कुछ दिनों पहले तक किसी ने शायद कल्पना भी नहीं की होगी कि चीनी (Substitute for Sugar) का भी कोई विकल्प हो सकता है। क्योंकि न सिर्फ डायबिटीज के मरीजों के लिए बल्कि आम आदमी जो डायबिटीज का शिकार नहीं है उसके लिए भी साधारण चीनी एक जहर के समान है। कुछ दिन पहले तक शायद भरोसा करना मुश्किल था, पर जिस तेजी से स्टेविया (Stevia Sugar) लोकप्रिय हो रही है उससे लगता है कि चीनी का रिप्लेसमेंट ज्यादा दूर नहीं है।
भले ही किसी को विश्वास हो या न हो लेकिन, जीरो कैलोरी की यह स्टेविया शुगर (Stevia Sugar) चीनी का रिप्लेसमेंट बनता जा रहा है। भारत के लोगों के लिए भले ही स्टेविया शुगर बहुत से लोगों के लिए नई चीज हो सकती है लेकिन जापान और अमेरिका समेत दुनिया के करीब 12 देशों में यह बड़ी तेजी से चीनी के विकल्प के तौर पर उभरती जा रही है।
स्टेविया (Stevia Plant) के फायदे –
– डायबिटीज के मरीजों के लिए 100 प्रतिशत सुरक्षित।
– दुनिया के कई देशों में इस बारे में परीक्षण।
– स्टेविया शुगर (Stevia Sugar) के इस्तेमाल से इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं।
– डायबिटीज के मरीज स्टेविया शुगर से बनी मिठाई खा सकते हैं।
– वजन कम करने के लिए मीठे से परहेज की जरूरत नहीं।
– बहुत मीठा होने की वजह से थोड़ा इस्तेमाल ही काफी।
कैसे तैयार होती है स्टेविया शुगर (Stevia Sugar) –
स्टेविया (Stevia Plant) तुलसी की तरह दिखने वाला हरे रंग का एक पौधा होता है। स्टेविया नाम के इस पौधे से चीनी तैयार किये जाने की खोज संभवतः सबसे पहले दक्षिण अमेरिका में की गई थी। स्टेविया पौधे की पत्तियां बहुत मीठी होती हैं, संभवतः इसी लिए इससे जो चीनी बनती है वो 100 प्रतिशत आर्गेनिक होती है। इसमें एक प्रतिशत भी कैलोरी नहीं होती।
स्टेविया शुगर (Stevia Sugar) के लिए किसी बड़े प्लांट की भी जरूरत नहीं होती। इसके लिए छोटा सा प्लांट ही पर्याप्त होता है। इसमें स्टेविया के पत्तों को सुखाकर उससे चीनी निकाली जाती है। स्टेविया की एक फसल को तैयार होने में करीब साढ़े चार महीने का वक्त लगता है। स्टेविया (Stevia Plant) तुलसी की तरह दिखने वाला पौधा है, एक बार लगाने के बाद इससे छह बार उसकी फसल ले सकते हैं।
जापान में पाॅपुलर स्टेविया शुगर (Stevia Sugar) –
जापान के बाजार के आंकड़े बताते हैं कि जापान के लोग सेहत के लिए बहुत जागरूक होते हैं इसलिए वहां स्टेविया शुगर के इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है। इसलिए इस बात की गारंटी है कि उन्होंने पूरी तरह ठोक बजाकर सभी पहलुओं पर गौर करने पर बाद ही स्टेविया को अपनाया होगा। इस वक्त जापान के आधे मार्केट यानी करीब 45 प्रतिशत में स्टेविया चीनी (Stevia Sugar) का कब्जा हो चुका है।
अमेरिकी फूड एडमिनिस्ट्रेशन ने भी स्टेविया के इस्तेमाल को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दे दी है। इसी तरह अब तक करीब 12 देशों में स्टेविया के इस्तेमाल को हरी झंडी मिल चुकी है। हालांकि अभी स्टेविया शुगर को बहुत लंबा सफर तय करना है।
दुनिया के 120 देशों में चीनी का प्रोडक्शन होता है, जिसमें 70 प्रतिशत में गन्ना और 30 प्रतिशत में चुकंदर से चीनी तैयार होती है। तथ्य बताते हैं कि गन्ने से बनी चीनी में कार्बोहाइड्रेट बहुत ज्यादा मात्रा में होते हैं इसलिए डायबिटीज के मरीजों के लिए ये नुकसानदेह मानी जाती है। वजन कंट्रोल करने में लगे लोगों के लिए भी परंपरागत चीनी का इस्तेमाल वर्जित किया जाता है।
यही वजह है कि जिन देशों में स्टेविया शुगर को मान्यता मिली है वहां वह तेजी से लोकप्रिय हो रही है और यही रफ्तार रही तो दो-चार साल में भारत में भी स्टेविया का इस्तेमाल शुरू करने के लिए दबाव बनने लगेगा। हालांकि कीमत के मामले में भारत में अभी स्टेविया शुगर एक आम आदमी की पहुँच से दूर की बात है।
– अशोक सिंह चैहान, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)