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समाज सेवा को प्रामाणिकता की कसौटी पर कसना समय की मांग | Social service

admin 7 October 2021
Social service
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आजकल समाज में तमाम मामलों में ऐसा देखने को मिल रहा है कि यदि लोग समाज सेवा (Social service) के क्षेत्र में रंच मात्र भी कार्य करते हैं तो उनकी इच्छा यही होती है कि वैसा करते हुए वे दिखें भी यानी समाज सेवा किसी भी रूप में गुमनाम नहीं होनी चाहिए किन्तु वर्तमान समय में समाज सेवा के नाम पर आडंबर एवं पाखंड इतने अधिक हो चुके हैं कि समाज सेवा को प्रामाणिकता की कसौटी पर कसने का वक्त आ गया है। एक दर्जन केला बांटकर यदि दर्जनों फोटो खिंचवा ली जाये तो इसे सांकेतिक समाज सेवा के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है?

अपने देश में अतीत में भी लोगों ने समाज सेवा की है किन्तु उसका स्तर बहुत ऊंचा था और उसके पीछे की मंशा बहुत पवित्र थी। उदाहण के तौर पर जब आचार्य विनोबा भावे ने ‘भूदान’ अभियान प्रारंभ किया तो उनका भाव बहुतवित्र था और उसके पीछे की मंशा यही थी कि जिन गरीब लोगों के पास भूमि एकदम नहीं है और उनका भरण-पोषण ठीक से नहीं हो पा रहा है, ऐसे लोगों को अधिक भूमि वालों से कुछ भूमि मांगकर दान में दी जाये। आचार्य विनोबा भावे के इस कार्यक्रम को लोगों ने हाथों-हाथ लिया और उन्हें इस काम में बहुत कामयाबी मिली।

पंडित मदन मोहन मालवीय ने लोगों से दान मांगकर काशी हिन्दू विश्व विद्यालय की स्थापना कर दी। हमारी सनातन सभ्यता-संस्कृति में ऐसे कई राजा-महाराजा हुए जिन्होंने अपना पूरा राज-पाट ही दान में दे दिया। राजा बलि का नाम ऐसे ही दानवीरों में लिया जाता है। महाभारत के कर्ण का नाम तो बहुत ही आदर के साथ ‘दानवीर कर्ण’ के रूप में लिया जाता है।

ऋषि दधीचि ने समाज के हित में अपनी हड्डियां भी दान में दे दी। वैसे भी हमारी सभ्यता-संस्कृति में दान एवं सेवा कार्यों को गुप्त रखने की श्रेष्ठ परंपरा रही है। ‘नेकी कर, दरिया में डाल’ यानी कि किसी पर कोई उपकार कर हमेशा के लिए भूल जाना चाहिए, उस नेकी के बदले किसी से किसी प्रकार की उम्मीद नहीं पालनी चाहिए, ऐसी हमारी संस्कृति रही है किन्तु आजकल देखने में आता है कि जब कोई चुनाव नजदीक आता है तो अचानक समाजसेवियों की बाढ़ सी आ जाती है और लोगों की समझ में यह नहीं आता है कि चुनावों के समय या चुनावी लाभ के लिए की जाने वाली समाज सेवा तात्कालिक है या हमेशा चलने वाली है।

कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि समाज सेवा के नाम पर सांकेतिक रूप से सेवा के जो भी कार्य किये जा रहे हैं, उन्हें प्रामाणिकता की कसौटी पर कसने का समय आ गया है अन्यथा नकली-असली में भेद करना बहुत मुश्किल हो जायेगा।

– जगदम्बा सिंह

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