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कदम-कदम पर संस्कारों की खुराक अत्यंत आवश्यक…

admin 11 September 2021
Sanskaar
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भारत सहित पूरा विश्व विकास की नई-नई कहानियां निरंतर लिखता जा रहा है। मानव की यात्रा धरती से चांद तक पहुंच चुकी है किन्तु अपने देश में एक बात रह-रह कर सभी को अखरती रहती है कि इतना सब कुछ होते हुए भी अधिकांश लोग बेचैन एवं परेशान क्यों हैं?

सीसीटीवी कैमरों एवं आधुनिक उपकरणों की जगह-जगह उपलब्धता के बावजूद युवा से लेकर वृद्ध तक कोई अपने को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहा है। दो साल की बच्ची से लेकर अस्सी वर्ष की वृद्धा तक का बलात्कार हो रहा है। घर-परिवार एवं सभी तरह की संपन्नता के बावजूद तमाम लोगों को अनाथालय एवं वृद्धा आश्रमों में समय गुजारना पड़ रहा है।

अपनी औकात के मुताबिक अधिकांश लोग मौका मिलने पर ऊपरी कमाई का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं। सामान्य दिनों की बात अलग है। कोरोना काल में भी तमाम लोगों ने परेशान लोगों की मजबूरी का लाभ उठाकर अपने घटिया आचरण का प्रदर्शन किया। इस प्रकार की तमाम बातें कदम-कदम पर देखने एवं सुनने को मिलती रहती हैं जिससे यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि आखिर समाज कहां और किस दिशा में जा रहा है?

इन सब बातों की जड़ में जाया जाये तो स्पष्ट तौर पर देखने में मिलता है कि घर-परिवार, स्कूल-काॅलेज, शासन-प्रशासन सहित पूरे समाज में संस्कारों की डोर कमजोर पड़ती जा रही है। अपने अतीत यानी सतयुग, त्रेता एवं द्वापर युग की बात की जाये तो उस समय भारतीय समाज में बलात्कार शब्द सुनने को भी नहीं मिलता था।

महाभारत काल में द्रौपदी का सिर्फ चीरहरण हुआ था, किन्तु उसका अंजाम क्या हुआ, यह सभी को पता है। चीरहरण करने वाले से लेकर, उस समय जो लोग मूकदर्शक बनकर बैठे थे, सभी को दंड मिला। इन्हीं सब बातों को सुनकर लगता है कि आखिर हमारे जीवन में ‘गीता’ जैसे पवित्र गं्रथ का क्या महत्व एवं क्यों आवश्यकता है? किन्तु विडंबना यह है कि आज के अधिकांश युवा रामायण, महाभारत, वेदों, पुराणों एवं अन्य पवित्र गं्रथों को पढ़ने और उनके बारे में जानने में बहुत ही कम उत्सुक दिखते हैं जबकि सच्चाई यह है कि संस्कारों की खुराक इसी रास्ते से ही मिलती है।

युवा पीढ़ी कंप्यूटर, मोबाईल एवं इंटरनेट के मामले में जानकारी प्राप्त कर चाहे जितना भी अपने को योग्य एवं काबिल समझ ले किन्तु घर-परिवार, समाज में पूर्ण रूप से स्थापित होने के लिए संस्कारों की खुराक, माता-पिता एवं बड़े-बुजुर्गों की नसीहत और आशीर्वाद बहुत जरूरी है। आज का समाज अपने आपको चाहे जितना भी खुशहाल एवं संपन्न दिखाने का प्रयत्न कर ले किन्तु संस्कारों के बिना स्वस्थ, सुखी राष्ट्र एवं समाज की स्थापना नहीं की जा सकती है इसलिए हम सभी को मिलकर इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।

– जगदम्बा सिंह

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