अजय सिंह चौहान || श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। और अगर आप यहां जाते हैं तो उसके लिए आपको औरंगाबाद शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर वेरुल नामक एक गांव पहुंचना होता है जहां यह मंदिर है। श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को कुछ लोग घुश्मेश्वर के नाम से भी जानते हैं। इसके अलावा यह 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे अंतिम यानी 12वें स्थान पर पूजा जाता है। औरंगाबाद महाराष्ट्र के प्रमुख महानगरों में से एक है। इसलिए देश के किसी भी भाग से यहां तक पहुंचने के लिए सड़क से, रेल से और हवाई जहाज से भी बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग से –
तो, यहां सबसे पहले तो बता दें कि, अगर आप घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के लिए सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 211, घृष्णेश्वर मंदिर और औरंगाबाद शहर के पास ही से होकर निकलता है। मुंबई से यह दूरी आपको करीब 300 किलोमीटर, शिरडी से 170 किलोमीटर, नासिक से 175 किलोमीटर, त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर 200 किलोमीटर, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर 300 किलोमीटर और पुणे से 250 किलोमीटर तय करनी होती है।
हवाई यात्रा के लिए –
इसके अलावा, अगर कोई यहां हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो इसके लिए यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट औरंगाबाद में ही है जो यहां से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर है।
रेल यात्रा के लिए –
अब हम बात करेंगे कि कैसे, आप श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के लिए देश के किसी भी भाग से या अपने शहर से औरंगाबाद तक पहंुचेंगे? तो बता दें कि औरंगाबाद के लिए देश के कई हिस्सों से सीधे ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन, फिर भी, अगर, आपके शहर या राज्य से औरंगाबाद के लिए सीधे यह सुविधा नहीं है तो आप पहले मनमाड़ पहुंच सकते हैं, और फिर मनमाड़ से ही दूसरी ट्रेन लेकर औरंगाबाद के लिए जा सकते हैं।
‘मनमाड़’ में रेलवे का एक प्रमुख जंक्शन है इसलिए यह जंक्शन, मनमाड़ से पुणे, मुंबई, नांदेड़, नासिक और औरंगाबाद जैसे महाराष्ट्र और देश के कई प्रमुख और अधिकतर शहरों को जोड़ता है। इसलिए अगर आप पहले मनमाड़ पहुंच जाते हैं तो वहां से आपको औरंगाबाद के लिए कई ट्रैनें मिल जायेंगी।
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इसके अलावा, मनमाड़ से चलने वाली कुछ पैसेंजर ट्रैनें दौलताबाद से होकर भी गुजरती हैं। दौलताबाद का यह स्टेशन, औरंगाबाद शहर के बाहरी क्षेत्र में पड़ता है। दौलताबाद स्टेशन से घृष्णेश्वर मंदिर की दूरी करीब 20 किलो मीटर रह जाती है। जबकि, इस रेल मार्ग द्वारा मनमाड़ से दौलताबाद के बीच की यह दूरी करीब 100 किलोमीटर पड़ती है। आप चाहें तो दौलताबाद के लिए भी किसी पैसेंजर ट्रेन से आना जाना कर सकते हैं।
दौलताबाद स्टेशन से आपको सीधे मंदिर तक जाने-आने के लिए शेयरिंग वाले ऑटो, जीप, टैक्सी और बसों की सुविधा मिल जाती है। लेकिन, फिर भी यहां इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप रेल से जा रहे हैं तो मनमाड़ से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तक जाने के लिए सबसे अच्छा रहेगा कि आप औरंगाबाद से होकर ही जायें। इसलिए हम भी यहां, औरंबाद से ही इस यात्रा की जानकारियों की शुरूआत करेंगे।
स्टेशन से आगे –
