रुद्राक्ष: अक्षर, वर्ण और अभिप्राय के अनुसार यह शिव-नेत्रों से उत्पन्न और शिव-साधना में अत्यन्त आवश्यक और शिव-प्रिय है। शैव मतानुसार भस्म, त्रिपुण्ड और रुद्राक्ष के बिना शिव पूजन अधूरा है। रुद्राक्ष धारण करने के महात्मय का उल्लेख श्री शिव महापुराण, श्री दैवी भागवत, पद्मपुराण, रुद्राक्ष जाबालोपनिषद्, निर्णय सिन्धु, स्कन्द पुराण, शिव रहस्य, पुरश्चरण चन्द्रिका, लिंग पुराण, मेरु तंत्र उपासना, उमा-महेश्वर तंत्र, शिव लीलामृत, रुद्र पुराण, रुद्राक्षोपाख्यान, शैवागम आदि में विस्तार से मिलता है।
रुद्राक्ष एक पवित्र, शुभ-फल दायक, पापों से निवृत्ति दिलाने वाला तथा धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष आदि फल प्राप्ति कराने में समर्थ एक अद्भुत फल बीज है। रुद्राक्ष वृक्ष के फल के अन्दर से निकले हुए बीज रुद्राक्ष कहलाते हैं। रुद्राक्ष का वनस्पति शास्त्रीय नाम एलिओकार्पस गनित्रस ‘राक्सब‘ (Elaeocarpus ganitrus Roxb) है।
रुद्राक्ष के वृक्ष इंडोनेशिया व नेपाल में बहुतायत से पाये जाते हैं। भारत में इसके वृक्ष़ असम, बिहार व बंगाल की उत्तर-पूर्व सीमाओं पर तथा अन्य प्रदेशों में कहीं- कहीं मिलते हैं।
हरिद्वार-देहरादून के क्षेत्र में पायेे जाने वाले रुद्राक्ष वृक्ष प्राय 2 व 3 मुखी फल देते हैं। हाल ही में केरल में (कोचीन के पास) नेपाल किस्म के वृक्षों के फार्म लगाए गये हैं जिनमें फल लगने लगे हंै। इसी प्रकार महाराष्ट्र में मुम्बई, नागपुर, कोल्हापुर, पुणे, त्रयंबकेश्वर आदि में भी कुछ वृक्ष पाये गये हैं जो नेपाल किस्म के फल देते हैं।
नेपाल किस्म के रुद्राक्ष वृक्ष की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
1. इसकी पत्तियां आम की पत्तियों की तरह होती हैं। इनका रंग शुरु में हलका हरा, बाद में गहरा हरा और हलकी नीली आभा वाली और सूखने के पहले गुलाबी व लाल रंग की हो जाता है। पत्तियों का हरे रंग के बाद लाल रंग का हो जाना, इस वृक्ष की विशेषता है।
2. फल बेर के आकार वाले होते हैं व समय के साथ इसके रंग में परिवर्तन होता है: प्रारंभ में हरा, पकने पर नीला (गहरा), अधिक पकने पर बैंगनी और सूखने पर भूरा-सफेद।
फलों का नीला रंग इन्हें अतिविशिष्ट श्रेणी में ले आता है क्योंकि नीला रंग दिव्यता, विशालता और शक्ति का प्रतीक है। नीले रंग के फल दुर्लभ हैं। रुद्राक्ष की दिव्यता और औषधीय गुण इस नीले रंग की विशेषता पर भी निर्भर है। थोड़ा और पकने के बाद यह नीला रंग कुछ गहरे बैंगनी रंग में परिवर्तित हो जाता है।
सूखे फलों से छिलकों को हटाने पर रुद्राक्ष प्राप्त होते हैं। इनमें गहरी धारियां या रेखाएं होती है जिन्हें मुख कहा जाता है। अधिकतर बीजों में 5 धारियां होती हैं और 8 से लेकर 14 मुखी तक मुख वाले रुद्राक्ष कम संख्या में प्राप्त होते हैं। एक अनुमान के अनुसार कुल रुद्राक्ष उत्पादन का 75 प्रतिशत पाँच मुख वाले; 20 प्रतिशत चार और 6 मुख वाले; 3 प्रतिशत दो, तीन, सात मुख वाले; 1.5 प्रतिशत आठ, नौ, दस व ग्यारह मुख वाले और 0.5 प्रतिशत बारह, तेरह, चैदह व उससे अधिक मुख वाले होते हैं। इसी उपलब्धता के आधार पर इनकी कीमतें भी निर्धारित होती हैं। पिछले दो वर्षों से रुद्राक्ष को बड़ी संख्या में चीनी लोग खरीद रहे हैं। उन्हें मन की शान्ति, तनाव दूर करने और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रुद्राक्ष के ब्रेसलेट धारण करने से बहुत लाभ मिल रहा है।
रुद्राक्ष धारण करने के नियम:
इस विषय को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता हैः
1 – रुद्राक्ष का चयन कैसे करें?
