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भारत ने चीन को बहुत भारी नुकसान पहुंचाया: आस्ट्रेलियाई समाचार पत्र

admin 4 February 2022
Galwan valley clash with Chinese soldiers
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आस्ट्रेलिया से प्रकाशित होने वाले ‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) नामक एक प्रसिद्ध अखबार के हवाले से खबर आई है कि वर्ष 2020 में 15 जून को जब गलवान घाटी में (Galvan Decoded) चीन के सैनिकों ने अचानक भारतीय सैनिकों पर हथियारों और कांटेदार लाठी तथा डंडो से उन्हें डराने और धमकाने के लिए उन पर हमला किया तो उसके जवाब में भारतीय सेना की बिहार रेजीमेंट के जवानों ने भी न सिर्फ उनका मुकाबला किया बल्कि उन्हें और उनके आकाओं को चैंकाने वाला ऐसा जवाब दे दिया कि वे आज तक हैरान हैं। भारतीय सैनिकों के द्वारा दिये गये उस जवाब का डर उस समय चीन के सैनिकों पर इस कदर हावी हुआ था कि उस घटना के कई दिनों बाद तक भी वे लोग वहां अपनी उस पोस्ट के आस-पास तक भी नहीं जाना चाहते थे।

बताया जाता है कि 15 जून 2020 को गलवान घाटी का वह संघर्ष भारत-चीन के बीच पिछले कई दशकों बाद हुआ था। हालांकि इसमें 20 भारतीय जवान भी शहीद हुए थे, लेकिन, उस संघर्ष (Galvan Decoded) के बाद चीन के होश उड़ गये थे जब उसके ही हथियारबंद उन सैनिकों को न सिर्फ निहत्थे भारतीय सैनिकों से मुहकी खानी पड़ गई थी बल्कि संख्या में भी उनसे कहीं ज्यादा को मौत का मुंह देखना पड़ गया था।

एक आस्ट्रेलियाई अखबार ‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) ने 2 फरवरी 2022 के अपने हालिया अंक की रिपोर्ट में कुछ अज्ञात शोधकर्ताओं और कुछ मुख्य चीनी अधिकारियों और ब्लाॅगर्स का हवाला दिया है और यह दावा किया है कि गलवान घाटी के उस संघर्ष में चीन को इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा कि बीजिंग द्वारा दिय गये उसके हताहत हुए सैनिकों की संख्या से बहुत ज्यादा बड़ी है।

हालांकि, हताहत हुए उन चीनी सैनिकें की एक निश्चित संख्या का दावा नहीं किया गया है, लेकिन बताया जाता है कि चीन द्वारा दिये गये उसके उन पांच सैनिकों की उस संख्या से कहीं ज्यादा आगे है और यह संख्या करीब 38 से भी अधिक है।

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) ने ‘गलवान डिकोडेड’ ;ळंसअंद क्मबवकमकद्ध शीर्षक से अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि इस रिपोर्ट को सोशल मीडिया शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा तैयार किया गया है। जबकि इसमें शोधकर्ताओं ने सुरक्षा के आधार पर अपने नाम गुप्त रखे हैं।

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) ने आगे लिखा है (Galvan Decoded) कि यह रिपोर्ट लगभग एक साल की लंबी जांच के बाद आई जिसमें कुछ मुख्य चीनी ब्लाॅगर्स के साथ हुई गुप्त चर्चा, कुछ ऐसे चीनी अधिकारी जिन्हें उनके पद से हटा दिया गया, कुछ चीनी नागरिकों से प्राप्त जानकारियां और अन्य मीडिया रिपोर्टों से जुड़ी कड़ियों को जोड़ा गया है।

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon)) ने अपनी शोध रिपोर्ट में आगे लिखा है कि हमारा मकसद यह है कि हम उन घटनाओं और उसके पीछे की वास्तविकता को उजागर करें कि ‘वास्तव में क्या हुआ, जिसके कारण गलवान घाटी में झड़प हुई थी, और ऐसा क्या हुआ कि उससे जुड़े बहुत सारे तथ्य बीजिंग द्वारा छिपाए गए हैं?

वर्ष 2022 के बाद कई लोग कहलायेंगे धरती पर बोझ!

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) द्वारा इस शोध रिपोर्ट (Galvan Decoded) में कहा गया है कि चीन द्वारा इंटरनेट से हटाए जाने के बाद भी हमारे हाथ कुछ दस्तावेज और वीडियो हाथ लगे हैं जिनसे पता चलता है कि 15 जून 2020 को गलवान घाटी के उस संघर्ष के दौरान भारतीय सैनिकों ने चीन के हथियारबंद उन कामरेड्स यानी उन चीनी सैनिकों को किस प्रकार से नदी में फैंक दिया था। कुछ कामरेड तो डर के मारे फिसलते जा रहे थे और भारतीय सैनिकें से बचने और छिपने के इरादे से भी वहां से नीचे की ओर भागे जा रहे थे।

शोध रिपोर्ट (Galvan Decoded) में कहा गया है कि 15 जून 2020 में हुए उस सीमा रक्षा संघर्ष के दौरान, वांग झुओरंग की उस चीनी सैनिक टुकड़ी के चार साथियों को भारतीय सैनिकों ने एक के बाद एक नदी के किनारे धकेल दिया, जिसके बाद उनके पैर नदी के तल पर पत्थरों में फंस गए, और क्योंकि शारीरिक तौर पर वे सभी चीनी बेहद कमजोर थे जिसके कारण वे वहीं डूब गये।