तो यात्रा को आगे बढ़ाते हुए बता दें कि जब आप औरंगाबाद स्टेशन पर उतरते हैं और यहां से श्री घृष्णेश्वर मंदिर के लिए बस से जाना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां स्टेशन से बाहर आने के बाद यहां के यानी औरंगाबाद के सेंट्रल बस स्टैंड के लिए करीब दो किलोमीटर दूर जाना होगा। स्टेशन से सैंट्रल बस स्टैंड की इस दो किलोमीटर की दूरी के लिए ऑटो बुक करके जाने पर करीब 60 रुपये और शेयरिंग ऑटो से करीब 20 रुपये देने होते हैं।
स्टेशन से औरंगाबाद के इस सैंट्रल बस स्टैंड पहुंचने के बाद यहां से महाराष्ट्र रोडवेज की बसों के द्वारा वेरुल तक यानी श्री घृष्णेश्वर मंदिर तक जाने के लिए बसों की अच्छी सुविधा मिल जाती है। औरंगाबाद के सैंट्रल बस स्टैंड से मंदिर तक करीब 25 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से किराया देना होता है।
लेकिन, अगर आप स्टेशन से बाहर निकलने के बाद सीधे श्री घृष्णेश्वर मंदिर के लिए टैक्सी या कार की सुविधा लेना चाहते हैं तो उसके लिए आपको यहां इंडिका और स्वीफ्ट जैसी चार सीटर टैक्सी या कार के करीब 1,400 रुपये और टोयटा या इनोवा जैसी टैक्सी के 2,000 रुपये तक भी देने पड़ सकते हैं।
कहां ठहरें –
अगर आप यहां मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित ओम सिद्धेश्वर भक्त निवास में जाते हैं तो आपको यहां अच्छी सुविधाओं वाला एक नाॅन एसी डबल बेड कमरा 600 रुपये में और एसी कमरा 800 रुपये तक में मिल जाता है। लेकिन, अगर आपके साथ परिवार के सदस्यों की संख्या ज्यादा है तो उस संख्या के हिसाब से आपको यहां प्रति व्यक्ति 100 रुपये अधिक देने होंगे।
इसके अलावा अगर आप मंदिर से करीब एक किलोमीटर दूरी पर साईं यात्री निवास में जाते हैं तो यहां आपको कम से कम 1,000 तक में बहुत अच्छी सुविधाओं वाला कमरा मिल जाता है। इसके अलावा यहां देवस्थान ट्रस्ट के भक्त निवास में भी अच्छी सुविधाओं वाले कमरे बजट के अनुसार मिल जाते हैं। लेकिन, अगर यहां भी यह सुविधा ना मिल पाये तो आपको यहां की जैन धर्मशाला में अपने बजट के अनुसार कमरा मिल जाता है। इन सब के अलावा भी यहां इसी तरह के कई होटल और धर्मशालाएं देखने को मिल जाती हैं।
इसके अलावा आप चाहें तो औरंगाबाद और दौलताबाद में भी ठहरा जा सकता है। यहां भी बजट के अनुसार अनेकों छोटे-बड़े होटल मिल जायेंगे।
दर्शन करने से पहले –
श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव का अति प्राचीन और विश्व प्रसिद्ध मंदिर है इसलिए सावन के महीने में या फिर शिवरात्र जैसे कुछ विशेष अवसरों पर यहां अधिकतर नजदीक से आने वाले और स्थानीय श्रद्धालुओं की भीड़ अन्य दिनों के मुकाबले बहुत अधिक देखने को मिलती है। इसलिए अगर आप अपने परिवार के बच्चों और बुजुर्गों के साथ यहां एक अच्छी और यादगार यात्रा पर जाना चाहते हैं तो कोशिश करें कि ऐसे कुछ विशेष अवसरों की भीड़ से दूर रहें और यहां जाने से बचें।
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तो मंदिर के पर पहुंच कर जैसे ही आप प्रवेश द्वार के पास जाते हैं आपको यहां अपने पर्स, मोबाईल, कैमरा और जूता-चप्पल जैसे सामानों को सुरक्षित जगह पर रखने के लिए लाॅकर्स की सुविधा मिल जायेगी। इसके बाद आप प्रसाद लेकर मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के खुले प्रांगण में श्रद्धालुओं की लाइन देखने को मिल जाती है। आम दिनों में यहां श्रद्धालुओं की बहुत अधिक भीड़ देखने को नहीं मिलती। इसलिए अधिक से अधिक आधा या पौना घंटे में आराम से दर्शन हो जाते हैं।
मंदिर के सभा मंडप के पास पहुंच कर महिलाओं और पुरुषों की दो अलग-अलग लाइनें हो जाती हैं। सभा मंडप में प्रवेश करने के बाद और गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले सभी पुरुष श्रद्धालुओं को परंपरा के अनुसार अपना शर्ट या कुर्ता उतार कर ही गर्भगृह में प्रवेश करना होता है।
मंदिर संरचना का इतिहास –
