अजय सिंह चौहान || भारत के उत्तर-पश्चिमी त्रिपुरा राज्य की राजधानी अगरतला से करीब 55 किलोमीटर की दूर, दक्षिणी त्रिपुरा में उदयपुर शहर के पास, राधा किशोर नाम के एक छोटे से कस्बे में, 51 शक्तिपीठों में से एक श्री त्रिपुरसुंदरी देवी का एक ऐसा मंदिर है जो जागृत शक्तिपीठ मंदिर माना जाता है। गोमती नदी के तट पर स्थापित माता के इस शक्तिपीठ के बारे में माना है कि इस जगह पर माता सती का दाहिना पैर, यानी दक्षिण पाद गिरा था।
तो, इस जानकारी को आगे बढ़ाने से पहले यहां हमें ये ध्यान रखना होगा कि ये वो गोमती नदी है जो करीब 100 किमी लंबी है और त्रिपुरा की प्रसिद्ध नदियों में से एक है। इसके अलावा यहां एक और बात का भी ध्यान रखना होगा कि उदयपुर नाम का यह शहर भी त्रिपुरा का एक प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व वाला स्थान है, जबकि कई लोग इसको राजस्थान का उदयपुर समझ शहर समझते हैं।
त्रिपुरा के इसी उदयपुर कस्बे से करीब 5 किलोमीटर और आगे जाने पर, राधा किशोर नाम के एक छोटे से कस्बे में आता है माताबाड़ी। माताबाड़ी यानी माता का शक्तिपीठ मंदिर। यहां स्थानीय भाषा में माताबाड़ी का मतलब है माता का मंदिर। माना जाता है कि भारत विभाजन के बाद से उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के लिए शायद अब यही एक इकलौता ऐसा मंदिर बचा है जहां यूगों-यूगों से पूजा होती आ रही है।
माताबाड़ी, यानी माता का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और जागृत शक्तिपीठ होने के साथ-साथ कूर्म पीठ के रूप में भी इसकी मान्यता है। इसके अलावा, त्रिपुरसुंदरी माता के इस मंदिर को तंत्र पीठ के रूप में भी पूजा जाता है। इसके अलावा यहां इससे भी बड़ी बात ये बताई जाती है कि माता त्रिपुरसुंदरी को दस महाविद्याओं में एक माना जाता है।
अब अगर हम बात करें इस स्थान की मान्यता की तो बताया जाता है कि यहां माता सती का दाहिना पैर, यानी दक्षिण पाद गिरा था। इसके अलावा इस मंदिर में देवी मां को त्रिपुरसुंदरी और भगवान शिव को त्रिपुरेश के रूप में पूजा जाता है।
मंदिर के गर्भगृह में माता की 2 मूर्तियां स्थापित हैं, जिसमें से एक मूर्ति 5 फीट ऊंची और दूसरी 2 फीट ऊंची है। बड़े आकार वाली प्रमुख मूर्ति है जो त्रिपुरसुंदरी देवी के नाम से पूजी जाती हैं, जबकि छोटे आकार वाली मूर्ति छोटी मां के नाम से पूजी जाती है।
श्री त्रिपुरसुंदरी देवी का यह शक्तिपीठ मंदिर देश के उन कुछ गिने-चुने मंदिरों में शामिल है जहां अब भी पशु बलि की प्रथा बंद नहीं हो सकी है, इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालुओं को साल के कुछ खास दिनों को छोड़ कर लगभग हर दिन बकरे और भैंसे की बलि चढ़वाते देखा जा सकता है।
त्रिपुरसुंदरी देवी के मंदिर परिसर में प्रवेश से पहले आपको कई सारी पूजा और प्रसाद की दुकाने देखने को मिल जाती हैं। खाने-पीने या नाश्ता-पानी के लिए भी यहां बजट के अनुसार कई सारे शाकाहारी होटल और रेस्टारेंट हैं। इसके अलावा मंदिर के आस-पास ही में ठहरने के लिए कुछ अच्छे और सस्ते होटल्स और धर्मशालाएं भी बने हुए हैं। मंदिर के आस-पास स्थानीय बाजार, बैंक और एटीएम जैसी सभी प्रकार की जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
मंदिर के गर्भ गृह में पुजारी के अलावा किसी ओर को जाने की अनुमति नहीं है। इसलिए यहां दूर से ही माता के दर्शन करने होते हैं। इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी मंदिर की परंपरा के अनुसार, पुजारी प्रसाद चढ़ाने वाले श्रद्धालुओं का नाम और गोत्र भी पूछते हैं उसके बाद ही वे उस प्रसाद को माता के चरणों में अर्पित करते हैं। प्रसाद के तौर पर माता को यहां पेड़ा सबसे ज्यादा चढ़ाया जाता है इसलिए यहां की अधिकतर दूकानों में पेड़े का प्रसाद ही देखने को मिलता है।
