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सबसे पहले मुर्गी ही आई थी, बाद में अण्डा | The chicken was first, then the egg

admin 15 February 2021
Question Answer
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अक्सर हमारे सामने एक सवाल आता है कि सबसे पहले ‘अंडा आया था या मुर्गी’? अगर आप इस सवाल को एक मजाक समझ कर चलें, तब तो ये सवाल ही गलत है। लेकिन, अगर कोई इसका उत्तर देना चाहे, तो भला क्या होगा, इसका उत्तर? इसका उत्तर न सिर्फ एक आम आदमी के लिए, बल्कि दुनिया के सैकड़ों वैज्ञानिकों के लिए भी, पहेली जैसा ही है।

कई वैज्ञानिक इस विषय पर सदियों से रिसर्च भी कर रहे हैं और अपने-अपने दावे करते आ रहे हैं कि आखिरकार, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई? और उससे भी कहीं अधिक कठीन रिसर्च तो ये है कि, पहले ‘अंडा आया था या मुर्गी’? ऐसे में हर कोई अपने-अपने तर्क देकर इस सवाल के जवाब में उलझ कर रह जाते हैं।

भले ही दुनियाभर के वैज्ञानिक इस बात को लेकर कामयाब भी हो जायें कि पृथ्वी पर सबसे पहले ‘अंडा आया था या फिर मुर्गी’। लेकिन, हमारे वेदों और पुराणों में प्रमाणिक तौर पर इस बात के स्पष्ट उल्लेख हैं कि पृथ्वी पर सबसे पहले मुर्गी ही आई थी, और फिर मुर्गी से अंडा, और फिर उसी अंडे से यह जीवन, आगे बढ़ता गया।

और यदि हम वेदों और पुराणों में किये गये इस दावे की पुष्टि के लिए और अधिक स्पष्ट बात करें तो हमें प्रमाण मिलते हैं कि संसार में सबसे पहले जिस मुर्गी से अण्डे का जन्म हुआ था उस मुर्गी को इस संसार में लाने का श्रेय भी हमारे वेदों और पुराणों में स्पष्ट बताया गया है कि कैसे इस सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरीचि ऋषि तथा उनकी पत्नी सम्भूति से जन्मा एक बालक जो बड़ा होकर महर्षि कश्यप के नाम से प्रसिद्ध हुआ था, उन्हीं महर्षि कश्यप को इसका श्रेय जाता है।

महर्षि कश्यप द्वारा इस सृष्टि के सृजन में दिए गए महायोगदानों से हमारे सनातन साहित्य के वेद, पुराण, स्मृतियां, उपनिषद और ऐसे अन्य अनेकों धार्मिक साहित्य भरे पड़े हैं, जिसके कारण उन्हें ‘सृष्टि का सृजक’ भी माना जाता है।

और क्योंकि मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे इसलिए यहीं से मानव जीवन का प्रारंभ भी हुआ और उन जीवों की आयु भी निश्चित हो गई थी।

अब बात आती है अन्य जीवों की उत्पत्ति की, कि आखिर अन्य जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई और ‘अंडा आया था या मुर्गी’? तो इस विषय पर श्रीनरसिंह पुराण में कश्यप ऋषि के जीवन से जुड़े उल्लेखों से इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि उनकी कुल 17 पत्नियां थी।

श्रीनरसिंह पुराण के अनुसार, कश्यम ऋषि की इन सभी 17 पत्नियों ने अपने-अपने गुण, स्वभाव, आचरण, कर्म एवं नाम के अनुसार ही अपनी-अपनी संतानों को जन्म दिया, जिसमें भगवान विष्णु के वामन यानी त्रिविक्रम नामक अवतार को सबसे पहला मानव अवतार माना गया है।

इसके अलावा कई असूर, हयग्रीव, एकचक्र, महाबाहु और महाबल, गरूड़ तथा अन्य पक्षी, वासुकि नाग, बाघ, गाय, भैंस तथा अन्य दो खुर वाले पशुओं का जन्म हुआ। इसके अलावा अन्य मानस पुत्रों का यानी मनुष्यों का भी जन्म हुआ, और फिर यहीं से पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ हुआ था।

महर्षि कश्यप एक अत्यंत ही तेजवान ऋषि थे, इसीलिए तो वे सभी ऋषि-मुनियों और सुर-असुर, सभी के लिए मूल पुरूष यानी पिता माने जाते हैं। अपने संपूर्ण जीवनकाल तक महर्षि कश्यप, निरन्तर धर्मोपदेश करते रहे, जिसके कारण देवताओं ने उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि दी थी।

माना जाता है कि मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर हुआ करता था, जहां वे अपने परमपिता ब्रह्म के ध्यान में मग्न रहते थे।

देश-विदेश के अनेकों इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं, पौराणिक तथा वैदिक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि ‘केस्पियन सागर’ एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप के नाम पर ही हुआ था। और उस समय महर्षि कश्यप ने ही सर्वप्रथम कश्मीर में शासन भी किया था।

– अजय सिंह चौहान 

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