सनातन संस्कृति का डंका पूरे विश्व में प्राचीन काल से ही बजता रहा है। समय-समय पर तमाम लुटेरों एवं आक्रांताओं ने सनातन संस्कृति को तहस-नहस करने की कोशिश की है। इसके बावजूद आज भी देश में सनातन संस्कृति की जड़ें काफी गहरी हैं किंतु
हिंदुस्तान में वर्तमान स्थिति में तमाम बड़े मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं। इससे मंदिर अपनी योजना के मुताबिक कुछ भी नहीं कर पाते हैं।
धार्मिक स्थलों को यदि नियंत्रण में लेना है तो सभी धर्म के धार्मिक स्थलों को लेना चाहिए। सिर्फ एक ही धर्म के धार्मिक केन्द्रों को
सरकारी नियंत्रण में लेना निहायत ही अनुचित है। हिंदू मंदिरों का पैसा यदि सरकार अपने मन मुताबिक खर्च करती है तो अन्य धर्मों का भी पैसा सरकारी सिस्टम के तहत खर्च होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो यह माना जाना चाहिए कि सरकार ने जान-बूझकर हिंदू धर्म को कमजोर करने का कार्य किया है और आज भी कर रही है। मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण से हिंदू समाज की भावनाओं को आघात पहुंचा है। नैतिकता के आधार पर सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वह हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करे अन्यथा सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों को सरकारी नियंत्रण में ले।
बिजली सब्सिडी के लिए अब आम जनता को फैलानी होगी झोली –
आजकल पूरे देश में रेवड़ी संस्कृति को लेकर चर्चा जोरों पर है। तमाम लोग कह रहे हैं कि यदि ऐसे ही रहा तो देश में आर्थिक संकट आ सकता है। इस विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है। अपने देश में एक प्राचीन कहावत है कि यदि किसी को बिना कुछ किये बैठकर खाने की आदत पड़ जाये तो वह कुछ नहीं करना चाहता है। वैसे भी जन कल्याणकारी योजनाएं सिर्फ उन्हीं के लिए होती हैं, जिन्हें इसकी जरूरत होती है।
एक तरफ से यदि सभी को जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगे तो व्यवस्था बिगड़ जायेगी। आजकल दिल्ली सरकार ने एक नया शिगूफा छोड़ दिया है कि यदि बिजली सब्सिडी का लाभ किसी को लेना है तो उसे फार्म भरना होगा यानी उसे दिल्ली सरकार के सामने झोली फैलाकर यह कहना पड़ेगा कि उसे बिजली सब्सिडी की जरूरत है। बिजली सब्सिडी के लिए सरकार के समक्ष जो झोली नहीं फैलायेगा, उसे नहीं मिलेगी।
किसी मुद्दे पर जनता की राय लेना बहुत अच्छी बात है किन्तु यदि सभी मामलों में ऐसा किया जाये तो ज्यादा अच्छा होगा। दिल्ली में शराब की दुकानें खोलने के मामले में सरकार ने जनता की राय लेना उचित नहीं समझा। कदम-कदम पर यह दोहरा रवैया ठीक नहीं है।
– आचार्य नंद किशोर, मिर्जापुर