अजय सिंह चौहान || तारा तारिणी माता का शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth Temple) उड़ीसा के ब्रह्मपुर यानी आज के बेरहामपुर शहर से 29 किलोमीटर दूर ऋषिकुल्या नदी के किनारे स्थित पुण्यगिरी पर्वत पर है। पुण्यगिरी पर्वत को इस क्षेत्र में रत्नागिरी, तारिणी पर्वत और कुमारी पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार तारा तारिणी माता शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth Temple) के इस स्थान पर माता सती की देह के स्तन भाग गिरे थे इसलिए देवी सती को यहां मां तारा और मां तारिणी के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि इन शक्तिपीठों के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अतुलनीय सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth Temple) के गर्भगृह में विराजित तारा तारिणी को दो बहनों तारा और तारिणी का संयुक्त रूप माना जाता है। इसमें देवी तारा को विद्या की देवी सरस्वती माना गया है। जबकि तारिणी को देवी काली का रूप माना जाता है। इसके अलावा देवी तारिणी को आदिशक्ति दुर्गा भी कहा गया है। तंत्र विद्या के कई साधक नवरात्री के दिनों में और कुछ विशेष अवसरों पर इस स्थान पर साधनाएं करने आते हैं। यहां बौद्ध तांत्रिकों द्वारा भी तंत्र विद्य और पूजा-पाठ करने के प्रमाण मिलते हैं।
शक्तिपीठों में प्रमुख –
तारा-तारिणी माता के इस शक्तिपीठ (Taratarini Shaktipeeth Temple) के विषय में खास बात यह है कि यह उन 4 प्रमुख तंत्र शक्तिपीठ शक्तिपीठों में से एक माना जाता है जिनको तंत्र पीठ या तंत्र विद्या के लिए विशेष माना जाता है।
विभिन्न धर्म शास्त्रों में इन शक्तिपीठों के प्रभावों की महिमा बताई है। देवी भागवत पुराण के अनुसार शक्तिपीठों की संख्या 108 है, जबकि कालिका पुराण में 26 बताई गई है। शिवचरित्र में इनकी संख्या 51 मानी गई है। जबकि दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में इन शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है। और इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है तारा तारिणी शक्तिपीठ का यह मंदिर।
पौराणिक ग्रंथों में जिन चार प्रमुख शक्तिपीठों को तंत्र पीठ के रूप में माना जाता है उनमें ब्रह्मपुर का मां तारा तारिणी शक्तिपीठ (Taratarini Shaktipeeth) या स्तन पीठ, दूसरा पूरी जगन्नाथ मंदिर के परिसर में स्थित बिमला शक्तिपीठ या पाद शक्तिपीठ, तीसरा गुवाहाटी का कामाख्या शक्तिपीठ या योनि शक्तिपीठ और कोलकाता का दक्षिण कालिका शक्तिपीठ या मुख खंड शक्तिपीठ हैं। इन चारों ही शक्तिपीठों को आदि शक्तिपीठ भी माना गया है।
मंदिर के रहस्य –
तारा तारिणी शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth) से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य भी हैं जो इसके एक शक्तिपीठ होने के आलावा इसकी तंत्र परंपरा को बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय से जोड़कर भी देखते हैं। और इसके पीछे का तर्क ये दिया जाता है कि इसके नाम में ‘तारा‘ का होना भी इस धारणा को बल देता है। हालांकि, इस शक्तिपीठ मंदिर में बौद्ध धर्म के उदय होने से पहले से ही पूजा-पाठ होता आ रहा है और आप भी जारी है।