अब बात आती है कि वहां तक कैसे जायें –
तो, सबसे पहले तो यहां ये जान लें कि त्रिपुरसुंदरी माता का ये शक्तिपीठ मंदिर भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों में से एक त्रिपुरा में है, इसलिए यहां तक सड़क के रास्ते या फिर रेल के रास्ते जाना थोड़ा उबाऊ या अधिक खर्चीला होता है। इसलिए यहां के चाहे धार्मिक स्थान हों या पर्यटन स्थल, रेल या फिर सड़क के रास्ते दक्षिण-पश्चिमी राज्यों से जाने वाले लोगों की संख्या यहां बहुत ही कम होती है। लेकिन, अगर आप यहां तक हवाई सेवा की सहायता से जाना चाहें तो ये यात्रा थोड़ी आसान हो जाती है। क्योंकि अब तो अधिकतर यात्री यहां बाय एयर यानी हवाई जहाज से ही जाना पसंद करते हैं। और अब यहां ऐसे लोगों की संख्या अच्छी-खासी तादाद में बढ़ती जा रही है। फिर चाहे वो पर्यटक हों या फिर धार्मिक यात्राओं में जाने वाले।
अब अगर हम यहां दक्षिण-पश्चिमी राज्यों से त्रिपुरा की दूरी की बात करें तो अगरतला या फिर त्रिपुरसुंदरी शक्तिपीठ मंदिर की ये दूरी सड़क के रास्ते तय करने में दिल्ली से करीब 2,500 किमी तक है और रेल से जाने पर भी करीब-करीब इतनी ही है। लखनऊ से यह दूरी करीब 1,900 किमी है, जबकि इंदौर से ये दूरी 2,750 किमी, मुंबई से 3,350 किमी और चेन्नई से यह दूरी करीब 3,250 किमी है। यही कारण है कि इन क्षेत्रों से यहां तक सड़क या रेल से जाना इतना आसान नहीं होता। ऐसे में, अगर कोई वहां तक हवाई जहाज से जाना चाहे तो उसके लिए ये यात्रा कम समय में ज्यादा सुखदायक साबित होती है।
तो, अगर आप भी इस मंदिर में दर्शन करने के लिए जाना चाहते हैं तो यहां ये ध्यान रखना होगा कि आप यहां चाहे हवाई जहाज से जायें या फिर रेल से या सड़क के रास्ते, सबसे पहले आपको त्रिपुरा की राजधानी अगरतला पहुंचना होता है। हवाई जहाज से जाने के लिए भी यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट अगरतला में बीर बिक्रम एयरपोर्ट है।
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लेकिन, अगर आप यहां रेल या सड़क के रास्ते पहुंचना चाहते हैं तो उसके लिए भी आपको सबसे पहले अगरतला से होते हुए ही जाना होता है। माता त्रिपुरसुंदरी का ये जागृत शक्तिपीठ मंदिर, त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से करीब 55 किलोमीटर दूर, गोमती नदी के किनारे पर, उदयपुर नाम के एक कस्बे से 5 किमी आगे चलने पर राधा किशोर नाम के एक छोटे से कस्बे में आता है।
अगर आप अगरतला से उदयपुर के लिए बस या फिर टैक्सी से जाना चाहते हैं उसकी यहां अच्छी सुविधा है। हालांकि, अब अगरतला से उदयपुर तक भी रेल सेवा शुरू हो चुकी है, इसलिए माताबाड़ी तक के लिए, यानी शक्तिपीठ मंदिर से करीब 5 किमी पहले तक के लिए भी अब उदयपुर-त्रिपुरा के बीच ट्रेन की सुविधा शुरू हो चुकी है।
आप चाहें तो यहां अगरतला से सीधे मंदिर के लिए करीब 55 किलोमीटर की ये दूरी टैक्सी से करीब-करीब 2 घंटे में आसानी से तय कर सकते हैं।
लेकिन, अगर आप अगरतला से बस का सफर करके उदयपुर तक भी पहुंच जाते हैं तो, उदयपर के बस स्टैंड से माताबाड़ी के लिए यानी करीब 5 किमी और आगे तक जाने के लिए आपको उदयपुर से सीधे मंदिर तक शेयरिंग आटोरिक्शा या फिर जीप की सवारी मिल जाती है।
कहां ठहरें –