रुद्राक्ष के गुणधर्म व धारक की आवश्यकतानुसार यह निश्चित किया जा सकता है कि क्या बंध (कॅाम्बिनेशन) पहनना चाहिए। जैसे पढ़ाई में एकाग्रता और स्मृति वृद्धि हेतु 4 मुखी (ब्रह्मा), अच्छी संभाषण कला के लिए 6 मुखी (कार्तिकेय), लक्ष्मी प्राप्ति के लिए 7 मुखी (लक्ष्मी), भय मुक्ति के लिए 1 मुखी (दुर्गा) आदि। एक से अधिक समस्या के लिए विषम संख्या में रुद्राक्ष पहने जाते हैं। जैसे किसी व्यक्ति को मानसिक तनाव है, उच्च रक्तचाप हैं, व्यापार में घाटा हो रहा है तो ऐसे व्यक्ति को 3 मुखी, 5 मुखी (ये स्वास्थ्य के लिए); 7 मुखी, 8 मुखी (ये धन लाभ तथा रुकावटों को दूर करने के लिए) तथा 12 मुखी ( मानसिक तनाव के लिए) इस प्रकार 5 रुद्राक्ष का बंध गले में धारण करना चाहिए।
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यह धारण विधि सरल और अन्य विधियों से बेहतर है। इसका उपयोग करने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता है क्योंकि अनेक रुद्राक्ष जैसे 6 मुखी व 13 मुखी, 7 मुखी व 15 मुखी, 11 मुखी व 14 मुखी या 1 मुखी व 12 मुखी रुद्राक्ष एक दूसरे के लिए विकल्प हैं। अतः चयन करते समय रुद्राक्ष की उपलब्धि, पहनने की सुविधा और व्यय आदि का ध्यान रखना चाहिए।
(ii) ज्योतिष के आधार पर भी कई लोग चयन करते हैं, हाँलाकि इसका प्राचीन शास्त्रीय आधार नहीं है। भक्तजनों की सुविधा के लिए कुछ आधारभूत दिशा-निर्देश इस प्रकार हैं।
नियंत्रक ग्रह और रुद्राक्ष: 1 मुखी व 12 मुखी – सूर्य; 2 मुखी व गौरीशंकर-चंद; 3 मुखी -11 और 14 मुखी – मंगल; 4 मुखी-शुक्र; 5 मुखी – बृहस्पति; 6 मुखी व 13 मुखी – शुक्र; 7 मुखी, 11 व 13 मुखी और 14 मुखी – शनि; 8 मुखी व 17 मुखी – राहु; 1 मुखी व 18 मुखी – केतु।
क – चंद्र राशि के आधार पर रुद्राक्ष के रंग का चयनः
– कर्क, मीन, वृषभ – सफेद या हाथी दांत के रंग की तरह (Ivory)
– मेष, सिंह, धनु – पीला
– वृश्चिक, कन्या, मकर – लाल
– मिथुन, तुला, कुंभ – काला या गहरा भूरा
(iii) अंक ज्योतिष का प्रयोग भी बहुत सफलता से कुछ लोग करते है परन्तु इसके लिए व्यापक अनुभव, विश्लेषण करने की योग्यता और रुद्राक्ष ज्ञान चाहिए। अंक और ग्रह का संबंध इस प्रकार हैः 1- सूर्य, 2-चन्द्र, 3-बृहस्पति, 4-राहु, 5 बुध, 6 शुक्र, 7-केतु, 8-शनि, 9-मंगल।
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अंक ज्योतिष का सरलतम प्रयोग इस प्रकार हैः जन्म तारीख के सारे अंकों को जोड़कर जो मूलांक प्राप्त हो उससे ग्रह को निकालें और ऊपर (ख) दी हुई तालिका के अनुसार रुद्राक्ष धारण करें। जैसे किसी व्यक्ति की जन्म तारीख 17.11.1981 है तो उसका मूल्यांक इस प्रकार हुआ 8+2+19=20=2. अर्थात चन्द्र ग्रह. अतः इस व्यक्ति को 2 मुखी या गौरीशंकर अवश्य पहनना चाहिए।
2. कितने रुद्राक्ष धारण करें?
शरीर पर कुल रुद्राक्षों की संख्या 3 या इससे अधिक कोई भी विषम संख्या होनी चाहिए। गले में जप-माला में निर्देशित 54+1 या 108+1 दानों की माला पहनने का कोई विधान नहीं है। 28, 32, 36, 50 आदि संख्या के अनुसार बड़े रुद्राक्षों को कंठे के रूप में धारण किया जा सकता है। वैसे तो अगर 1 रुद्राक्ष ही प्राप्त हो सका हो तो उसे
श्रद्धा से धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष-धारी भगवान शिव को प्रिय है अतः कई लोग रुद्राक्ष मय, होकर शिव-सायुज्य प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
रुद्राक्ष का सप्त चक्रों पर प्रभावः
रुद्राक्ष के धारण करते ही उसके स्पर्श जो विद्युत तरंगीय प्रभाव होता है उस पर अनेक शोध हुए हैं। शरीर में स्थित सात प्रमुख ऊर्जा केन्द्र जो चक्र कहलाते हैं वे हमारे शरीर व मनोविज्ञान को नियंत्रित करते हैं। अगर ये चक्र किसी भी कारणवश अवरुद्ध होते हैं तो शरीर में बीमारियां और मनोविकार उत्पन्न होते हैं। हर चक्र का एक स्वामी ग्रह व देवता भी है और उसके अनुसार, उस चक्र को संतुलित करने के लिए अगर उसी ग्रह तथा देवता से नियंत्रित रुद्राक्ष को धारण किया जाय तो वह चक्र व्यवस्थित हो सकता है। निम्नलिखित तालिका में इसका विवरण दिया गया है।
हमारे द्वारा ऑरा (आभा-मंडल) जाँच के लिए किये गये प्रयोगों से विभिन्न चक्रों की व्यवस्था उपरोक्त वर्णित रुद्राक्षों द्वारा प्रमाणित हुई है, इसलिए वैज्ञानिक दृष्टि से भी रुद्राक्ष हमारे शरीर तथा मनोविज्ञान के लिए एक अनमोल औषधि और शिव प्रदत्त कृपा प्रसाद है।
– कमल नारायण सीठा
B.Tech. (Chem. Engg.), ( रुद्राक्ष विशेषज्ञ )