संत कबीर के समकालीन और नर्मदाघाटी के संत के नाम से विख्यात संत सिंगाजी महाराज साक्षर नहीं थे, लेकिन फिर भी भक्ति के आवेश में जो भी पद बना कर वे जनता के बीच गाते थे, उनके अनुयायी उन्हें लिख लेते थे। उनके ऐसे ही पदों की संख्या लगभग 800 से भी अधिक बताई जाती है। उनके पदों को आज भी मालवा और निमाड़ क्षेत्र में बड़े ही भक्तिभाव से गाया जाता है।
निमाड़ के संत के नाम से विख्यात संत और कवि सिंगाजी कबीर की तरह ही फक्कड़ कवि थे। वे भी कबीरदास की तरह धार्मिक कर्मकाण्डों और पाखण्डों का विरोध करते रहे और सभी जातियों को एक जुट करके नए समाज की रचना करना ही उनके पदों का उद्देश्य था। इसीलिए संत सिंगाजी को निमाड़ का कबीर कहा जाता है।
संत सिंगाजी ने अपने पदों और गीतों में समाज के दलित और उपेक्षित वर्ग को ऊपर उठाने के लिए बहुत जोर दिया है। तभी तो प्रसिद्ध कवि और स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय माखनलाल चतुर्वेदी ने संत सिंगाजी महाराज के विषय में कहा था कि वे नर्मदा की तरह अमर प्राणवर्धक और युग की सीमा-रेखा बनाने वाले संत थे।
संत श्री सिंगाजी महाराज का जन्म मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के पिपलिया नामक एक छोटे से कस्बे के नजदीक, खजुरी नाम के गांव में 24 अप्रैल वैशाख सुदी की नवमी को हुआ था। कोई उनका जन्म 1518 में बताता है तो कोई 1519 में। गवली समाज के एक साधारण परिवार में जन्मे सिंगाजी शुरू से ही पशुपालन के कार्य से जुड़े हुए थे।
सिंगाजी महाराज के 4 बेटों के पिता थे। उनकी पत्नी का नाम यशोदा बाई था। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बहुत ही ईमानदार और एकांत स्वभाव के व्यक्ति थे। जब वे पशुओं को चराने के लिए जंगल में जाते तो वहाँ दूसरे ग्वालों से दूर रहकर प्रकृति के बीच रमे रहते थे।
मालवा और निमाड़ क्षेत्र के लगभग सभी गावों और कस्बों में संत सिंगाजी महाराज के जीवन पर आधारित किस्से और कहानियों का बड़ी ही सुन्दरता से मंचन किया जाता है और कथा-प्रवचन आदि का आयोजन भी होता है जिसमें उनकी अद्भुत लीलाओं का वर्णन किया जाता है। इसके अलावा स्थानीय लोग संत सिंगाजी के मंदिर में कई प्रकार की मान-मन्नत उतारने के लिए भी पहुंचते हैं। उनके समाधिस्थल पर एक बहुत बड़ा भी आयोजित किया जाता है जिसमें लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं। इसके अलावा आज भी उनके गांव में हर साल वैशाख सुदी नवमी को संत सिंगाजी महाराज का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
संत सिंगाजी महाराज ने लगभग 40 साल की उम्र में ही अपनी देह त्याग दी थी। यह भी कहा जाता है कि देह त्यागने के छह महीने के बाद सिंगाजी महाराज ने अपने शिष्यों के सपने में आकर उनकी लेटाई हुई देह को बैठे हुए आसन के रूप में समाधि देने के निर्देश दिए थे। जिसका पालन करते हुए समाधि से उनकी अखंड देह निकालकर उन्हें पुनः समाधि दी गई। कहा जाता है कि तब से लेकर आज तक संत सिंगाजी महाराज की समाधि पर अखंड दीप प्रज्ज्वलित हो रहा है।
संत सिंगाजी के चमत्कारों को आज भी यहां के लोग महसूस करते हैं। संत सिंगाजी के विषय में विद्वानों का मानना है कि श्रृगी ऋषि ने ही सिंगाजी के रूप में जन्म लिया था। क्योंकि संस्कृत में ‘श्रृग’ का अर्थ सींग होता है और ‘सिंगा’ भी ‘सिंग’ का रूप है, इसीलिए उन्हें संत सिंगाजी कहा जाता है।
संत सिंगाजी के जन्मस्थान पर बने मंदिर में उनके पदचिन्ह स्थापित हैं। इसके अलावा यहां पर घी की अखण्ड ज्योत भी प्रज्वलित रहती है। इस क्षेत्र के लोग उनके जन्म स्थान व समाधि स्थल पर उनके पदचिह्नों की पूरे श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना करते हैं। स्थानीय लोगों द्वारा यहां रोज शाम को मंदिरों में सिंगाजी के भजन और पद गाये जाते हैं।
