अपराध की मानसिकता का यदि विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट रूप से देखने में आता है कि अपराधी पर यदि प्रारंभ में ही अंकुश लगा दिया जाये तो उसका मनोबल अपराध की दुनिया में और अधिक आगे बढ़ने से टूटने लगता है। देश के तमाम युवा जो शौकिया तौर पर अपराध की दुनिया में आगे बढ़ने लगते हैं, यदि उनका मनोबल शुरू में ही तोड़ दिया जाये तो उन्हें लगता है कि अपराध की दुनिया इतनी आसान नहीं है। यदि युवा एक-दो बार अपराध करके बच निकलते हैं तो उनका मनोबल बढ़ता ही जाता है और उन्हें लगने लगता है कि अपराध की दुनिया में आसानी से अपने को स्थापित किया जा सकता है।
वास्तव में देखा जाये तो अपराध की दुनिया में बड़े नाम वही बनते हैं जो शुरू में ही अपराध करके बच निकलते हैं या जिनके घर-परिवार वाले ‘येन-केन-प्रकारेण’ उन्हें बचा लेते हैं। शुरू में ही अपराध करने पर यदि घर-परिवार वाले शख्त हो जायें और शासन-प्रशासन ठीक से अपनी भूमिका का निर्वाह कर दे तो अपराधों पर काबू पाया जा सकता है किंतु जब कोई अपराधी बहुत खतरनाक हो जाता है तो उसके मन-मस्तिष्क में घर-परिवार या शासन-प्रशासन का खौफ नहीं रह जाता है, उसे लगता है कि बड़े से बड़े अपराध करके वह बच निकलेगा। जहां तक मेरी समझ में आता है, उसके अनुसार कुल मिलाकर कमोबेश अपराध करने एवं अपराधी बनने की मानसिकता यही है। इसी मानसिकता पर प्रहार करने की जरूरत है।
अपराध के मनोविज्ञान पर यदि गौर किया जाये तो स्पष्ट रूप से देखने में आता है कि कुछ लोग परिस्थितियों के कारण अपराधी बन जाते हैं। ऐसे लोग आम तौर पर बदले की भावना से अपराधी बनते हैं। ऐसे लोगों के साथ आमतौर पर जब कोई अप्रिय घटना हो जाती है और शासन-प्रशासन से इन्हें न्याय नहीं मिल पाता है तो बदले की आग में अपने को तपा कर अपने साथ हुई नाइंसाफी एवं अपराध का बदला लेने के लिए स्वयं आगे बढ़ जाते हैं।
इस संबंध में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि जो व्यक्ति बदले की भावना से अपराधी बनता है वह बहुत ही खतरनाक होता है। फूलन देवी सहित तमाम लोगों को इसी श्रेणी में लिया जा सकता है। बदले की भावना से जो लोग अपराध की दुनिया में आगे बढ़ते हैं, यदि वे निहायत सज्जन होते हैं तो वे और भी खतरनाक होते हैं। ऐसे लोग अपने मकसद में कामयाब होने से पहले पीछे मुड़ने को तैयार नहीं होते हैं इसलिए कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के साथ यदि किसी भी तरह की ज्यादती होती है तो उसे न्याय अवश्य मिलना चाहिए, अन्यथा समाज में अपराध रोकना बहुत मुश्किल हो जायेगा। ऐसे लोगों के अतिरिक्त जो लोग शौकिया तौर पर अपराधी बनते हैं उनके मन में किसी के प्रति बदले की भावना नहीं होती, ऐसे लोगों को आसानी से सुधारा जा सकता है।
किसी भी परिस्थिति में बात एक ही है कि प्रारंभिक दौर में ही यदि अपराधियों के हौंसले पस्त कर दिये जायें तो काफी हद तक अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है, अन्यथा यूं ही चलता रहेगा। यह काम जितना शीघ्र कर लिया जाये उतना ही अच्छा होगा, क्योंकि एक न एक दिन इसी रास्ते पर आना होगा। इसके अलावा अन्य कोई विकल्प भी नहीं है।
– जगदम्बा सिंह