बोद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार तारा बोधिसत्व का स्त्री रूप थी। इसलिए यह मंदिर बोद्ध धर्म से भी जुड़ा हुआ बताया जाता है। जबकि इस क्षेत्र में सम्राट अशोक के शिलालेख और मंदिर में बुद्ध की छोटी सी प्रतिमा के आलावा और कोई ऐसे ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं जिनके आधार पर यह साबित होता है कि शक्तिपीठ के रूप में प्रचलित होने के पहले तारा तारिणी (Taratarini Shaktipeeth) एक समय में बौद्धिक तंत्र पीठ रहा होगा। लेकिन स्थानीय किवदंतियां कहती हैं कि तारा और तारिणी नाम की दो बहनें थीं जिन्हें माता की कृपा से दैवीय शक्तियां प्राप्त हुईं और बाद में उन्होंने इस पहाड़ी पर मंदिर की स्थापना की थी।
मंदिर का इतिहास –
तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर के गर्भगृह में मां तारा और मां तारिणी नाम की दो देवियों की प्रतिमा है। पत्थर पर उकेरी गई दोनों ही प्राचीन मूर्तियां सोने और चांदी के आभूषणों से सज्जित हैं। यह मंदिर वास्तुकला की प्राचीन कलिंग शैली में बनाया गया आकर्षक मंदिर है। हालांकि मंदिर की संरचना एक दम नई है लेकिन फिर भी इसके विषय में कुछ विशेष जानकारियां उपलब्ध नहीं है।
लगभग 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth) तक पहंुचने और वापसी के लिए रोपवे की बहुत अच्छी व्यवस्था है। रोपवे से मंदिर तक जाने में पांच से सात मिनट का वक्त लगता है और इस दौरान आप खेत खलिहानों, आस-पास के गांवों और बगल से बहती हुई उड़ीसा की एक प्रमुख ऋषिकुल्या नदी का सुंदर नजारा भी देख सकते हैं। इसके अलावा पैदल यात्रियों के लिए भी इस पहाड़ी पर एक सड़क है जो मंदिर तक जाती है। और अगर कोई सीढ़ियों से जाना चाहे तो उसकी भी व्यवस्था है।
व्यवस्था विशेष –
तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं और यात्रियों के लिए मंदिर के पास ठहरने के लिए उड़ीसा पर्यटन विभाग की ओर से यहां अतिथि भवन बना हुआ है लेकिन फिलहाल वह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। जबकि यहां से लगभग 25 कि.मी. की दूरी पर ब्रह्मपुर में और करीब 35 कि.मी. की दूरी पर गोपालपुर में बजट के अनुसार हर प्रकार के यात्रियों के लिए ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था उपलब्ध है।
कैसे पहुंचे –
तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth) उड़ीसा राज्य के जिला गंजाम के प्रमुख शहरों में से एक ब्रह्मपुर या बेरहामपुर से लगभग 25 कि.मी. दूर है। ब्रह्मपुर रेलवे स्टेशन से इस मंदिर तक की दूरी मात्र 13 किमी. है। एक प्रमुख शहर होने के कारण यहां जाने-आने के लिए ट्रेनों की अच्छी सुविधा है। ब्रह्मपुर या बेरहामपुर स्टेशन से टैक्सी, आटो और बस के द्वारा इस जगह तक पहुुंचना आसान है। इसके अलावा भुवनेश्वर, विशाखापटनम और पुरी से भी यहां जाने के लिए टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
जदीकी हवाई अड्डा –
तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth) के लिए यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा भुवनेश्वर में उपलब्ध है जो मंदिर से 170 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा एक अन्य हवाई अड्डा यहां से 250 किलोमीटर दूर विशाखापट्नम में है।
कब जायें –
तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth) के दर्शनों के लिए जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का हो सकता है।
अन्य दर्शनीय स्थल –
तारा तारीणी शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth) के आस-पास के दर्शनीय और पर्यटन के लिहास से माने जाने वाले अन्य स्थानों में तप्तपाणी लगभग 100 कि.मी., भैरवी 55 कि.मी., मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेख जउगढ़ 10 कि.मी. और एशिया की सबसे बड़ी चिलका झील यहां से लगभग 50 कि.मी. दूर है।