शरद पूर्णिमा पर लगने वाले सिंगाजी के मेले को देखने और अनेकों प्रकार के लोक संगीत और लोक गीतों का आनंद लेने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश के लोग पहुंचते हैं। इस मेले में पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ समेत महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की संस्कृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है।
संत सिंगाजी के इस मंदिर में हर साल करीब ढाई से तीन लाख श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं। निमाड़ की पहचान और आस्था के प्रतीक इस मेले में बड़वानी, होशंगाबाद, झाबुआ, इंदौर, उज्जैन, खरगोन, बैतूल के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों के श्रद्धालुओं और भक्तों का जनसैलाब आता है।
संत सिंगाजी महाराज की समाधि आज से लगभग 460 साल पुरानी है जो बीड़ के पास खंडवा से 45 किमी दूर है। वर्तमान में यह क्षेत्र नर्मदा नदी पर बने इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर के डूब क्षेत्र का हिस्सा बन चुका है। लेकिन, प्रशासन द्वारा इस मूल मंदिर का 80 से 90 फीट ऊंचा किसी किले के आकार का अति सुंदर परकोटा बनाकर इसको सुरक्षित कर दिया गया है। जबकि इसके चारों तरफ का क्षेत्र इंदिरा सागर परियोजना द्वारा संरक्षित अथाह जल भरा रहता है और उसके बीच में इस मानव निर्मित टापू के ऊपर आम लोगों को संत सिंगाजी महाराज के मंदिर में दिव्य दर्शन होते हैं।
स्थानीय लोगों के विस्थापित होने के बाद गांव तो डूब गया, लेकिन एनएचडीसी यानी इंडियन हाईड्रोपाॅवर जनरेशन कंपनी ने संत सिंगाजी महाराज की मूल समाधि को गोल कुएं के आकार में 40 मीटर ऊपर उठा दिया और समाधि तक पहुंचने के लिए लगभग दो किलोमीटर लंबा एक सुंदर पुलनुमा रास्ता भी बना दिया, जिसके द्वारा श्रद्धालु वहां आसानी से आ-जा सकते हैं।
महान समाज सुधारकों में से एक थे संत श्री सिंगाजी महाराज | Sant Singa Ji Maharaj
लगभग 100 एकड़ में फैला यह टापू आज देश का सबसे आधुनिक और सबसे सुंदर मानव निर्मित टापू बन गया है। इस समाधि स्थल को टापू का रूप देने का काम सन 2001 में शुरू हुआ था जो सन 2004 में पूरा कर लिया गया। इसको तैयार करने में लगभग 9 करोड़ रुपए की लागत आई थी। इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर के बीच बना यह मानव निर्मित टापू और संत सिंगाजी महाराज का समाधि स्थल अद्भूत और दर्शनिय नजर आता है। इस टापू पर शरद पूर्णिमा के विशेष अवसर पर हर साल मेले का आयोजन किया जाता है।
इसके अलावा, संत सिंगाजी महाराज के नाम से यहां 600 किलोवाॅट बिजली उत्पादन करने के लिए थर्मल पाॅवर प्लांट की दो युनिट भी बनाई गई हैं जिनका उद्घाटन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा सन 2015 में किया गया था।
तो अगर आप लोग भी संत सिंगाजी महाराज मंदिर के दर्शनों के लिए जाना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से अप्रैल के बीच का हो सकता है। संत सिंगाजी महाराज का यह समाधि मंदिर खरगोन शहर से 90 किलोमीटर, इंदौर से 150 किलोमीटर और ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से 72 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल मार्ग से यहां जाने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन खंडवा जंक्शन है। खंडवा जंक्शन से मंदिर की दूरी लगभग 60 किलोमीटर दूर है। जिसको तय करने के लिए टैक्सी या बस की सेवा लेनी होती है।
अगर आप लोग भी पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थानों में दिलचस्पी रखते हैं तो कम से कम एक बार तो ऐसे स्थानों पर जरूर जाना चाहिए और जानना चाहिए कि आखिर ऐसे क्या कारण हैं कि हमारे जिन धार्मिक और ऐतिहासिक स्थानों पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है उनकी क्या-क्या मान्यताएं हैं और हम उनके बारे में कितना जानते हैं?
– अजय सिंह चौहान