उदयपुर शहर में, या फिर मंदिर के आस-पास ठहरने के लिए छोटे-बड़े कई सारे होटल और धर्मशालाएं बने हुए हैं। इसके अलावा यहां पर त्रिपुरा सरकार की ओर से उदयपुर शहर में गोमती यात्री निवास भी बनवाया गया है जिसमें करीब 800 रुपये से 2200 रुपये तक में अच्छी सुविधाओं वाले कमरों की बुकिंग की जा सकती है।
लेकिन अगर आपका बजट इससे भी कम है तो आपको यहां 400 रुपये तक में भी अच्छी सुविधाओं वाले कमरे मिल जायेंगे। इन सबसे अलग, उदयपुर शहर में और भी कई सारे छोटे-बड़े होटल और रेस्टाॅरेंट हैं जिनमें आपको बजट के अनुसार कमरे मिल जाते हैं।
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यहां ये भी ध्यान रखना होता है कि अगर आप रात को अगरतला में ही ठहरना चाहते हैं तो फिर आपको सुबह जल्दी उठकर मंदिर दर्शन के लिए निकलना होगा, ताकि शाम तक आसानी से मंदिर के दर्शन करने के बाद वापसी में अगरतला लौट सकते हैं।
स्थानीय भाषा –
अब अगर हम त्रिपुरा की स्थानीय भाषा की बात करें तो वैसे तो यहां त्रिपुरी यानी कोक बोरोक भाषा बोली जाती है। लेकिन, क्योंकि ये क्षेत्र बंगाल और बांग्लादेश का बाॅर्डर ऐरिया है इसलिए यहां बंगाली भी अच्छी-खासी बोली जाती है। हालांकि, देश के दूरदराज के हिस्सों से आने वाले हिन्दी या फिर किसी भी अन्य भाषा वाले पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों को यहां भाषा को लेकर इतनी ज्यादा परेशानी नहीं होती।
त्रिपुरा में भोजन व्यवस्था –
यहां थोड़ी बड़ी परेशानी उन तीर्थ यात्रियों को आती है जो शाकाहारी ही खाना पसंद करते हैं। इसका कारण ये है कि यहां के, यानी उत्तर-पूर्व भारत के ज्यादातर लोग मांस, मछली और चावल ही सबसे ज्यादा खाना पसंद करते हैं इसलिए यहां शाकाहारी भोजन खाने वाले यात्रियों को थोड़ी परेशानी हो सकती है। लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि यहां शाकाहारी भोजन मिलतना ही नहीं है। हां अगर आप यहां किसी भी होटल या रेस्टाॅरेंट पर पहले से ही आर्डर दे दें या सूचना पहुंचा दें तो आपके लिए इसकी बहुत अच्छी सुविधा हो जाती है। वैसे भी खास तौर पर तीर्थ क्षेत्रों में ऐसे कई सारे होटल और रेस्टाॅरेंट्स होते ही हैं जहां शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था मिल जाती है।
आसपास के अन्य दर्शनिय स्थल –
अगर आप यहां के आस-पास की बाकी जगहों पर भी घुमना चाहते हैं तो उसके लिए उदयपुर कस्बे में कई सारे प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक इमारतें हैं जहां घूमा जा सकता है। किसी समय में माणिक्य वंश के राजाओं की राजधानी तौर पर रहा उदयपुर कस्बा आज भी उसी दौर के इतिहास का गवाह बना हुआ है। यहां उसी दौर के गुणावती समूह के मंदिर और भुवनेश्वरी मंदिर आज भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं को खूब आकर्शित करते हैं। उदयपुर में भुवनेश्वरी देवी का मंदिर भी है जिसका जिक्र कवि रविंद्र नाथ टैगोर ने राजर्षि और विसर्जन नाम के अपने दो नाटकों में किया है।
त्रिपुरा जाने के लिए सही मौसम –
अब अगर हम यहां के मौसम की बात करें तो सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों की तरह ही, त्रिपुरा में भी सर्दियों का मौसम सबसे अच्छा मौसम माना जाता है क्योंकि सर्दियों में यहां का तापमान सुहावना हो जाता है। लेकिन, गर्मी के मौसम में यहां पर बहुत ज्यादा उमस रहती है। इसके अलावा बारीश में यानी मानसून के मौसम में त्रिपुरा की यात्रा करना एक बड़ी परेशानी का कारण हो सकता है, क्योंकि हर साल यहां भारी बारीश होती है जिसके कारण यहां का आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।