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श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के विवाह का साक्षी है यह देवी मंदिर | Avantika Devi Temple Bulandshahr

admin 10 April 2021
Avantika Devi Temple Bulandshahr
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अजय सिंह चौहान || माता अवंतिका देवी का मंदिर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद मुख्यालय से लगभग 47 किलोमीटर दूर और अनूपशहर तहसील के अंतर्गत गंगा नदी के किनारे पर अहार क्षेत्र में स्थित है। महाभारत में इस स्थान और मंदिर का विशेष उल्लेख होने के कारण यह मंदिर इस क्षेत्र विशेष के लिए ही नहीं बल्कि देश, धर्म और दुनियाभर के लिए विशेष माना जाता है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस सिद्धपीठ मंदिर में विराजित अवंतिका देवी जिन्हें अम्बिका देवी भी कहते हैं साक्षात् प्रकट हुई थीं।

 

भले ही प्रशासन की ओर से इस क्षेत्र को धार्मिक या पर्यटन क्षेत्र का दर्जा और अन्य जन सुविधाएं न मिली हों, लेकिन माता अवंतिका देवी के प्रति आस्था और श्रद्धा आस-पास के राज्यों में रहने वाले भक्तों के साथ-साथ देश-विदेश तक विख्यात है। गंगा नदी के किनारे पर स्थित इस अहार क्षेत्र को प्राचीन और धार्मिक स्थानों के नाम से भी पहचाना जाता है।

यदि अवंतिका देवी के इस मंदिर के महत्व और मान्यताओं की बात की जाय तो माना जाता है कि इस सिद्धपीठ पर माता भगवती अवंतिका देवी या जिनको देवी अम्बिका के नाम से भी जाना जाता है वे साक्षात प्रकट हुई थीं। इस मंदिर के गर्भगृह में दो संयुक्त मूर्तियां विराजित हैं, जिनमें बाईं तरफ माता भगवती जगदम्बा की मूर्ति है और दायीं तरफ देवी सती की मूर्ति है।

गर्भगृह में स्थापित ये दोनों मूर्तियां ‘अवंतिका देवी‘ के नाम से प्रतिष्ठित हैं। इसमें माता भगवती अवंतिका देवी को वस्त्र नहीं चढ़ाये जाते हैं, लेकिन सिन्दूर और देशी घी का चोला या आभूषण चढ़ाया जाता है। इसका कारण क्या है यह कहना कठीन है लेकिन मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु या भक्त माता भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर और देशी घी का चोला चढ़ाते हैं, देवी मां उसनी मनोकामनाओं को पूरा करतीं हैं। यहां विशेषकर कुंआरी युवतियां अपने मनचाहे वर की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं।

कहा जाता है कि यह वही मंदिर है जिसमें रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं देवी अवंतिका का पूजन किया था और उसी के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था। कहते हैं कि रुक्मिणी के पिता राजा रुकम ने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से तय कर दिया था। लेकिन रुक्मिणी ने वर के रूप में मां अवंतिका देवी से भगवान श्रीकृष्ण को मांगा था और रुक्मिणी की पूजा अर्चना से प्रसन्न होकर मां अवंतिका देवी ने उनकी मनोकामना पूरी की थी।

अहार के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र आज भी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का साक्षी है। यहां आज भी जो सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ पाये जाते हैं, उनके बारे में माना जाता है कि इन्हीं पेड़ों के फूलों से श्रीकृष्ण की बारात का स्वागत किया गया था। इसके अलावा इस क्षेत्र के कई गांव ऐसे हैं जिनके नाम भी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की रस्मों पर ही आधारित हैं।

माना जाता है कि आज का यह अहार क्षेत्र, महाभारत काल के महा प्रतापी राजा भीष्मक के देश विदर्भ की राजधानी कुण्डिनपुर हुआ करती थी। राजा भीष्मक चाहते थे कि उनकी पुत्री रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण के साथ हो, लेकिन रुक्मिणी के भाई रुक्मी नहीं चाहते थे कि श्रीकृष्ण के साथ उनकी बहन का विवाह हो।

श्रीकृष्ण को जब इसका पता चला तो उन्होंने इस क्षेत्र के माता अवंतिका देवी के प्राचीन मंदिर में पूजन करने आई रुक्मिणी का हरण कर लिया और इसके बाद श्रीकृष्ण-रुक्मिणी का विवाह हो गया। इसीलिए देवी रुक्मिणी को साक्षात माता लक्ष्मी का अवतार भी माना गया है। बताया जाता है कि यहां के सैकड़ों वर्ष पुराने खिन्नी, कदंब, इंद्रजों वृक्ष के कुछ पेड़ आज भी इस क्षेत्र में अपनी महक बिखेर रहे हैं जिनके फूलों से श्रीकृष्ण की बारात का स्वागत किया गया था।

स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां के कई गांवों के नाम आज भी उसी प्रकार से हैं जो इस बात को सिद्ध करते हैं कि यही वह क्षेत्र है जहां श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह हुआ था। जैसे कि यहां के मोहरसा गांव के बारे में बताया जाता है कि मोहरसा में श्रीकृष्ण का मोहर बंधा था, इसलिए इसका नाम मोहरसा पड़ा।

दराबर गांव के बारे में माना जाता है कि यहां श्रीकृष्ण का दरबार लगता था। जबकि बामनपुर गांव में श्रीकृष्ण की बारात का ब्रह्मभोज हुआ था, इसलिए इस गांव को बामनपुर कहा जाता है। सिरोरा नाम के गांव में श्रीकृष्ण का मोहर सिराया गया था। खंदोई गांव में ब्रह्मभोज के लिए मिट्टी के बर्तन बनाए गए थे। इसलिए आज भी यहां पर मिट्टी के बर्तनों का बहुत बड़ा मेला लगता है।

शहरों की भीड़भाड़ और शोर-शराबे से दूर प्रदूषण मुक्त प्रकृति के सुंदर वातावरण और पवित्र गंगा नदी के किनारे होने के कारण यह स्थान हमेशा ही साधु-संतों की साधना और तपोस्थली बनी रहती है। हर साल यहां पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान से आने वाले भक्तों और श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है। इसके अलावा, अवंतिका मंदिर पर वर्ष में दो बार, शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में बड़े स्तर पर मेला भी आयोजित किया जाता है।

माता अवंतिका देवी का मंदिर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद की अनूपशहर तहसील के अंतर्गत जहांगीराबाद से 15 किमी. दूरी पर गंगा नदी के किनारे स्थित है। मंदिर के आसपास न कोई गांव है, और ना ही कोई कस्बा। लेकिन, यहां पर देवी अवंतिका के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं और भक्तजनों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं, आश्रम और साधु-संतों की कुटिया आदि की अच्छी व्यवस्था है।

उ.प्र. सरकार के पर्यटन विभाग ने अवंतिका देवी मंदिर के पीछे एक धर्मशाला का निर्माण कराया है। इसके अलावा यहां अन्य अनेक श्रद्धालु और भक्तों ने भी यात्रियों के लिये धर्मशालाओं का निर्माण करवाया है।

अवंतिका देवी मंदिर के अलावा यहां अन्य दर्शनीय स्थलों में रुक्मिणी कुण्ड, महानन्द ब्रह्मचारी का विशाल रुक्मिणी बल्लभ धाम आश्रम, यज्ञशाला और उनकी साधना स्थली आदि भी हैं। इसके अलावा यहां पर एक संस्कृत पाठशाला और गऊशाला भी है।

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