यूरोप के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर हमारा यह ग्रह पृथ्वी इसी तरह गर्म होता रहा तो वर्ष 2025 के अंत तक इस ग्रह पर मौजुद हर एक व्यक्ति इससे प्रभावित हो जायेगा। क्योंकि यह स्थिति दुनिया के हर एक हिस्से के मौसम के लिए विनाशकारी होगी। ‘नेचर जर्नल’ के हालिया अंक में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया है कि ‘‘अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग करंट’’ (Atlantic Meridional Overturning Current) (AMOC) जिसका कि गल्फ स्ट्रीम एक एहम हिस्सा है, सदी के मध्य तक या संभव है कि उससे भी बहुत पहले यानी करीब-करीब 2025 की शुरुआत या फिर अंत तक ढह सकता है।
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार कुछ अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण प्रणाली है। लेकिन, इसके ध्वस्त होने का सटीक समय या अवधि फिलहाल अनिश्चित है। उनका कहना है कि यह सच है कि धाराओं के माप ने अब तक बहुत कम परिवर्तन दिखाया है लेकिन अब हमारे सामने जो नया शोध आया है यह बहुत ही चिंताजनक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि नया शोध यदि सच में चिंता जनक है तो इसका मतलब यही समझा जा सकता है कि निर्णायक मोड़ जल्द आ सकता है।
(Atlantic Meridional Overturning Current) (AMOC) उष्ण कटिबंध से गर्म पानी को धाराओं के माध्यम से उत्तरी अटलांटिंक की ओर ले जाता है। इसको एक विशाल कन्वेयर बेल्ट की तरह समझा जा सकता है। यहां आ कर पानी ठंडा होता है और खारा भी हो जाता है। साथ ही दक्षिण की ओर फैलने से पहले यह पानी समुद्र की गहराई तक डूब जाता है।
दरअसल, ‘अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग करंट’ जलवायु प्रणाली और दुनिया के मौसम को नियमित करने में बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में यदि इस प्रणाली का ही पतन हो जाता है तो इससे पृथ्व की जलवायु पर बहुत बड़े और नकारात्मक प्रभाव होंगे। जिसमें समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी होगी और यूरोप तथा अमेरिका समेत दुनिया के कई तटीय क्षेत्रों और देशों के डूब का खतरा बन जायेगा। इसके कारण पृथ्वी के कई हिस्सों में सर्दियों का मौसम और भी भयानक हो सकता है। जबकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मानसून स्थानांतरित होकर बारिश का पैटर्न भी बिगाड़ देगा।
दरअसल, जलवायु संकट के तेज होने के कारण वैज्ञानिक वर्षों से इसमें अस्थिरता की चेतावनी देते आ रहे हैं। और क्योंकि AMOC धाराओं की ताकत तापमान और खारेपन पर निर्भर करती है, इसलिए संतुलन बिगड़ने से इन्हें खतरा होना निश्चित है।
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जैसे-जैसे महासागर गर्म होते हैं, बर्फ पिघलने की गति और तेज होती जाती है, और बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण साफ पानी समुद्र में मिलता जाता है। इससे पानी का घनत्व कम होता जाता है, और कम घनत्व के कारण वह पानी डूबने में कम सक्षम होता है। लेकिन, जब पानी बहुत ताजा, बहुत गर्म या दोनों ही स्थिति में होता है तो ‘कन्वेयर बेल्ट’ बंद हो जाता है।
हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि यह संकट पृथ्वी पर पहली बार देखा जा रहा है। क्योंकि ऐसी घटना पहले भी हो चुकी है। करीब 12,000 वर्ष पहले भी इसी प्रकार तेजी से ग्लेशियर पिघले थे और तब भी AMOC बंद हो गया था। उसका परिणाम यह हुआ था कि एक दशक के भीतर ही उत्तरी गोलार्ध के तापमान में करीब 10-15 डिग्री सेल्सियस का भारी उतार चढ़ाव देखा गया।
पीटर डी मेनोकल नामक वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के अध्यक्ष का कहना है कि यह सच है कि ।डव्ब् के बंद होने पर ग्रह पर मौजूद हर एक व्यक्ति और हर एक जीव को उसका प्रभाव झेलना पड़ेगा। हालांकि, इसके पूर्ण रूप से ढहने की संभावना नहीं है। लेकिन नई स्टडी डराने वाली है।
कैसे काम करता है एएमओसी? –
एएमओसी (Atlantic Meridional Overturning Current) एक कन्वेयर बेल्ट की तरह समुद्री धाराओं की एक बड़ी प्रणाली होती है, जो तापमान और नमक सामग्री – पानी के घनत्व में पाये जाने वाले अंतर से संचालित होती है। जैसे ही गर्म पानी उत्तर की ओर बहता जाता है वह धीरे-धीरे ठंडा होता जाता है और कुछ वाष्पीकरण होता है, जिससे उसमें नमक की मात्रा बढ़ जाती है। कम तापमान और अधिक नमक सामग्री पानी को ठोस या सघन बना देती है और यही सघन जल समुद्र की गहराई में डूबता जाता है। ठंडा और घना पानी धीरे-धीरे समुद्र की सतह से कई किलोमीटर नीचे दक्षिण की ओर फैलता जाता है। अंततः, यही पानी सतह पर खींच लिया जाता है और ‘अपवेलिंग’ नामक प्रक्रिया में गर्म होता जाता है।
– धर्मवाणी