अब तक की सबसे मजबूत कहे जाने वाली मोदी केन्द्र की सरकार ने जैसे ही अपने कृषि कानूनों को वापस लिया, वैसे ही राष्ट्रवादी मीडिया ने आनन-फानन में अपने-अपने तर्क देकर मास्टस्ट्रोक जड़ने शुरू कर दिये और मुंहनोचवा सवालों से अपनी जान छूड़ाने लगे। मोदी सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि आम जनता के बीच होने वाली आज के दौर की बहस किसी चैराहे पर या किसी पान की दुकान या किसी चाय की दूकान पर नहीं बल्कि सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मस पर होती है जहां किसी भी राष्ट्रवादी या किसी भी सैक्युलर के लिए जान बचाना या पीछा छूड़ाना आसान बात नहीं है। क्योंकि उनके तमाम पिछले बयान और विचार जस के तस इन सोशल मीडिया के प्लेटफार्मस पर मिल जाते हैं।
केन्द्र की मोदी सरकार को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि आज एकतरफा संवाद का दौर नहीं बल्कि आमने सामने का डीजिटल वार वाला दौर है फिर चाहे इसमें दोस्त हों या परिवार के ही अपने सदस्य। सभी को मालूम है कि किसके क्या विचार हैं। कौन क्या कहता है और कितनी जानकारी रखता है। जहां एक ओर कृषि कानूनों की वापसी से आम राष्ट्रवादी लोगों की जवाबदेही शर्म के दायरे में आ चुकी है वहीं कृषि कानूनों की वापसी को सैक्यूलरवादियों ने अपना हथियार बनाकर राष्ट्रवादियों की तरफ अपने जहरीले तीर चलाना शुरू कर दिया है।
अधिकतर राष्ट्रवादियों का न सिर्फ मानना है बल्कि आशंका भी है कि नरेंद्र मोदी जैसे ही इटली की यात्रा से वापस स्वदेश लौटे हैं उसके बाद से कुछ न कुछ देश विरोधी अनहोनियां सामने आने लगी हैं। इस शक के पीछे कारण ये है कि जिस प्रकार से इस दौरे के दौरान पीएम मोदी ने पोप को गले लगाकर झप्पी दी थी उससे अनायास ही सही लेकिन, अधिकतर ने सीधे-सीधे कह दिया कि कहीं ऐसा न हो कि मोदी और पोप की ये झप्पी भी सिद्धू और बाजवा की झप्पी जैसी ही षड्यंत्रों वाली साबित होने लगे।
धीरे-धीरे ही सही लेकिन, राष्ट्रवादियों का शक मोदी के प्रति तब और अधिक गहरा हो गया जब इटली के दौरे के बाद उन्होंने जिस प्रकार से इटली की उस अगस्ता वेस्टलैंड नामक एक हथियार कंपनी पर अपने द्वारा ही लगाया हुआ बैन अचानक हटा दिया। इसके बाद ऐसे ही कुछ अन्य फैसले कह लो या बयानबाजी कह लो सभी कुछ नहीं तो कुछ न कुछ तो ऐसे जिससे शक गहरा रहा है कि हो न हो मोदी सरकार भी अब धीरे-धीरे सैक्यूलरवाद की तरफ अपने कदम मजबूती से रख रही है।
उत्तराखण्ड और हरियाणा के गुरुग्राम में जिस प्रकार से खुले में नमाज अदा करने को लेकर हिंदूवादी और राष्ट्रवादी लोग आवाज उठा रहे हैं और उसमें न सिर्फ विफल हो रहे हैं बल्कि जेल भी जाना पड़ रहा है उसको देखते हुए राष्ट्रवादी और विशेषकर हिंदूवादी संगठनों और वोटरों में अब अपनी ही पार्टी के शाशित राज्यों में, यानी अपने ही गढ़ों में होने वाले अपने उन छोटे-छोटे विरोध प्रदर्शनों में भी उन्हें डर लगने लगा है।
सनातन को बचाना है तो खुद को भी बदलना होगा
जिस प्रकार से केन्द्र्र की राष्ट्रवादी सरकार ने देशविरोधी ताकतों के आगे घूटने टेक दिये और माफी मांग ली है उसे देखते हुए राष्ट्रवादी और हिंदूवादी संगठनों ने मौन धारण कर लिया है। जबकि यही राष्ट्रवादी और हिंदूवादी संगठन यदि उत्तर प्रदेश में होते तो उनकी एक आवाज पर न सिर्फ पुलिस महकमा बल्कि पूरा मुख्यमंत्री तक भी वहां पहुंच कर उनकी बात को अनसूना नहीं कर सकते थे और तुरंत कार्रवाही कर देते। लेकिन अफसोस है कि केन्द्र की जिस भाजपा को महाराष्ट्रवादी सरकार समझा गया वह तो महा सैक्यूलरवादी सरकार साबित हो रही है।