इस मंदिर को सबसे अधिक इसकी आकर्षक शिल्प कारीगरी के लिए भी जाना जाता है। और, इस मंदिर की शिल्प कारीगरी जितनी आकर्षक और मनमोहक है, उतना ही क्रुरता से भरा इसका इतिहास भी रहा है। औरंगजेब के समय में इस मंदिर को भारी क्षति पहुंचाई गई थी। लेकिन, उसके बाद यहां एक बार फिर से मराठा राज कायम होने के बाद इस मंदिर को फिर से खड़ा किया गया और, 18वीं शताब्दी में देवी अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में इस मंदिर का पूर्ण रूप से जिर्णोद्धार किया गया था। आज जिस संरचना को हम देख पा रहे हैं यह वही संरचना है जिसका निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने स्वयं अपने समय में करवाया था।
इसके सभा मंडप में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं, जिसमें से एक द्वार महाद्वार कहलाता है और अन्य दो द्वारों को पक्षद्वार कहते हैं। जैसे ही आप मंदिर में प्रवेश के लिए सभा मंडप की सीढ़ियां चढ़ते हैं, आपको यहां नंदी महाराज की कलात्मक और नक्काशीदार मूर्ति के दर्शन होते हैं। इसके अलावा इसकी दीवार की कमान पर गणेशजी की मूर्ति और सभा मंडप के बीच में कलात्मक कारीगरी युक्त पवित्र कछुआ भी दर्शाया गया है। और जब आप इसके सभा मंडप के खंभों और दिवारों पर नजर डालेंगे तो आपको इसमें 24 मजबूत और बड़े आकार के पत्थरों को तराश कर बनाये गये स्तंभों या खंभों पर अति प्राचीन और मध्ययुगीन हिन्दू शिल्पकला और कारीगरी देखने को मिलेगी। यह मंदिर इसी अति प्राचीन और मध्ययुगीन हिन्दू शिल्पकला के लिए सबसे अधिक जाना जाता है।
नागरा शैली में बने इस मंदिर की उंचाई के लगभग आधे भाग तक लाल पत्थर पर भगवान विष्णु के दशावतारों के अलावा और भी कई देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं। पुरातत्व, ऐतिहासिक और नागरा वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर हिंदू धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा मंदिर के परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा अन्य कई छोटे बड़े मंदिर भी हैं।
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शिवालय तीर्थ कुंड के बारे में –
और अब श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर दर्शन यात्रा के अंतिम पड़ाव में हम बात करेंगे उस शिवालय तीर्थ कुंड या पोखर की जिसकी पौराणिक कथा इस ज्योतिर्लिंग मंदिर से जुड़ी हुई है। पौराणिक युग का यह शिवालय कुंड मंदिर से करीब 400 मिटर की दूरी पर स्थित है। यह वही शिवालय तीर्थ है जिसके किनारे पर भगवान शिव की परम भक्त घुष्मा प्रति दिन पूजा किया करती थी। घुष्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित होने का वचन दिया था। आज यहां मंदिर के पास हम जिस पौराणिक युग के पवित्र शिवालय तीर्थ कुंड को आकर्षक, नक्काशीदार और विशेष आकार और प्रकार के रूप में देखते हैं उस शिवालय कुंड को भी देवी अहिल्याबाई होलकर ने ही 18वीं शताब्दी के अपने शासन काल में मंदिर के जिर्णोद्धार के साथ-साथ इसे भी नक्काशीदार पत्थरों की सहायता से संुदर और आकर्षक रूप में सजाया था।
यहां का मौसम –
अब हम बात करेंगे श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की यात्रा पर जाने के समय को लेकर। वैसे तो यहां बारहों मास के किसी भी मौसम में जाया जा सकता है। लेकिन, अगर आपके साथ परिवार के बच्चे और बुजुर्ग भी हों तो ऐसे में आप यहां अक्टूबर से फरवरी मार्च के महीनों में जाने का प्रयास करें।
आस-पास के प्रमुख स्थान –
इस मंदिर से मात्र एक किलो मीटर की दूरी पर स्थित है सन 600 से 1,000 इसवी काल में पहाड़ को काटकर बनाई गई विश्व प्रसिद्ध एलोरा की वो गुफाएँ जो युनेस्को द्वारा विश्व धरोहरों में शामिल हैं। इसके अलावा यहां से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर औरंगजेब की पत्नी रबिया दूरानी का मकबरा भी है जो बीबी का मकबरा यानि पश्चिम का ताजमहल कहलाता है।