रूस के वैज्ञानिकों ने पृथिवी के सबसे मुश्किल जगह पर तरबूज उगाकर दुनिया को हैरान कर दिया है। दरअसल, यह कारनामा किया है अंटार्कटिका जैसी पृथिवी की सबसे ठंडी जगह पर। हैरानी की बात है की अंटार्कटिका के क्षेत्र में (watermelon cultivation in Antarctica) औसत तापमान करीब -10 डिग्री सेल्सियस से -60 डिग्री सेल्सियस तक भी रहता है। ऐसे में यदि गर्म और शुष्क क्षेत्रों में उगाये जाने वाले तरबूज को यदि अंटार्कटिका जैसी पृथिवी की सबसे ठंडी जगह पर भी न सिर्फ उगाया बल्कि उसमें लगने वाले फल यानी तरबूजों को पकने और खाने लायक स्थिति में पहुंचाया जा सकता है तो यह एक चमत्कार ही कहा जा सकता है।
वैज्ञानिकों की टीम ने इस प्रयोग के सफल होने पर कहा की हम न केवल यह साबित करने में सफल रहे कि तरबूज़ को पृथिवी के सबसे ठंडे स्थान पर उगाया जा सकता है, बल्कि इससे अंटार्कटिका (watermelon cultivation in Antarctica) की कठोरतम परिस्थितियों में रहने वाले वैज्ञानिकों को एक प्राकृतिक नाश्ता भी मिल सकता है।
दरअसल, रूस के वैज्ञानिकों ने यह चमत्कार कर के दिखाया है पृथिवी के एक ऐसे सबसे मुश्किल स्थान पर जिसको अपनी वैज्ञानिक गतिविधियों के लिए रूस सालभर इस्तमाल करता है और यह है ‘वोस्तोक स्टेशन’ जो की ‘पोल ऑफ कोल्ड’ यानी इस पृथ्वी की (watermelon cultivation in Antarctica) सबसे ठंडी जगह। ‘लाइव साइंस’ की खबरों में बताया गया है कि रूसी वैज्ञानिकों की यह उपलब्धि किसी कल्पना को साकार करने जैसा ही है।
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‘लाइव साइंस’ द्वारा जारी खबरों के अनुसार, रूस के वैज्ञानिकों ने ‘वोस्तोक स्टेशन’ के ग्रीनहाउस में तरबूजों को उगाने के लिए और इसे अधिक अनुकूल बनाने के लिए, एग्रोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और रूसी एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल प्रॉब्लम्स के सहयोगियों के साथ मिलकर काम किया। साथ ही इसके लिए एक ऐसी जगह का भी निर्माण किया जहां पर आर्द्रता और हवा के तापमान को ऐसी परिस्थितियों में बढ़ा सकते थे जो जूस वाले फलों के लिए सबसे सही हो।
ख़बरों के अनुसार वैज्ञानिकों की टीम ने इस प्रयोग के लिए तरबूजों (watermelon cultivation in Antarctica) की दो किस्मों का चयन किया जो बहुत जल्दी पक जातीं हैं। यहाँ वैज्ञानिकों का मकसद न केवल उन तरबूजों का स्वाद परखना था बल्कि ग्रीनहाउस के अंदर के कम वायुमंडलीय दबाव और ऑक्सीजन की कमी के बाद उनकी क्षमता को भी परखना था।
वैज्ञानिकों की टीम ने इस प्रयोग के दौरान तरबूजों को उगाने के लिए बीजों को मिट्टी की एक पतली परत में बोया और फिर इनके लिए खास तरह से सूरज की रोशनी जैसी ही artificial यानी कृत्रिम रोशनी की व्यवस्था की। वैज्ञानिकों का कहना है कि पौधों को परागित (Pollination) यानी उत्पादन के योग्य या सक्षम बनाने के लिए कोई कीड़े नहीं थे इसलिए हमने अपनी हाथों से ही हर एक बीज को परागित किया।
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बीज बोने के मात्र 103 दिनों के बाद ही इन शोधकर्ताओं को पके और मीठे तरबूजों के आठ फल नजर आए। ये तरबूज करीब दो पाउंड यानी एक किलो वजन तक बढ़ गए थे। इनमें से प्रत्येक का लगभग व्यास 5 इंच यानी 13 सेंटीमीटर तक था।
वैज्ञानिकों की टीम ने इस प्रयोग के सफल होने पर कहा की हम न केवल यह साबित करने में सफल रहे कि तरबूज़ (watermelon cultivation in Antarctica) को पृथिवी के सबसे ठंडे स्थान पर उगाया जा सकता है, बल्कि इससे अंटार्कटिका की कठोरतम परिस्थितियों में रहने वाले वैज्ञानिकों को एक प्राकृतिक नाश्ता भी मिल सकता है।
– अशोक सिंह