वर्तमान समय में देखने को मिल रहा है कि युवा बहुत तेजी से पश्चिमी सभ्यता-संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे हैं जबकि पश्चिमी जगत भारतीय सभ्यता-संस्कृति की तरफ निरंतर अग्रसर होता जा रहा है। अपनी इसी सनातन संस्कृति की बदौलत भारत विश्व गुरु रह चुका है। जिस संस्कृति की वजह से भारत विश्व गुरु रहा हो, उस संस्कृति से यदि युवाओं का लगाव कम होता जा रहा है, तो यह निहायत चिंता का विषय है।
अपनी संस्कृति को मजबूत करने के लिए सभी को मिलकर सम्मिलित रूप से प्रयास करना होगा। सनातन संस्कृति में व्यक्ति की पूरी जीवनशैली ही वैज्ञानिकता पर आधारित है। सुबह उठने से लेकर रात्रि विश्राम तक की जीवनशैली यूं ही नहीं विकसित हो गई है। इसके लिए हमारे देश के ऋषियों-मुनियों एवं महापुरुषों ने काफी परिश्रम एवं शोध किया है।
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सनातन संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि प्रकृति में सभी का अस्तित्व बना रहे, चाहे वह जीव-जंतु, वनस्पति एवं मानव ही क्यों न हो अर्थात जो संस्कृति सबके अस्तित्व की बात करती हो, उसकी और अधिक आगे ले जाना और उसका प्रचार-प्रसार करना हम सभी की जिम्मेदारी बनती है। सनातन संस्कृति की रक्षा किसी भी कीमत पर नितांत आवश्यक है।
आज देखने में आता है कि तमाम लोगों में राष्ट्रीय भावना का लगातार हरास होता जा रहा है। ऐसा लगता है कि जैसे इन लोगों की राष्ट्र के प्रति कोई जिम्मेदारी ही नहीं है। राष्ट्रीय संपत्ति की कहीं कोई नुकसान होता है तो उसे देखकर तमाम लोग ऐसे निकल जाते हैं कि राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा करना इनके एजेंडे में है ही नहीं जबकि आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी मानसिकता से निकलकर एक-एक नागरिक को राष्ट्रीय संपदा के प्रति जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित किया जाये। इससे व्यक्ति में जिम्मेदारी का बोध तो होता ही है, साथ ही राष्ट्र भी मजबूत होगा।
– अरविंद त्रिपाठी, रोहिणी (दिल्ली)