– नर्मदा भारतीय प्रायद्वीप की सबसे प्रमुख और भारत की पांचवी बड़ी नदी मानी जाती है।
– माता के रूप में पूजी जाने वाली नर्मदा मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख नदी और जीवन-रेखा है।
– पर्वतराज मैखल की पुत्री के रूप में मानी जाने वाली नर्मदा को ‘रेवा’ के नाम से भी जाना जाता है और विंध्य की पहाड़ियों में बसा अमरकंटक एक वन प्रदेश है जहां से नर्मदा का उद्गम स्थल माना गया है।
– भारत की चार प्रमुख नदियों को चार वेदों के रूप में माना जाता है जिसमें गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अथर्ववेद और नर्मदा नदी को सामदेव के रूप में माना गया है।
– सामदेव विभिन्न कलाओं का वेद माना जाता है और नर्मदा को सामवेद के रूप में इसीलिए पूजा जाता है क्योंकि इसी नर्मदा के किनारे दुनिया में सबसे पहले मानव सभ्यता, संस्कृति और विभिन्न प्रकार की कलाओं का विकास हुआ है।
– नर्मदा ने कई प्रकार की लोक-कलाओं और शिल्प-कलाओं को पाला-पोसा है और आज भी इसके किनारों पर बस गांवों और शहरों में वही प्राचीनतम सभ्यता, संस्कृति, लोककला और परंपराओं को देखा जा सकता है।
– नर्मदा अपने उद्गम स्थल अमरकंटक से निकलकर लगभग 8 किलोमीटर दूरी पर दुग्धधारा नामक जलप्रपात तथा 10 किलोमीटर की दूरी पर कपिलधारा नामक आकर्षक जलप्रपात बनाती है।
– संगमरमर की खूबसूरत और संकरी घाटियों के बीच से बहती हुई नर्मदा नरसिंहपुर, होशंगाबाद और खंडवा से गुजरते हुए पौराणिक नगर महेश्वर के रास्ते महाराष्ट्र से होती हुई, गुजरात के भडूच शहर की पश्चिमी दिशा में खम्भात की खाड़ी में मिलकर अरब सागर में विलीन हो जाती है।
– पुण्यदायिनी कहे जाने वाली और माने जाने वाली देवी नर्मदा का जन्मदिवस प्रतिवर्ष माघ शुक्ल सप्तमी को ‘नर्मदा जयंती महोत्सव‘ के रूप में मनाया जाता है।
– विभिन्न शास्त्रों और गं्रथों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रद्धा-भक्ति और सच्चे मन से माता नर्मदा के दर्शन करने और पूजन करने मात्र से ही मनुष्य को पापों से मुक्ति मिल जाती है।
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