अमेरिका के वाशिंगटन शहर से प्रकाशित एक ‘साइंस’ नामक प्रमुख पत्रिका में हाल ही में छपे एक विस्तृत अध्ययन में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के करीब 2,15,000 से अधिक छोटे-बड़े ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया. हालाँकि इस अध्ययन में ग्रीनलैंड और अंर्टाकटिक में बर्फ की चादर पर बने ग्लेशियर शामिल नहीं हैं.
इस समय दुनिया के सारे ग्लेशियर कहीं अधिक तेजी से पिघलते जा रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारी कल्पना है की अभी करीब अगले 100 वर्षों तक ग्लेशियर बचे रह सकते हैं, लेकिन हमारी उस कल्पना से कहीं अधिक पहले ही धरती के सारे ग्लेशियर पिघलने वाले हैं.
इसका कारण जलवायु परिवर्तन ही नहीं बल्कि मानव निर्मित और भी कई कारण हो सकते हैं. हालाँकि जलवायु परिवर्तन की मौजूदा प्रवृत्तियों को देखते हुए इनमें से दो तिहाई ग्लेशियरों का इस सदी के अंत तक अस्तित्व समाप्त होने वाला है.
वैज्ञानिकों का एक नया अध्ययन बता रहा है कि अगर दुनिया भविष्य में होने वाले पृथ्वी के वैश्विक ताप को एक डिग्री के दसवें हिस्से से कुछ ज्यादा तक भी सीमित कर सकने में कामयाब हो जाय तो हो सकता है कि हम कुछ हद तक ग्लेशियर बचाने में कामयाब हो जाएँ. हालाँकि फिलहाल तो इसके आसार बहुत ही कम दिख रहे हैं.
अध्ययनकर्ता वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ज्यादातर छोटे लेकिन जाने-पहचाने ग्लेशियर जो कि कुछ आम लोगों की पहुंच में होते हैं वे सबसे पहले विलुप्त हो सकते हैं. अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर तापमान के लगातार कई डिग्री तक बढ़ते रहने की सबसे खराब स्थिति में दुनिया के करीब 83 प्रतिशत ग्लेशियर अगले 75 से 80 सालों में विलुप्त हो सकते हैं.
यहां गौर करने वाली बात ये है कि वैज्ञानिकों ने जो अनुमान लगाया है उसके अनुसार भविष्य में ग्लेशियर के मुकाबले बर्फ की चादर पिघलने से समुद्र का स्तर ज्यादा बढ़ेगा.
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर विभिन्न स्तर की ताप वृद्धि का अनुमान कम्प्यूटर सिमुलेशन के जरिए किया है. कम्प्यूटर सिमुलेशन यानी एक प्रकार का कंप्यूटर प्रोग्राम या एल्गोरिथम होता है. इससे यह पता चल पाया है कि कितनी टन बर्फ पिघलेगी, कितने ग्लेशियर विलुप्त हो जाएंगे और इससे समुद्र का जलस्तर कितना बढ़ेगा.
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया इस समय अंधाधुन्ध औद्योगिकरण और औद्योगिक उत्पादन में लगी है, नए-नए शहर बसते जा रहे हैं जिसके कारण धरती पर जंगलों की कमी होती जा रही है. यही कारण है कि अधिकतर देशों के भूजल स्तर में भारी गिरावट के चलते सम्पूर्ण धरती पर 2.7 डिग्री सेल्सियस ताप वृद्धि की राह पर है, जिसके चलते वर्ष 2100 तक दुनिया के 32 प्रतिशत ग्लेशियर विलुप्त हो जाएंगे.
वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि पृथ्वी पर से सारे ग्लेशियर विलुप्त हो जाएंगे तो बड़े ही बुरे स्तर पर मनुष्य जीवन का विनाश हो सकता है. मात्र मनुष्य ही नहीं बल्कि अनेक प्रकार के जीव, वनस्पति, विलुप्त हो सकती है जिसके कारण अनेकों नई-नई महामारियां और बीमारियां देखने को मिलेगी, हालाँकि आज भी हमें कुछ-कुछ उसका ट्रैलर देखने को मिलने लगा है. लेकिन क्योंकि मनुष्य अभी अंधाधुन्ध औद्योगिकरण में लगा हुआ है इसलिए उसको इस बात का ऐहसास ही नहीं है कि वह अपनी कब्र खुद ही खोद रहा है.
– अशोक सिंह