन ग्रीक भाषा में ‘‘कोरोन’’ कहा जाता है। प्राचीन ग्रीक भाषा में ‘‘कोरोन’’ का अर्थ है एक प्रकार की वह माला जो हम सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा के पीछे की ओर सूर्य की प्लाज्मा की आभा किरणों को एक गोल आकार की माला रूप में देखते हैं।

मात्रा यही नहीं, बलिक, यह वायरस उसी करोना की तरह गोल भी है और इस वायरस की सतह पर भी उसी प्रकार से प्रोटीन की स्टेन्स यानी किरणें उगी हुई दिखती हैं जैसी सूर्य ग्रहण के समय कोरोना की शाखाएं या रोशनी दिखती है और जो हमें हर दिशा में फैलती हुई प्रतीत होती हैं।

आसान भाषा में उदाहण –
यदि इसे हम इससे भी आसान और सरल भाषा में समझे तो उसके लिए यहां हम सूरजमुखी के फूल की संरचना का उदाहरण दे सकते हैं। सूरजमुखी के फूल को दूर से देखने पर उसके बीच का भाग काले रंग का होता है। जबकि उसकी गोलाई के चारों तरफ की पंखुड़ियां सूर्य की किरणों की भांति ही नर्म किरणों का प्रकाश फैलाता हुआ दिखता है। इससे भी आसान भाषा में कहें तो सूर्य ग्रहण के समय की चंद्रमा की उस छाया के चारों तरफ फैल रही सूर्य की उस मध्यम या नर्म रोशनी को विज्ञान की भाषा में कोरोना कहा जाता है।

– अजय सिंह चौहान

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