एक दौर था जब रामायण और महाभारत का अस्तित्व लगभग खत्म हो गया था
अजय सिंह चौहान || भारतीय सभ्यता और राजतंत्रीय शासन व्यवस्था में रामराज्य के बाद जो सर्वश्रेष्ठ माना गया है, उसके लिए सम्राट विक्रमादित्य को आज भी उसका प्रतीक माना जाता है। भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध एतिहासिक पुरुषों में भी विक्रमादित्य एक आदर्श के रूप में माने जाते हैं। उनके शासन को एक श्रेष्ठ और न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था के रूप में देखा जाता था। विक्रमादित्य विद्या, धर्म और संस्कृति के कट्टर संरक्षक होने के साथ-साथ शक्तिशाली राजा और उदार शासक भी थे। विक्रमादित्य के विषय में कहा जाता है कि जनता के कष्टों को जानने और राज-काज की पड़ताल के लिए वे खुद गुप्त रूप से एक आम व्यक्ति का रूप धारण कर अपने राज्य में किसी भी दिन और किसी भी समय भ्रमण पर निकल पड़ते थे।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, विक्रमदित्य के काल में भारत के कपड़े, मसाले और अन्य वस्तुओं की गुणवत्ता या क्वालिटी इतनी अच्छी थी कि विदेशी व्यपारी इन सामानों को सोने और चांदी के वजन से खरीदते थे। भारत में इतना सोना और चांदी आ गया था कि विक्रमादित्य काल में सोने के सिक्के चलते थे।
इतिहासकारों के अनुसार राजा विक्रमादित्य का काल ही वह काल था जब भारत सोने की चिढ़िया बना था और राजा विक्रमादित्य ही वह राजा था जिसने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था। इसलिए राजा विक्रमादित्य का काल ही भारत का स्वर्णिम काल कहलाता है। लेकिन हमारे लिए यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि राजा विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है।
लेकिन विक्रमादित्य का इतिहास आज देश ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी एक दुर्भाग्य बन के रह गया है। सम्राट विक्रमादित्य के अस्तित्व को लेकर इतिहासकार कभी भी एक मत नहीं रहे। जहां कुछ इतिहासकार और विद्वान विक्रमादित्य को राजतंत्रीय शासन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मानते हैं, वहीं वे यह भी मानते हैं कि भारतीय इतिहास में राजा विक्रमादित्य का राज भगवान राम के राज्य के बाद दूसरा सबसे सूखद राज था।
कुछ इतिहासकार और विद्वान राजा विक्रमादित्य के ऐतिहासिक अस्तित्व को आज भी पचा नहीं पा रहे हैं। ऐसे विद्वानों के अनुसार विक्रमादित्य किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था, बल्कि यह एक कल्पना और एक उपाधि मात्र है। जबकि कुछ विद्वान इस तथ्य से सहमत नहीं है। उनका मानना है कि विक्रमादित्य इतना महान राजा था कि उसका नाम बाद के राजाओं और सम्राटों के लिए एक पदवी और उपाधि बन गया।
सम्राट विक्रमादित्य को प्राप्त थीं अलौकिक और देवीय शक्तियाँ
यह कहना गलत नहीं होगा कि आज ये देश और यहां की संस्कृति केवल राजा विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है। क्योंकि सम्राट अशोक मौर्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था और बौद्ध बनकर 25 सालों तक राज किया था। जिसके कारण भारत में सनातन धर्म लगभग समाप्ति के कगार पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन धर्म का प्रचार-प्रसार जोर-शोर पर था। रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थों को लोगों ने नकारना शुरू कर दिया था। ऐसे में इन धर्मगं्रथों का अस्तित्व लगभग खत्म ही हो गया था। ऐसे में सनातन धर्म और अध्यात्म को फिर से खोया हुआ स्थान दिलाने के लिए महाराज विक्रम ने एक बार फिर से इसका प्रचार-प्रसार किया और रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थों को आम जनता के बीच स्थान दिलाया। विक्रमादित्य ने भगवान विष्णु और शिव के कई मंदिर बनवाये। ऐसे में कहा जाा सकता है कि आज विक्रमादित्य के कारण ही सनातन धर्म और हमारी संस्कृति बची हुई है।
सम्राट विक्रमादित्य ने ही वैदों और वैदिक संस्कृति के उस इतिहास को भी फिर से जीवित किया जिसे आज वैदिक या पौराणिक इतिहास कहा जाता है। यह वैदिक इतिहास प्राचीन भारतीय संस्कृति का वह काल खंड है जिसमें अनेकों वेदों की रचना हुई थी। क्योंकि, हड़प्पा संस्कृति के पतन के बाद भारत में एक नई सभ्यता का विकास हो रहा था। ऐसे में उस सभ्यता की जानकारी के जो प्रमुख स्रोत थे वे ही वेद कहलाए। उन्हीं वेदों को आधार मानकर इस काल को वैदिक सभ्यता का नाम दिया गया।
लेकिन यह बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में कोई विशेष लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। जबकि दिल्ली में स्थित कुतुबमीनार- राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया एक ऐसा ”हिन्दू नक्षत्र निरीक्षण केंद्र” है जिसका अध्ययन करने वाले तमाम इतिहासकारों ने इसको सत्यापित किया है कि यह राजा विक्रमादित्य के समय में बना है और यह उन्हीं से संबंधित भी है। अधिकांश विद्वान और इतिहासकार तो विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता को स्वीकार करते हैं लेकिन कुछ भ्रमित लोग ऐसे भी हैं जो इतिहासकार कम और रसूखदार ज्यादा हैं जो सम्राट विक्रमादित्य को एक काल्पनिक राजा ही मानते हैं।
जबकि विक्रम संवत के नाम से जाना जाने वाला हिन्दू कैलंडर, हिन्दी सम्वंत, वार, तिथीयाँ, राशि, नक्षत्र, गोचर आदि आज जो भी ज्योतिष गणना है राजा विक्रमादित्य काल की ही प्रमुख देन है।