अजय सिंह चौहान || उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ के वासियों में एक बहुत ही पुरानी कहावत प्रचलित है। जिसमें कहा जाता है कि अगर आप प्रतापगढ़ गए और बेल्हा देवी के मंदिर में दर्शनों के लिए नहीं गए तो समझ लीजिए कि आप ने प्रतापगढ़ ही नहीं घूमा। दरअसल, बेल्हा देवी का मंदिर यहां के लोगों की आस्था के साथ ही इस नगर की पहचान से भी जुड़ा है।
प्रतापगढ़ में बहने वाली सई नदी के किनारे पर स्थित पौराणिक काल के बेल्हा माई के मंदिर को एक शक्तिपीठ मंदिर माना जाता है। इस शक्तिपीठ मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि सई नदी के किनारे इसी स्थान पर देवी सती की कमर का भाग यानी जिसे स्थानीय भाषा में बेला भी कहा जाता है का कुछ भाग गिरा था, इसलिए यह एक पवित्र शक्तिपीठ स्थान है।
इसके बेल्हा माई मंदिर के नाम के विषय में भी कहा जाता है कि बेला मंदिर का नाम बाद में स्थानीय भाषा में बदल कर बेल्हा हो गया और यही इस शहर का नाम पड़ गया। इसके अलावा, मां बेल्हा देवी का मंदिर होने के कारण वर्तमान प्रतापगढ़ जिले को अपने पौराणिक नाम बेला अथवा बेल्हा के नाम से भी जाना जाता है।
बेल्हा देवी मंदिर की मान्यता –
बेल्हा देवी के इस धाम को लेकर धार्मिक किवदंती यह भी है कि यह राम वनगमन मार्ग, यानी इलाहाबाद-फैजाबाद राजमार्ग के किनारे सई नदी को त्रेता युग में भगवान राम ने पिता की आज्ञा मानकर अयोध्या से वन जाते समय पार किया था। इस यात्रा के दौरान भगवान राम ने यहां आदिशक्ति का पूजन कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए ऊर्जा ली थी और उसके बाद वे दक्षिण की ओर आगे बढ़े थे।
भगवान श्रीराम की वनवास यात्रा में उत्तर प्रदेश की जिन पाँच प्रमुख नदियों का जिक्र रामचरित मानस में है, उनमें से एक प्रतापगढ़ की इस सई नदी का नाम भी है। राम चरित मानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने इसका स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि ‘सई तीर बसि चले बिहाने, श्रृंग्वेरपुर पहुंचे नियराने।‘ यहीं पर भरत से उनका मिलाप हुआ था।
मान्यता है कि बेल्हा की अधिष्ठात्री देवी के मंदिर में भगवान राम ने पूजा-अर्चना की थी। और दूसरी मान्यता यह भी है कि चित्रकूट से अयोध्या लौटते समय भरत ने यहां रुककर इस शक्तिपीठ का पूजन किया और रात्रि विश्राम भी किया था। तभी से यह स्थान अस्त्तिव में आया है। इसके अलावा वर्तमान प्रतापगढ़ जिला रामायण और महाभारत के अलावा अन्य कई पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं का भी साक्षी बताया जाता है।
बेल्हा देवी मंदिर के साक्ष्य –
बताया जाता है कि बेल्हा देवी के इस मंदिर के साक्ष्य के रूप में उस समय का एक पवित्र शिलालेख भी यहां मौजूद था, लेकिन मुगल काल के दौरान उसे नष्ट कर दिया गया था। इसी प्रकार कई अन्य जन श्रुतियां भी यहां प्रचलित हैं।
जबकि हमारे आधुनिक इतिहासकार बेल्हा देवी के इस मंदिर को लेकर कुछ और ही तर्क देते हैं। प्राचीन इतिहास के हमारे एक प्रोफेसर पीयूषकांत शर्मा एक तथ्य यह भी देते हैं कि चाहमान वंश के राजा पृथ्वीराज चैहान की बेटी का नाम भी बेला था। उसका विवाह इसी क्षेत्र के ब्रह्मा नामक युवक से हुआ था। लेकिन, बेला के गौने के पहले ही उसके पति ब्रह्मा की मृत्यु हो गई थी जिसके कारण बेला ने सई किनारे इसी स्थान पर खुद को सती कर लिया और तभी से इस स्थान को सती स्थल कहा जाने लगा।
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समय के साथ-साथ बेल्हा माई का यह स्थान मंदिर के रूप में बदल गया। और क्योंकि यहां बेला ने खुद को सती कर लिया था इसलिए इसे सती मंदिर कहा जाने लगा जो बाद में शक्तिपीठ के तौर पर देखा जाने लगा। इसलिए कुछ विद्वान और जानकारी इस मंदिर को एक शक्तिपीठ के रूप में नहीं बल्कि सिद्धपीठ के रूप में देखते हैं।
मंदिर की निर्माण शैली –
वास्तु और निर्माण शैली के नजरिए से बेल्हा माई का यह मंदिर उत्तर मध्यकाल में बना हुआ लगता है। पुरातात्विक आधार पर भले ही इन तथ्यों के प्रमाण नहीं मिलते हैं लेकिन आस्था और मान्यताओं के आधार पर देखें तो मां बेल्हा क्षेत्रवासियों के हृदय में सांसों की तरह बसी हुई हैं। मंदिर से जुड़े पौराणिक अवशेष न मिलने के कारण इसका पुरातात्विक निर्धारण अभी नहीं हो सका है। लेकिन, फिर भी पुरात्तव विभाग का प्रयास जारी है।
प्रत्येक शुक्रवार और सोमवार को इस क्षेत्र के ही नहीं बल्कि दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचकर माता का दर्शन पूजन करते हैं और बच्चों का मुंडन कराते हैं। नवरात्री तथा अन्य विशेष अवसरों पर यहां लोगों की अपार भीड़ मां के दर्शन को पहुंचता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं और भक्तों का माानना है कि माता रानी के समक्ष सच्चे मनसे मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
प्रतापगढ़ क्षेत्र का महत्व –
प्रतापगढ़ जिला एतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से काफी महत्तवपूर्ण माना जाता है। यह धरती महात्मा बुद्ध की तपोस्थली भी रह चुकी है। जबकि, इसको रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास और हरिवंश राय बच्चन की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता है।
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है जो सन् 1858 में अस्त्तिव में आया था। जिले के अधिकांश भू-भाग से होकर बहने वाली सई नदी के तट पर नगर की अधिष्ठात्री मां बेल्हा देवी का भव्य मंदिर होने के कारण वर्तमान प्रतापगढ़ जिले को अपने पौराणिक नाम बेला अथवा बेल्हा के नाम से भी जाना जाता है।
बेल्हा देवी मंदिर कैसे पहुंचे –
इलाहाबाद-फैजाबाद मार्ग के निकट ही सई नदी के तट पर स्थित है मां बेल्हा देवी का भव्य मंदिर। इलाहाबाद से इस मंदिर की दूरी लगभग 65 किलोमीटर है। जबकि लखनऊ से यह 175 किलोमीटर दूर है। रेलवे मार्ग से जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रतापगढ़ के रेलवे स्टेशन से इस मंदिर की दूरी मात्र 2 किलोमीटर है और प्रतापगढ़ के रोडवेज बस अड्डे से इसकी दूरी 3 किलोमीटर है। दोनों ही स्थानों से मंदिर तक पहुंचने के लिए आॅटो रिक्शा और साइकल रिक्शे की सुविधा मिल जाती है।