रविवार यानी आठ अगस्त की सुबह करीब 10 बजे से ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ के रूप में जैसे ही भाजपा के नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील श्री अश्विनी उपाध्याय जी के आहवान पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर देशभर के नौजवान और राष्ट्रप्रेमियों की भीड़ जुटनी शुरू हुई वैसे ही अपने एजेंडे के मुताबिक कुछ ऐसे डीएनएधारी ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ के लड़ाके भी जमा होने शुरू हो गए जो थे तो भगवा वस्त्रों में और हाथ में तिरंगा झंडा भी थामे हुए। लेकिन उनका एजेंडा स्पष्ट और एक दम सुनियोजित था।
दरअसल, वे लोग उस भीड़ में न तो रिपोर्टिंग करने आये थे और ना ही वहां से आम जन को कोई अच्छा संदेश देने। जो लोग अब तक यहां ये नहीं समझ पाये हों कि यहां मैं किन लोगों की बात कर रहा हूं तो उनके लिए यहां साफ-साफ बता दूं कि वे लोग संघ प्रमुख मोहन भागवत जी के द्वारा बताये गये उसी डीएनए से संबंधित थे जो गंगा-जमुना के प्रतीक कहे जाते हैं। फिर चाहे उनमें वे हिंदू भी क्यों न हों जो ‘‘सैक्युलर’’ वाला डीएनए लेकर भटक रहे हैं।
जहां एक ओर मंच पर देश को जोड़ने को लेकर ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ के रूप में अश्विनी उपाध्याय अपने अन्य साथियों के साथ मंच साझा करते हुए करीब 50,000 लोगों के सामने अपने-अपने विचार रखते जा रहे थे वहीं, उनके सामने मौजूद उस भीड़ में कुछ ऐसे ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ के लड़ाके भी थे जो आये तो थे अपनी पहचान छुपाकर, लेकिन, जब उन्होंने देखा कि अश्विनी उपाध्याय ने तो देश को जोड़ने के लिए सच में ही आवश्यकता से अधिक भीड़ को जमा कर लिया है, तो उनसे रहा नहीं गया और बजाय रिर्पोटिंग करने के ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ के उन लड़कों ने उसी वक्त अपने आकाओं से ग्राउंड जीरो पर ठीक उसी प्रकार से सपोर्ट मांग ली जैसे कि सीरिया में एक बार जब रूस के लड़ाकु विमान बमबारी कर रहे थे और उनमें से एक विमान का पायलट उन सीरियाई आतंकवादियों के बीच फंस गया था, और बजाय अपने आप को वहां से सुरक्षित बच के निकलने के उसने अपने साथियों को कहा कि इस वक्त मैं जहां हूं तुम वहीं आकर मेरे ऊपर ऐसी बमबारी कर दो कि मैं भी शहीद हो जाऊं और मेरे आसपास के आतंकवादी भी मारे जाये।
तो जंतर-मंतर पर अश्विनी उपाध्याय द्वारा देश को जोड़ने को लेकर किये गये इस ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ में रिपोर्टिंग करने गये एक लड़ाके के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, और ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ का एक लड़ाका भी इस ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ में काम करते-करते अपने आप को फंसा हुआ महसूस करने लगा। ‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ के मुताबिक उनके इस लड़ाके के आसपास जमा भीड़ ने उन्हें जय श्रीराम के नारे लगाने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन वह लड़ाका पत्रकार भी पक्का ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ निकला। इसलिए उसने भी डट कर मुकाबला किया और जय श्रीराम के नारे बिल्कुल नहीं लगाये। हो सकता है कि उसे भी भविष्य में इसी रिपोर्टिंग के आधार पर ‘‘पुलित्जर अवार्ड’’ मिल जाये।
अब यहां सवाल ये उठता है कि उस पत्रकार को किन लोगों ने नारे लगाने के लिए मजबूर किया होगा? क्या वहां मौजूद उस करीब पचास हजार लोगों की उस उत्साही भीड़ ने ही उसको नारे लगाने के लिए कहा होगा, या फिर वे लोग योजना के मुताबिक उसके साथ ही आये हुए थे?
‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ के तमाम भारीभरकम नाम अचानक से उछल-उछल कर अपनी-अपनी ब्रेकिंग न्यूज में इस मुद्दे को उठाने लग गये। लेकिन, जब ये ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ हो रहा था तो उस समय तो यही मीडिया देर रात तक पार्टी खत्म कर अगले दिन की दोपहर तक सो रहा था। और जब उनके अनुसार सुबह हुई तो यह आंदोलन भी खत्म हो चुका था। इसलिए संभवतः अधिकतर मीडिया घराने के लड़ाके वहां पहुंच नहीं पाये होंगे।
लेकिन, यहां सवाल यह भी उठता है कि यदि वह भीड़ कम्युनल थी या फिर एक धर्मविशेष की थी तो फिर तो उसे गुस्से में या फिर उत्साह में आकर वहीं मार दिया होता। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। क्योंकि कहा जााता है कि जब भी कभी जेब कतरे किसी की जेब काटते हैं तो उनमें से एक ही उस घटना को अंजाम देता है और बाकी के उसके साथी आसपास रह कर उसको इस बात के लिए सहयोग देते हैं कि यदि किसी ने पकड़ लिया तो उसे आसानी से वहां से छूड़ाकर ले जायेंगे। और यहां भी शायद यही हुआ होगा। वर्ना तो यदि तो सचमुच में वह किसी सांप्रदायिक भीड़ में फंसा होता तो फिर तो शायद वह मारा ही जाता।
हालांकि, यहां ये सवाल तो संघ प्रमुख मोहन भागवत जी से भी पूछा जाना चाहिए कि अगर ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ हो रहा है तो उसे किसी एक डीएनए का ही सहयोग क्यों मिल रहा है। क्या यह आंदोलन ‘‘इंडिया अंगेस्ट करप्शन’’की तर्ज पर भारत में रहने वाले अन्य डीएनए वालों का नहीं हो सकता? अगर वह पत्रकार वहां जय श्रीराम का नारा नहीं लगाना चाहता था तो न सही। कह देता कि पहले तुम लोग भी मेरा वाला नारा लगा दो, फिर मैं भी तुम्हारा वाला नारा लगा दूंगा। लेकिन, सच तो ये है कि मोहन भागवत जी ने ये कह कर सबको कन्फ्यूज कर रखा है कि हम सभी का डीएनए तो एक ही है। फिर चाहे आप जय श्रीराम का नारा लगा लो या अल्लाह का या फिर गॉड का।
यह वही ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ है जो ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ को तो तोड़ने वाला बता रहा है और इससे दूरी बना कर रखे हुए है। लेकिन, वहीं इसने शाहीनबाग के उस प्रदर्शन को लगातार सीधा प्रसारण करते हुए हवा दी थी। यह वही ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ है जो हजार दो हजार खरीदे गये किसानों को बीस-तीस हजार किसान बता रहा है, लेकिन पचास हजार से अधिक ऐसे लोगों भीड़ इसे दिखाई नहीं देती जो अपने दम पर जंतर-मंतर के संपूर्ण क्षेत्र को घेर कर शांतिपूर्ण तरीके से ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ का समर्थन करने निस्वार्थ भाव लेकर दूर-दूर से आते हैं और अश्विनी उपाध्याय जी के एक आहवान पर शांतिपूर्ण तरीके से जमा जो जाते हैं।
सूना है कि इस मामूली सी बात को लेकर कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ अगले ही दिन एफआईआर भी हो चुकी है और अचानक से ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ पर ये खबर भी चलने लगी है कि आठ अगस्त 2021 के रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विवादित नारेबाजी हुई थी। लेकिन, ये वही ‘‘लश्कर-ए-भारतीय मीडिया’’ है जो विवादित नारेबाजी बता रहा है जिसने वहां से किसी भी प्रकार की खबर को अपने अखबारों और चैनलों पर जानबुझ क प्रसारित नहीं किया है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत जी से मेरा अनुरोध है कि कृपया वे खुद इस मामले को अपने तरीके सुलझाने का प्रयास करें और अपने डीएनए वाले बंधुओं के पास जायें और खुद ही उनका नारा भी बुलंद कर दें और फिर उनसे भी कहें कि वे भी एक बार जय श्रीराम का नारा बुलंद कर दें, ताकि श्रीमान अश्विनी उपाध्याय जी के ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ की आवश्यकता भी महसूस न हो और ‘‘नागरिकता कानून’’ वाला विवाद भी खत्म हो जाये।