जहां एक ओर हिंदूवादी संगठनों को उम्मीद जगी थी के 2014 के बाद से उन्हें अपने पैर जमाने के अवसर मिलने लगेंगे वहीं गौरक्षकों को खुद मोदी ने ही एक सभा में भाषण के दौरान गुण्डे कह कर संबोधित कर दिया था। इसके बाद तो रही सही कसर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी अपने एक डीएनए वाले बयान के बाद पूरी कर दी।
संघ प्रमुख मोहन भागवत एक अन्य समारोह में इशरों-इशारों में ये भी बता दिया कि वे न सिर्फ सैक्यूलरवादी हैं बल्कि मूर्तिपूजकों के लिए दूश्मन से कम भी नहीं हैं। उन्होंने जिस प्रकार से बयान दिया कि ‘आजकल तो नये-नये देवता आने लगे हैं’ उससे साफ जाहिर होता है कि उनका इशरा हो न हो सीधे-सीधे श्रीमान योगी और श्रीमान हेमंत विश्व शर्मा की तरफ ही रहा होगा। क्योंकि आजकल श्रीमान योगी और श्रीमान हेमंत विश्व शर्मा ही हैं जो हिंदूत्व के लिए एक उम्मीद के देवता के तौर पर उभर कर सामने आ चुके हैं। जाहिर है कि ऐसे में सैक्यूलरवादी पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का सिंहासन डोल जो रहा है।
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संघ और भागवत जी को चिंता है कि यदि श्रीमान योगी और श्रीमान हेमंत विश्व शर्मा ने यदि अपना कद कुछ और अधिक बड़ा कर लिया तो पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को अपना बोरिया बिस्तर समेटना ही पड़ेगा। और न सिर्फ समेटना पड़ेगा बल्कि उनका हाल भी कहीं आडवाणी जी जैसा ही न हो जाये।
ऐसी मात्र यही एक घटना नहीं बल्कि इसके अलावा भी बहुत सी धटनाएं हुई हैं जिनमें मोदी ने अपनी क्षमता और तथाकठित राष्ट्रवाद का दिखावा पेश करते हुए असली राष्ट्रवादियों को निराश किया है। उदाहरण के तौर पर कोरोनाकाल के दौरान दिल्ली के निजामउद्दीन क्षेत्र से मौलाना साद को जिस प्रकार से गायब होने का अवसर प्रदान किया गया वह किसी से छूपा नहीं है।
भले ही आज भी हिंदूवादी संगठनों को एक उम्मीद नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बजाय अब योगी आदित्यनाथ और हेमंत विश्व शर्मा में दिख रही है लेकिन समस्या तो ये है कि वहां भी संघ का ही बोलबाला है। तभी तो 26 जनवरी वाली उस लाल किले की हिंसक घटना के बाद जैसे ही शाम को योगी जी ने दिल्ली बार्डर पर अपनी ताकत आजमानी चाही वैसे ही दिल्ली से शायद मोदी जी का या फिर एक डीएनए वाले भागवत जी का फोन चला गया कि, नहीं आप ने कुछ भी नहीं करना है, जो कुछ भी करना है तथाकथित किसानों ने ही करना है।
मेरे इन विचारों और इन तमाम घटनाओं के बाद अंत में मुझे एक किस्सा याद आता है जिसके अनुसार- एक थाने के दारोगा साहब कुछ लोगों को लाइन में खड़ा कर उनसे किसी चोरी की घटना के विषय में पूछताछ कर रहे थे, तभी वहां एक व्यक्ति पहुंच जाता है और कहता है कि ‘साहब चोरी मैंने की है मुझे गिरफ्तार कर लो’। लेकिन थानेदार साहब कहते हैे कि चुपचाप लाइन में लगे रहो, तुम्हारा नंबर आयेगा तभी तुमसे भी पूछा जायेगा और सबूत मिलने पर ही गिरफ्तार किया जायेगा।’
– अजय सिंह चौहान