जब हम हमारे धर्मग्रंथों को पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि हमारे सारे धर्मग्रंथ राक्षसों के वध से भरे पड़े हैं. राक्षस भी ऐसे ऐसे वरदानों से प्रोटेक्टेड थे कि दिमाग घूम जाए. किसी को वरदान प्राप्त था कि वो न दिन में मरेगा-न रात में, न आदमी से मरेगा-न जानवर से, न घर में मरेगा-न बाहर, न आकाश में मरेगा- न धरती पर.
उसी तरह दूसरे को वरदान था कि वे भगवान भोलेनाथ और विष्णु के संयोग से उत्पन्न पुत्र से ही मरेगा. तो, किसी को वरदान था कि उसके खून की जितनी बूंदे जमीन पर गिरेगी, उसकी उतनी प्रतिलिपि पैदा हो जाएगी. तो, कोई अपने नाभि में अमृत कलश छुपाए बैठा था.
लेकिन, इसके बाद भी उनमे से हर राक्षस का वध हुआ. हालाँकि सभी राक्षसों का वध अलग अलग देवताओं ने अलग अलग कालखंड एवं अलग अलग प्रदेशों में किया.
लेकिन सभी वध में एक चीज कॉमन रहा कि किसी भी राक्षस का वध उसका स्पेशल स्टेटस हटाकर अर्थात उसके वरदान को कैंसिल कर के नहीं किया गया
कि, तुम इतना उत्पात मचा रहे हो इसीलिए, हम तुम्हारा वरदान कैंसिल कर रहे हैं और फिर उसका वध कर दिया.
बल्कि हुआ ये कि देवताओं को उन राक्षसों को निपटाने के लिए उसी वरदान में से रास्ता निकालना पड़ा कि इस वरदान के मौजूद रहते हम इसे कैसे निपटा सकते हैं. और अंततः कोशिश करने पर वो रास्ता निकला भी एवं सब राक्षस निपटाए भी गए.
कहने का मतलब है कि परिस्थिति कभी भी अनुकूल होती नहीं है बल्कि उसे पुरुषार्थ से अनुकूल बनाई जाती है.
आप किसी भी एक राक्षस के बारे में सिर्फ कल्पना कर के देखें कि अगर उसके संदर्भ में अनुकूल परिस्थिति का इंतजार किया जाता तो क्या वो अनुकूल परिस्थिति कभी आती?
उदाहरण के लिए सर्वचर्चित रावण को ही ले लेते हैं. रावण के बारे में भी ये एक्सक्यूज दिया जा सकता था कि रावण को कैसे मारेंगे भला?
उसे तो पचासों तीर मारे और उसके सर को काट भी दिए. लेकिन, उसका सर फिर जुड़ जाता है तो इसमें हम क्या करें ?
इसके बाद अपने इस फेल्योर का सारा ठीकरा रावण को ऐसा वरदान देने वाले ब्रह्मा पर फोड़ दिया जाता कि उन्होंने ही रावण को ऐसा वरदान दे रखा है कि अब उसे मारना असंभव हो चुका है.
और फिर ब्रह्मा पर ये इल्जाम डाल कर चल दिया कि जब ब्रह्मा खुद रावण को ऐसा अमरत्व के सरीखा वरदान देकर धरती पर राक्षसों का राज लाने में लगे हैं तो भला हम क्या कर सकते हैं.
लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि, भगवान राम ने उन वरदानों के मौजूद रहते ही रावण का वध किया. क्योंकि, यही “सिस्टम” है.
तो पुरातन काल में हम जिसे वरदान कहते हैं आधुनिक काल में हम उसे संविधान द्वारा प्रदत्त स्पेशल स्टेटस कह सकते हैं जैसे कि अल्पसंख्यक स्टेटस, पर्सनल बोर्ड आदि आदि.
इसीलिए आज भी हमें राक्षसों को इन वरदानों (स्पेशल स्टेटस) के मौजूद रहते ही निपटाना होगा जिसके लिए हमें इन्हीं स्पेशल स्टेटस में से लूप होल खोजकर रास्ता निकालना होगा. और मुझे नहीं लगता है कि इनके वरदानों (स्पेशल स्टेटस) को हटाया जाएगा.
क्योंकि, हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में ऐसे एक भी साक्ष्य नहीं मिलते हैं कि किसी राक्षस के स्पेशल स्टेटस (वरदान) को हटा कर पहले परिस्थिति अनुकूल की गई हो तदुपरांत उसका वध किया गया हो.
और जो हजारों लाखों साल के इतिहास में कभी नहीं हुआ अब उसके हो जाने में मुझे संदेह है. परंतु हर युग में एक चीज अवश्य हुआ है. और वो है राक्षसों का विनाश एवं सनातन धर्म की पुनर्स्थापना.
इसीलिए मैं इस बारे में जरा भी भ्रमित नहीं हूँ कि ऐसा नहीं हो पायेगा. लेकिन, घूम फिर कर बात वहीं आकर खड़ी हो जाती है कि भले त्रेतायुग के भगवान राम हों अथवा द्वापर के श्रीकृष्ण.
राक्षसों के विनाश के लिए हर किसी को जनसहयोग की आवश्यकता पड़ी थी. और, जहाँ तक मैं अपने धर्मग्रंथों को समझ पाता हूँ. तो, हर युग में राक्षसों के विनाश में जनसहयोग की आवश्यकता सिर्फ राक्षसों के विनाश के लिए ही नहीं पड़ती है. बल्कि इसीलिए भी पड़ती है ताकि राक्षसों के विनाश के बाद जो एक नई दुनिया बनेगी. उस नई दुनिया को उनके बाद के लोग संभाल सके.
इतिहास गवाह है कि बनाने वालों ने तो भारत में आकाश छूती इमारतें और स्वर्ग को भी मात देते हुए मंदिर बनवाए थे. लेकिन, उसका हश्र क्या हुआ ये हम सब जानते हैं.
इसीलिए राक्षसों का विनाश जितना जरूरी है. उतना ही जरूरी उसके बाद उस धरोहर को संभाल के रखने की है. और अभी शायद उसी की तैयारी हो रही है. अर्थात निषादराज, वानर राज सुग्रीव, वीर हनुमान , जामवंत आदि को गले लगाया जा रहा है. और, माता शबरी को उचित सम्मान दिया जा रहा है.
वरना, सोचने वाली बात है कि जो रावण पंचवटी में लक्ष्मण के तीर से खींची हुई एक रेखा तक को पार नहीं कर पाया था. भला उसे पंचवटी से ही एक तीर मारकर निपटा देना क्या मुश्किल था. अथवा जिस महाभारत को श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र के प्रयोग से महज 5 मिनट में निपटा सकते थे भला उसके लिए 18 दिन तक युद्ध लड़ने की क्या जरूरत थी.
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