लड़ाई चाहे सीएए को लेकर हो या फिर ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ की इस वर्तमान लड़ाई को लेकर। अगर ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ की इस लड़ाई में मोहन भागवत जी का भी हित होता तो वे भी जंतर-मंतर पर मौजूद जरूर होते। लेकिन, शंका तो यहां भी होती हे कि अगर सीएए के आंदोलन के समय भी मोहन भागवत जी कुछ बोल देते तो उनके खिलाफ मेरा मन डांवाडोल नहीं होता। बंगाल की हिंसा पर भी कुछ बोल देते तो अच्छा होता। लेकिन, उनके डीएनए वाले बयान ने तो उनके अपने ही डीएनए को सबके सामने ला दिया है।
फिर भी अगर वे इस बार जंतर-मंतर वाले इस आंदोलन में खुद भले ही ना न आये हों, लेकिन, किसी भी प्रकार से का समर्थन यहां देखने को मिल जाता तो उनका डीएनए वाला बयान भी माफ हो जाता। अफसोस है कि, न तो वे यहां मौजूद रहे और ना ही उनका समर्थन। ऐसे में अगर संपूर्ण मानव जाति हमेशा से अपने-अपने हित और हिस्से को लेकर ही लड़ते आये हैं तो भला ऐसे में यहां उन दुश्मनों का क्या काम जिनके खिलाफ यह ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ के रूप में एक नया युद्ध प्रारंभ हुआ है।
कई लोगों को अश्विनी उपाध्याय के विषय में गलत फहमी भी है कि वे इससे पहले आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक रह चुके हैं इसलिए उनपर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए, तो बता दूं कि उन्हें आम आदमी पार्टी से इसीलिए निकलना पड़ा था क्योंकि उन्होंने पार्टी की कुछ ऐसी गतिविधियों को उजागर कर दिया था जो न सिर्फ पार्टी के लिए बल्कि देश के हित में भी नहीं थीं। और उनकी उस दौर की आवाज को आज हम महसूस भी कर रहे हैं।
दरअसल, अश्विनी उपाध्याय ने पार्टी के प्रमुख यानी अरविंद केजरीवाल को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें श्री उपाध्याय ने लिखा था कि आम आदमी पार्टी के कुछ लोग अवसरवादी गतिविधियों में लग गये हैं और आने वाले चुनावों के लिए टिकलों की खरीद और बिक्री के लिए दलाली का धंधा करने में जुट गये हैं।
अपनी चिट्ठी में श्री उपाध्याय ने कहा था कि पार्टी में कुछ ऐसे भ्रष्ट लोग आ गये हैं जो नक्सल समर्थक हैं और फोर्ड फाउंडेशन के पैसों के दम पर काम करने को तैयार हो गये हैं। इसलिए उन लोगों को पार्टी से बाहर किया जाना चाहिए। जबकि हुआ यूं कि खुद अश्विनी उपाध्याय को ही अरविंद केजरीवाल ने ‘आप’ पार्टी से बाहर कर दिया और सारी सच्चाई और बुलंद आवाज को दबा दिया था।
आज एक बार फिर से, वही अश्विनी उपाध्याय अपनी राष्ट्रवादी आवाज को लेकर आम जनता के बीच आ चुक हैं। इस बार वे न तो कोई पार्टी बना रहे हैं और ना ही किसी निजी लाभ के लिए कोई एजीओ खड़ा कर रहे हैं।
यह एक चमत्कार ही है कि अश्विनी उपाध्याय ने सोशल मीडिया के दम पर ही पचास हजार से अधिक लोगों को जंतर-मंतर पर जमा इकट्ठा कर लिया है। सोशल मीडिया की आवाज आज ज्यादा दमदार है इसीलिए जंतर-मंतर पर अश्विनी उपाध्याय ने ‘‘भारत जोड़ो आंदोलन’’ के रूप में देश के तमाम अंग्रेजी कानूनों को खत्म कर नये कानून बनाने की मांग के माध्यम से लिए आम आदमी को जगाने का जिम्मा लिया है।
– अजय सिंह चौहान