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) ने अपनी इस खोजी शोध (Galvan Decoded) में चीनी मीडिया द्वारा जारी लड़ाई के वे फुटेज भी प्राप्त किए हैं, जिनके आधार पर इस शोध पर मुहर लग जाती है कि यह शत-प्रतिशत सही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सैनिकों के बीच गतिरोध का एक वीडियो स्पष्ट रूप से दिन के उजाले में शूट किया गया है, जबकि दूसरा वीडियो रात में हुई झड़प का है।

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) के शोधकर्ताओं का कहना है कि 15 जून की वह घातक लड़ाई वहां एक अस्थायी पुल पर छिड़ गई थी, जिसे भारतीय सैनिकों ने तीन सप्ताह पहले, यानी 22 मई 2020 को ही गलवान नदी की एक धारा के पार खड़ा किया था।

रिपोर्ट (Galvan Decoded) के अनुसार 22 मई को बिहार रेजिमेंट के कमांडर कर्नल संतोष के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने गलवान नदी की एक धारा पर एक ‘अस्थायी वाॅक-ओवर ब्रिज’ बनाया था, ताकि सैनिकों को चीनी गतिविधियों की निगरानी करने की अनुमति मिल सके। जबकि चीन की पीएलए ने तो बफर जोन में ही अपना बुनियादी ढांचा बना लिया था, लेकिन भारतीय सैनिकों द्वारा एक अस्थायी पुल के निर्माण का वे विरोध कर रहे थे।

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रिपोर्ट के अनुसार, 15 जून 2020 को कर्नल संतोष बाबू अपने सैनिकों के साथ चीनी अतिक्रमण को हटाने के प्रयास में ही उस रात गलवान घाटी के विवादित क्षेत्र में गए थे, जहां चीनी सेना का कर्नल क्यूई फैबाओ लगभग 150 सैनिकों के साथ पहले से ही वहां मौजूद था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नल क्यूई फैबाओ ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के बजाय, अपने सैनिकों को हमला करने का आदेश दे दिया। लेकिन, जिस क्षण कर्नल क्यूई फैबाओ के सैनिकों ने हमला किया, भारतीय सैनिकों ने तुरंत चीनी कर्नल क्यूई फैबाओ को ही घेर लिया।

उधर अपने कर्नल क्यूई फैबाओ को बचाने के लिए चीन की पीएलए की बटालियन के कमांडर चेन होंगजुन और अन्य सैनिक चेन जियानग्रोंग भारतीय सेना के घेरे में प्रवेश कर गये और एक पूर्व नियोजित तरीके से भारतीय सैनिकों के साथ कटींले तार लगी लाठी, पत्थरों और स्टील के पाइप का उपयोग करके अपने कमांडर को बचने के लिए हाथापाई शुरू कर दी।

उस हाथापाई के दौरान भारत के कर्नल संतोष बाबू शहीद हो गए। कर्नल संतोष बाबू के शहीद होते ही आत्मरक्षा और शांति कायम करने के इरादे से वहां गये उन भारतीय सैनिकों ने मोर्चा संभाल लिया और अपनी विरता का परिचय देते हुए बिना हथियारों के ही कर्नल संतोष बाबू के उस बलिदान और अपमान का बदला लेते हुए चीन के कर्नल फैबाओ, मेजर चेन होंग्रुन, जूनियर सार्जेंट जिओ सियान और प्राइवेट चेन जियानरोंग की गर्दनें तोड़ दी।

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) की रिपोर्ट (Galvan Decoded) में कहा गया है कि भारतीय सेना ने जैसे ही उन चीनी कमांडरों और उनके सैनिकों की गर्दनें तोड़नी शुरू की, बाकी बचे वहां के वे चीनी सैनिक तुरंत वहां से बच कर भाग निकले।

‘द क्लैक्सन’ (The Klaxon) ने अपनी रिपोर्ट (Galvan Decoded) में दावा किया है कि उस रात वहां भारतीय सैनिकों के द्वारा कम से कम 38 पीएलए (चीनी) सैनिकों को मारा गया और डूबोया गया था। लेकिन, चीन ने उनमें से केवल चार को ही आधिकारिक तौर पर मृत सैनिक घोषित किया था। रिपोर्ट के अनुसार, गलवान की उस घटना के बाद, उन सभी 38 चीनी सैनिकों के शवों को पहले शिकान्हे के शहीद कब्रिस्तान ले जाया गया था, उसके बाद स्थानीय शहरों में भेजा गया था।

गलवान की उस झड़प के बाद भारतीय अधिकारियों ने मीडिया में कुछ तथ्य तथा तस्वीरें देते हुए दावा किया था कि चीन ने अपने सैनिकों को कांटेदार तार में लिपटे डंडों और कीलों, लोहे की छड़ों से जड़े घातक हथियारों से लैस करके वर्ष 1996 के समझौते को तोड़ा है।

उधर चीनी मीडिया (Galvan Decoded) ने भी इस घटना के बाद जो रिपोर्ट जारी की थी उनमें दिन उजाले में हुई टकराव के फुटेज में चीनी सैनिकों को शरीर के कुछ विशेष कवच, कुछ अधिक भारी पोशाक, गर्दन की ढाल और बड़े हेलमेट पहने हुए दिखते हैं जो आमतौर पर किसी हमले के खिलाफ काम आते हैं, लेकिन, बावजूद इसके भारतीय सेना ने उनकी गर्दनें तोड़ दी और घूंसे मार-मार कर उनको जमीन पर गिरा दिया।

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