मूल 18 पुराणों में विष्णु पुराण सर्वाधिक पुराना है। इसका प्रवचन वेदव्यास जी के पिता पराशर ऋषि जी ने किया था। विष्णु पुराण के श्लोकों की संख्या 23,000 बतलाई गई है, परंतु आज गीता प्रेस या अन्य जगह से मिलने वाले विष्णु पुराण में 6,000 श्लोक ही मिलते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि वह विष्णु पुराण कहां है, जिसमें 23,000 श्लोक थे?
आधुनिक समय में इस गुत्थी को सुलझाया आचार्य शिवप्रप्रसाद द्विवेदी (श्रीधराचार्य) ने। एक बहुत पुरानी विष्णु धर्मोत्तर पुराण उनके हाथ लगी। विष्णु धर्मोत्तर पुराण के तीसरे खंड में लिखा था:-
इति श्रीविष्णुपुराणस्य द्वितीय भागो विष्णुधर्मोत्तरे तृतीय खंड:। विष्णु पुराणं समाप्तम्।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण में श्लोकों की संख्या 17,000 है। अब विष्णु पुराण के 6,000 श्लोक को इसमें जोड़ दें तो यह संख्या 23,000 हो जाती, जो पौराणिक काल से विष्णु पुराण की संख्या बताई गई है।
मैं पहले विष्णु धर्मोत्तर पुराण को उप पुराण मानता था, लेकिन उपपुराण में इसका नाम कहीं नहीं है। यह तीन प्रमाण साबित करते हैं कि यह बृहत पुराण विष्णु पुराण का ही हिस्सा है।
आचार्य शिवप्रसाद द्विवेदी जी ने उस पुराने ग्रंथ को आधार बनाकर नये सिरे से इस पर टीका लिखा और चौखंबा ने उस टीका को प्रकाशित किया, जिस कारण विष्णु धर्मोत्तर पुराण आज बच पाया। तीन खंडों में उपलब्ध यह एक बृहत पुराण है, जिसके प्रथम खंड में 269 अध्याय, दूसरे खंड में 183 अध्याय और तीसरे खंड में 355 अध्याय है। यह असल में हिंदू धर्म और ब्राहांड का एनसाइक्लोपीडिया है।
चौखंबा प्रकाशन ने इसे छापकर हिंदू समाज पर बड़ा उपकार किया है। अन्यथा यह बृहत पुराण आज विलुप्त प्राय है। चौखंबा से हमने Kapot Prakashan & e-commerce पर इसे उपलब्ध करा दिया है। कम कॉपी ही आई है। आप सब चाहें तो निम्न लिंक पर जाकर इसे क्रय कर सकते हैं। यह एक अनमोल धरोहर है। धन्यवाद।
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